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ओबीसी आरक्षण ने फंसाया पेच

स्थानीय निकाय चुनावों में प्रस्तावित आरक्षण रद्द करने के हाइकोर्ट के फैसले ने सत्तारूढ़ भाजपा के लिए ओबीसी वोटबैंक को थामे रखने की चुनौती बढ़ा दी है

चुस्ती और नई चुनौती: लखनऊ के भाजपा मुख्यालय में निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर बैठक करते प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी चुस्ती और नई चुनौती: लखनऊ के भाजपा मुख्यालय में निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर बैठक करते प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी
आशीष मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 03 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:47 PM IST

अगस्त 2022 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद भूपेंद्र चौधरी के सामने उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव बड़ी चुनौती के रूप में थे. चौधरी इन चुनावों में भाजपा को इकतरफा जीत दिलाकर अपना राजनीतिक कौशल जाहिर करना चाहते थे. इसके लिए वे बूथ से लेकर प्रदेश पदाधिकारियों के साथ लगातार बैठकें कर रहे थे. वहीं वहीं विधानसभा चुनाव की तर्ज पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्थानीय निकायों में भी रिकॉर्ड जीत का सि‍लसिला बरकरार रखना चाहते थे. इसके लिए वे प्रदेश के सभी महानगरों में प्रबुद्धजन सम्मेलनों के जरिए भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में जुट गए थे. इन तैयारियों में पेच तब फंसा जब 5 दिसंबर को नगर विकास विभाग ने महापौर, नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्षों का आरक्षण तय करते हुए लोगों से सुझाव व आपत्तियां मांगी.

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राज्य निर्वाचन आयोग स्थानीय चुनाव की अधिसूचना लागू करने की तैयारी में जुटा था कि 12 दिसंबर को इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को उचित आरक्षण का लाभ दिए जाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी. साथ ही राज्य सरकार को अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के आधार पर अंतिम आदेश जारी करने से भी रोक दिया. 

दो हफ्ते तक हाइकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 27 दिसंबर को राज्य सरकार को झटका देते हुए 5 दिसंबर को जारी आरक्षण की अनंतिम अधिसूचना को रद्द कर दिया. हाइकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी आरक्षण लागू नहीं किया जाएगा. कोर्ट ने अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग को छोड़‍कर बाकी सभी वर्गों के लिए आरक्षि‍त सीटों को सामान्य वर्ग की सीट के रूप में अधिसूचित करते हुए तत्काल निकाय चुनाव कराने का आदेश भी दिया. हाइकोर्ट के आदेश ने राज्य सरकार की जमकर किरकिरी कराई है. राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया.

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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने फौरन बयान जारी कर कहा, ''ओबीसी आरक्षण पर भाजपा घड़ियाली आंसू बहा रही है. भाजपा ने आज पिछड़ों के आरक्षण का हक छीना है तो कल दलितों के आरक्षण का हक छीन लेगी.'' राज्य सरकार बगैर ओबीसी आरक्षण के स्थानीय चुनाव कराने का खतरा मोल लेना नहीं चाहती थी. कोर्ट का फैसला आते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ''डैमेज कंट्रोल'' करते हुए एक घंटे के भीतर बयान जारी कर कहा, ''पिछड़ों को आरक्षण दिए बगैर निकाय चुनाव नहीं कराए जाएंगे. आरक्षण के लिए पहले पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करेंगे.'' मुख्यमंत्री योगी ने घोषणा के 24 घंटे के भीतर हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश राम अवतार सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय आयोग का गठन कर दिया. 

सरकार ने भले ही यूपी राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया हो लेकिन विपक्षी दलों ने भाजपा को पिछड़ा और आरक्षण विरोधी साबित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. सपा इस मुद्दे को लेकर ''संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ'' यात्रा निकालने की तैयारी में जुट गई है. निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा पर हमलावर हो रहीं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने हाल में ही ओबीसी समुदाय से आने वाले विश्वनाथ पाल को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पिछड़ा वर्ग को साधने की चाल चली थी.

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हालांकि भाजपा भी अपने पिछड़े वर्ग के नेताओं के जरिए जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि सरकार ने पूर्व निर्धारित व्यवस्था के अनुरूप ही रैपिड सर्वे कराया था और इसके जरिए ही पिछड़ी जाति के लिए सीटों का आरक्षण तय किया था. हाइकोर्ट के निर्णय के बाद भाजपा को यूपी में ओबीसी की चिंता सताने लगी है क्योंकि इसी वर्ग के समर्थन से भगवा दल ने 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से दूर रहने का वनवास खत्म किया था. हाइकोर्ट के वकील शैलेंद्र प्रताप बताते हैं, ''यूपी में पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 54 प्रतिशत हैं. इनमें करीब 43 प्रतिशत गैर यादव हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने कुर्मी, राजभर जैसी जातियों में सेंध लगाकर भाजपा की ओबीसी के बीच पैठ को कमजोर किया था. हाइकोर्ट के निर्णय के बाद भाजपा की चुनौती और बढ़ गई है.'' 

हालांकि ओबीसी को साधने के लिए भाजपा हर जतन कर रही है. योगी सरकार के 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 18 मंत्री इसी वर्ग से हैं. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 137 सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 89 जीतकर विधायक बने हैं. निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए गठित आयोग में भी भाजपा सरकार ने जातीय गोलबंदी साधने की कोशिश की है. आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश राम अवतार सिंह और सदस्य सेवानिवृत्त आइएएस अफसर चोब सिंह वर्मा जाट समाज से हैं. अन्य सदस्य सेवानिवृत्त आइएएस अफसर महेंद्र कुमार चौरसिया समाज, पूर्व अपर विधि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा लोहार समाज, पूर्व अपर विधि‍ परामर्शी और जिला जज ब्रजेश कुमार सोनी स्वर्णकार समाज से हैं. फिलहाल, आयोग के गठन के बाद स्थानीय निकाय चुनाव चार-पांच महीने टलने की पृष्ठभूमि बन गई है. इस दौरान यूपी में पिछड़ी जाति की राजनीति में गरमाहट बनी रहेगी. पिछड़ी जाति जिस ओर करवट लेगी निकाय चुनाव के साथ वर्ष 2024 के लोक सभा चुनाव में भी उसी पार्टी की राह आसान होगी.

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कोर्ट रहा सख्त 
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में पहली बार निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के संदर्भ में ट्रिपल टेस्ट लागू किए जाने की बात कही थी 

महाराष्ट्र के विकास किशन राव गवली मामले में निकाय चुनाव में बिना ट्रिपल टेस्ट के ओबीसी आरक्षण देने पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों के चुनाव परिणाम रद्द कर दिए थे 

मध्य प्रदेश के निकाय चुनावों से जुड़े मामले में कोर्ट ने एससी-एसटी सीटों के अतिरि‍क्त सीटों को सामान्य अधिसूचित कर चुनाव कराने के आदेश दिए थे 

यूपी के निकाय चुनावों के संबंध में हाइकोर्ट ने 27 दिसंबर को कहा कि सरकार ट्रिपल टेस्ट किए बिना ओबीसी आरक्षण लागू नहीं कर सकती है 

ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला 
ओबीसी आरक्षण का तय करने से पहले सरकार निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति के आकलन के लिए एक आयोग का गठन करे, जो प्रस्ताव तैयार करे 

आयोग की सिफारिशों के आधार पर निकाय ओबीसी की संख्या का परीक्षण एवं सत्यापन करेगा. इसके बाद आरक्षित सीटों को प्रस्तावित किया जाएगा 

सरकार सीटों का सत्यापन कराएगी. यह ध्यान रखा जाएगा कि एससी-एसटी और ओबीसी के लिए कुल आरक्षित सीटें 50 फीसद से ज्यादा न हो 

प्रस्तावित आरक्षण 
नगर पालिका परिषदों के चेयरमैन की 200 सीटों में एसटी की महिला के लिए 9, एससी के लिए 18, ओबीसी महिला के लिए 18, ओबीसी के लिए 36, महिला के लिए 40 और 79 सीटें अनारक्षित श्रेणी में रखी गई थीं 

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नगर पंचायतों के अध्यक्ष की 545 सीटों में 217 अनारक्षित व 107 महिलाओं के लिए आरक्षित की गईं. ओबीसी के लिए 98, ओबीसी महिला के 49, एससी के लिए 48, एससी महिला के लिए 25 एसटी महिला के लिए एक सीट आरक्षित की गई 

17 नगर निगम में आगरा में मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला, झांसी में मेयर का पद अनुसूचित जाति, मथुरा-वृंदावन व अलीगढ़ में मेयर का पद ओबीसी महि‍ला, मेरठ व प्रयागराज में ओबीसी, अयोध्या, सहारनुपर और मुरादाबाद में महिला के लिए आरक्षित.

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