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''एलएसी पर टकराव ने चीन की मंशाओं को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं''

पुलवामा हमले के बाद भारत ने बहुत ही ज्यादा संयम दिखाया...उस वक्त भारत की कार्रवाई उचित और बराबरी की थी

मेलिसा सुई गेरिट्स/गेट्टी इमेजेज मेलिसा सुई गेरिट्स/गेट्टी इमेजेज
राज चेंगप्पा
  • नई दिल्ली,
  • 17 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 6:01 PM IST

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की हालिया किताब द रूम वेयर इट हैपंड ने अपने नए खुलासों से ट्रंप प्रशासन को भारी नुक्सान पहुंचाया है. इंडिया टुडे के ग्रुप एडियोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा के साथ खास बातचीत में बोल्टन ने चीन से उभरने वाली चुनौती और ट्रंप की विदेश नीति के बारे में बात की और यह भी कि भारत की 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक का उनकी किताब में केवल सरसरी तौर पर जिक्र क्यों है. बातचीत के प्रमुख अंश:

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मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि भारतीय वायु सेना (आइएएफ) ने पुलवामा हमले के जवाब में फरवरी 2019 में पाकिस्तान में काफी भीतर घुसकर जो हवाई हमला किया, उसका आपने अपनी किताब में केवल सरसरी तौर पर जिक्र किया है. 1971 की लड़ाई के बाद यह पहला मौका था जब भारत ने पाकिस्तान में एक उग्रवादी धड़े के खिलाफ हमले के लिए वायु सेना का इस्तेमाल किया था.

यह प्रसंग भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन जैसा कि मैंने अपनी किताब में बताया है, (अमेरिकी) सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, राष्ट्रपति और मैं उत्तर कोरियाई परमाणु हथियार कार्यक्रम पर शिखर सम्मेलन के तहत किम जोंग-उन से मुलाकात के लिए हनोई में थे और हम उधर वाशिंगटन डीसी में कार्यवाहक सेक्रेटरी ऑफ डिफेंस और जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन के साथ संपर्क में थे. हमने भारत और पाकिस्तान के अपने समकक्षों से बात की और टकराव खत्म हो गया. मैं आपकी बात पूरी तरह समझता हूं—यह संभावित तौर पर बहुत अहम सैन्य टकराव था और पाकिस्तान की तरफ से बहुत जोखिम भरा बर्ताव किया गया था. भारत सरकार ने भारी संयम दिखाया. यह ऐसी चीज है जिसे अमेरिका को बहुत ज्यादा अहमियत देनी चाहिए, खासकर अमेरिका-भारत के बढ़ते और गहरे होते रिश्तों के मद्देनजर. हमारे सामने चर्चा के लिए कई सारे साझा खतरे हैं. हमारे बीच भी कुछ मुद्दे हैं जिन्हें हल करने की जरूरत है, लेकिन इस बाकी सदी के लिए और ज्यादा मजबूत भारत-अमेरिका जुड़ावों की अहमियत को कम करके आंकने जैसी कोई बात नहीं है.

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क्या भारतीय वायु सेना ने बालाकोट में आतंकी शिविरों पर हमला किया और क्या इसमें लोग मारे गए थे? आप अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे, आपको मालूम होगा कि आखिर क्या हुआ था?

मुझे यकीन है इसके पीछे की वजहों को आप समझेंगे, लेकिन मैं इस सब में नहीं पडऩा चाहता कि हमारी खुफिया एजेंसियां हमारे पास क्या (जानकारियां) लेकर आईं, क्योंकि इससे क्षमताएं, स्रोत और हमारी तरफ से इस्तेमाल के तरीके उजागर हो सकते हैं. हम खुश थे कि भारतीय पक्ष ने संयम दिखाया और शांति से इसका समाधान हो गया. पाकिस्तानी पक्ष से भी हमारी ऐसी ही बातचीत हुई थी. इन चीजों की हमेशा अलग-अलग व्याख्या होती है, जो इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस राजधानी शहर में बैठे हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर आप जिन प्रसंगों से निपटे, उनका आपने विस्तार से ब्योरेवार जिक्र किया है, लेकिन बालाकोट की घटना को लेकर आपकी चुप्पी थोड़ी उलझन में डालने वाली है.

(यह) संयम (है), मैं आपको भरोसा दिला सकता हूं. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों या मित्रों और सहयोगियों की खुफिया जानकारियों से मिलने वाली किसी भी चीज से जुड़े मामलों को इजाजत लेकर ही उजागर किया जा सकता है. मगर जहां तक संकट के परत-दर-परत खुलते ब्योरों की बात है, तो यह बनिस्बतन तेजी से हुआ. उस समय (वियतनाम की राजधानी) हनोई में देर रात थी. और वहां हम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग-उन के बीच अगले दिन होने वाली शिखर बातचीत की तैयारियां कर रहे थे. लेकिन कुल मिलाकर, मैंने सोचा कि भारत की कार्रवाई ठीक और बराबरी की थी और ऐसी घटनाओं के दोबारा होने से बचने की कोशिशों में इसे एक मौका मानना चाहिए.

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पाकिस्तानी एफ-16 लड़ाकू विमान के बारे में आपको क्या जानकारी मिली, जिसे भारतीय वायु सेना ने कहा कि उसने मार गिराया है जबकि इस्लामाबाद ने खंडन जारी किया था?

मैं इस पर कोई टिप्प्णी नहीं कर सकता. भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने (घटना के बारे में) अपने-अपने पक्ष सामने रखे हैं. उससे आगे मैं वाकई नहीं जा सकता.

आपकी क्या राय है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ रिश्तों को किस तरह देखते हैं?

राष्ट्रपति ट्रंप विदेश नीति को बहुत कुछ आर्थिक चश्मे से ज्यादा और रणनीतिक नजरिए से कम देखते हैं. वे हमेशा शुल्कों, भुगतान संतुलन, घाटों और इसी किस्म की चीजों को लेकर चिंतित रहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत में भी यही सब आया, हर बार जब वे दोनों एक दूसरे के साथ आए. चर्चा के लिए शुल्क और व्यापार के अहम मुद्दे तो थे ही, लेकिन काश हमने दोनों नेताओं के बीच क्षेत्र की रणनीतिक प्राथमिकताओं के बारे में और ज्यादा चर्चा के साथ वक्त बिताया होता. दो-टूक कहूं तो चीन से और चीन जो चुनौतियां और तनाव पैदा कर रहा है उनसे कैसे निपटा जाए, खासकर आप (भारत) का जो भूगोल है उसके मद्देनजर. चीन और पाकिस्तान, आपकी सरहद पर ये दो परमाणु शक्तियां हैं. भारत और अमेरिका के लिए 21वीं सदी में चीन से निपटने का नजरिया वजूद का सवाल ज्यादा है, बजाए महज व्यापारिक रिश्तों से निपटने के. काश कि राष्ट्रपति ने रणनीतिक मुद्दों को ज्यादा वक्त दिया होता.

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भारतीय और चीनी फौजें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बड़े गतिरोध में उलझी हैं. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन को क्या करना चाहिए?

अमेरिका को इसे लेकर ज्यादा चिंतित होना चाहिए. मैं बेशक समझता हूं कि भारत एलएसी पर चीन के साथ टकरावों पर इतना ध्यान क्यों देता है. बहुत बड़ी संख्या में बहुत गंभीर मुद्दे हैं जो चीन बाकी हम सबके सामने पैदा कर रहा है. यही वजह है कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक स्तर पर और ज्यादा चर्चा होना बेहद जरूरी है. सरहद पर टकराव इसलिए और भी चिंताजनक है क्योंकि भारत ने एलएसी पर विवादित इलाकों में अमन-चैन बनाए रखने के लिए लंबे वक्त के दौरान कड़ी मेहनत की है. इसलिए यह खास घटना चीन की मंशाओं को लेकर बहुत गंभीर सवाल पैदा कर देती है. मैं समझता हूं कि अमेरिका को इन चर्चाओं में सहायता के लिए तैयार होना चाहिए और हो सकता है उन क्षमताओं के साथ, जो मददगार हो सकती हैं. चीन की तरफ से पैदा चुनौती की गंभीरता के बावजूद यही वह तरीका है जो अमेरिका-भारत सहयोग को गहरा और मजबूत बना सकता है.

पाकिस्तान की मौजूदा हुकूमत और अफगानिस्तान को लेकर उसके साथ अमेरिका के समझौता करने के बारे में आपकी क्या राय है?

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जब पाकिस्तान में नेतृत्व बदला था, हमें उम्मीद थी कि यह अमेरिका और पाकिस्तान को परेशान कर रहे मुद्दों को हल करने में मदद का एक नया मौका होगा. (लेकिन) कुछ दिन पहले हम सब परेशान थे जब इमरान खान ने ओसामा बिन लादेन का जिक्र किया और उसे ऐसी ऊंचाई पर रखा जहां किसी भी उस किस्म के आतंकवादी को नहीं रखा जाना चाहिए. तालिबान के साथ अमेरिका की बातचीत को लेकर मैं बहुत निराशावादी हूं. मेरे ट्रंप प्रशासन छोडऩे के पीछे यह भी एक कारण था. जाहिर है उन्होंने (तालिबान ने) पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल कुछ लड़ाकों के लिए बेस कैंप के तौर पर किया. ये वे मुद्दे हैं जो जाने वाले नहीं हैं.

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