
ऐसा अक्सर नहीं होता कि किसी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर यूनेस्को विश्व धरोहर भी हो. लेकिन रणथंभौर को यह गौरव हासिल है. माना जाता है कि रणथंभौर किले का निर्माण करीब हजार साल से भी पहले चौहान राजा रणथान देव ने अपनी राजधानी के लिए करवाया था. वे इसे 'रणस्तंभपुरा' कहते थे. आज आसानी से पकड़ में न आने वाले बाघ की एक झलक के लिए उत्सुक हजारों सैलानी अपनी सफारी जीपों में रोज इस किले से गुजरते हैं. अगर खुशकिस्मत हुए तो किले की प्राचीरों पर उन्हें बाघ देखने को मिल सकता है.
सवाई माधोपुर कस्बा राजस्थान के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रीय उद्यान रणथंभौर का प्रवेश द्वार है. 1,334 वर्ग किमी में फैला और उत्तर तथा दक्षिण में क्रमश: बनास और चंबल नदियों से घिरा रणथंभौर बाघों की विशाल आबादी के लिए जाना जाता है. दुनिया की सबसे मशहूर बाघिनों में से एक मछली 2016 में अपनी मृत्यु से पहले तक रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की ही शान हुआ करती थी.
विशाल इलाकों में घूमने और एकांत-प्रिय प्राणी होने की वजह से बाघों को देख पाना इतना आसान नहीं होता. पर रणथंभौर का एक फायदा यह है कि यहां जंगल सूखे और पतझड़ वाले हैं और खुले हरे-भरे घास के मैदान चौतरफा फैले हैं, जिससे बाघ देखना थोड़ा आसान हो जाता है.
तमाम किस्म के जीव-जंतु पार्क में पानी के कई सोतों की तरफ खिंचे चले आते हैं और थोड़ा सब्र वाले सैलानियों को आम तौर पर अपने दर्शन का नजारा पेश करते हैं. पदम तलाव यहां पार्क की झीलों में सबसे बड़ा है. भारत के सबसे बड़े बरगद के पेड़ों में से एक इसी झील के करीब है.
अलबत्ता रणथंभौर में बाघ देखने के अलावा भी बहुत कुछ है. इस पार्क में तेंदुए, हाथी, नीलगाय, हिरण, भेड़िए, जंगली सूअर, भारतीय बाइसन, मगरमच्छ और विभिन्न किस्म के दूसरे जीव-जंतु भी हैं. बाघ देखने के लिए खासा मशहूर और भारत के प्रमुख वन्यजीव स्थलों में से एक होने के नाते रणथंभौर में हर तरह के रिजॉर्ट हैं, डिजाइनर परिधानों से लेकर जेवर-गहने, कालीन और स्थानीय शिल्पकारी तक दस्तकारी के महंगे बुटीक का तो जिक्र ही क्या करना.
पार्क के प्रवेश द्वार के पास रहने के लिए भारत के कुछ सबसे आलीशान तंबू हैं. अगर आप बाघ नहीं भी देख पाते तो सहज सुलभ बेहद जायकेदार खानों और स्पा के साथ तृप्त होकर गुर्राते हुए जाएंगे.
अमित दीक्षित