उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी में एक सात वर्षीया बच्ची का विवाह समारोह से अपहरण कर उसके साथ बलात्कार और फिर हत्या की घटना ने प्रदेश की सड़कों से लेकर सियासी गलियारों तक हलचल मचा दी है. बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाते हुए विधानसभा में काफी हंगामा हुआ. सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित आम जनता भी सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रही है और सरकार इस पूरे मामले के सामने लाचार नजर आ रही है.
मुख्यमंत्री हरीश रावत सक्रिय हो गए हैं. उन्होंने प्रदेश के एडीजी लॉ ऐंड आर्डर समेत कुमाऊं के डीआइजी सदानंद दांते को अपराधियों के पकड़े जाने तक हल्द्वानी में ही बने रहने के निर्देश दिए हैं. मृतक बच्ची के परिजनों को 10 लाख रु. का मुआवजा देने का ऐलान किया, जिसे परिवार ने ठुकरा दिया. मामले की जांच के लिए पुलिस की सात टीमें गठित की गई थीं और बिहार और झरखंड तक पुलिस भेजी गई थी.
सात वर्षीया बच्ची 20 नवंबर को अपने माता-पिता के साथ एक शादी में शामिल होने पिथौरागढ़ से हल्द्वानी आई थी. यहीं समारोह स्थल से उसका अपहरण हो गया. पांच दिन बाद 25 नवंबर को उसकी लाश समारोह स्थल से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर जंगल में पड़ी मिली. वहां से गुजर रहे एक घोड़े वाले ने पुलिस को वहां लाश मिलने की जानकारी दी.
इस बीच उसके अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई जा चुकी थी और पुलिस उसे पूरे शहर में ढूंढने का दावा भी कर रही थी. बच्ची का पैर टूटा हुआ था. उसके पूरे शरीर पर मिले नाखूनों के निशान और घाव नृशंस व्यवहार की गवाही दे रहे थे. नैनीताल के एसएसपी सैंथिल अबुदई कहते हैं, ''पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 20 नवंबर की रात ही बालिका की मौत होने की पुष्टि हुई है. मौत का कारण अत्यधिक रक्तस्राव और ब्रेन हेमरेज बताया गया है. ''
इस घटना ने एक बार फिर उत्तराखंड में बच्चियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कार्यपालिका पर न्यायपालिका का डंडा चलता दिखा है. इस घटना के बाद कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका पर हाइकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार से बीते 14 साल में राज्य के तमाम जिलों से गायब हुए बच्चों का ब्योरा तलब किया है.
कोर्ट ने 28 नवंबर तक इस मामले में भी पुलिस के हत्यारों की छानबीन के लिए अब तक किए गए प्रयासों समेत 20 नवंबर को बालिका के गायब होने के बाद 25 नवंबर को मिली लाश के बीच के समय में पुलिस के किए गए प्रयासों का भी ब्योरा भी मांगा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2000 से लेकर 30 जून, 2014 तक प्रदेश से 775 बच्चे लापता हुए हैं. कुल 5,454 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज हुई है, जिसमें से 4,679 को पुलिस ने ढूंढने का दावा किया है. लेकिन 775 बच्चों का अब तक कोई सुराग नहीं मिला है.
मोबाइल सर्विलांस की मदद से बच्ची के दुष्कर्मी को लुधियाना से पकड़ लिया गया है. इधर, विपक्ष सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा. नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट कहते हैं, ''हर काम के लिए कोर्ट को ही निर्देश देना पड़े तो आखिर राज्य सरकार कर क्या रही है? '' इसके जवाब में मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं, ''ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर विपक्ष को राजनीति नहीं करनी चाहिए. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सभी को मिलकर राह सुझानी होगी. '' जरूरी है कि नेता भी इस मुद्दे पर सियासत बंद करके राज्य में कानून-व्यवस्था के मुद्दे को गंभीरता से लें.