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राजस्थान को चाहिए 111 फीसद आरक्षण

राजस्थान में बीते दो महीनों में दस से ज्यादा जातियों के महासम्मेलन हो चुके हैं और इनकी मांगें कमोबेश एक जैसी हैं

जाति का जुटान जयपुर में 19 मार्च को आयोजित ब्राह्मण महासम्मेलन जाति का जुटान जयपुर में 19 मार्च को आयोजित ब्राह्मण महासम्मेलन
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2023,
  • अपडेटेड 6:39 PM IST

आनंद चौधरी

अब से करीब छह महीने बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन इन दिनों यहां आयोजित हो रही अलग-अलग जाति महापंचायतों ने अभी से एक अलग चुनावी माहौल बना दिया है. इन सभी सम्मलनों में ये जातियां जोरशोर से आरक्षण देने या उसमें अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर रही हैं. दिलचस्प बात है कि अगर इन मांगों को मान लिया जाए तो राज्य में आरक्षण की सीमा 100 फीसद को भी पार कर जाएगी. यही नहीं हर जाति की महापंचायत अपनी जाति का मुख्यमंत्री चाहती है. विधानसभा सीटों पर सभी जातियों को अपना सियासी प्रतिनिधित्व चाहिए. ये मांगें कम से कम पांच मुख्यमंत्री और 250 से 300 विधानसभा सीटों से पूरी होंगी. सबके अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन तथ्य है राजस्थान विधानसभा की कुल 200 सीटें और हर राज्य की तरह एक मुख्यमंत्री. दूसरा दिलचस्प तथ्य यह भी है कि राजस्थान आरक्षण देने में कोई पिछड़ा राज्य नहीं है.

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भारत में राज्यों के आरक्षण प्रतिशत को देखें तो 64 फीसद आरक्षण के साथ राजस्थान फेहरिस्त में तीसरे नंबर पर है. इस लिस्ट में पहले स्थान पर मध्य प्रदेश (73 फीसद आरक्षण) और दूसरे स्थान पर तमिलनाडु (69 फीसद आरक्षण) हैं. राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग को 21, अनुसूचित जाति को 16, अनुसूचित जनजाति को 12 फीसद और गुर्जर सहित पांच जातियों को मोस्ट बैकवर्ड क्लास (एमबीसी) श्रेणी में 5 फीसद आरक्षण मिलता है. इसके साथ ही आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए 10 फीसद आरक्षण का प्रावधान है. 

आरक्षण के इन आंकड़ों में अपनी-अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए चुनाव से पहले हो रहे ये जातीय सम्मेलन राजनीतिक दलों के लिए गले की हड्डी बनते भी दिख रहे हैं. राजनीति के जानकार कहते हैं कि अभी कांग्रेस और भाजपा के प्रतिनिधि इन जातीय सम्मेलनों में बड़े-बड़े वादे और दावे कर रहे हैं, लेकिन चुनाव के बाद उन्हें जनता के सवालों और फिर गुस्से का सामना करना पड़ेगा. 

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राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मिलाप चंद डंडिया कहते हैं, ''पिछले कुछ अरसे से ऐसा लग रहा है कि राजस्थान में इंसान नहीं बल्कि जातियां रहती हैं. जातीय सम्मेलन राजनीतिक पार्टियों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के सामने चुनौती बनने वाले हैं. जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आएगा, कुछ और समाज भी इसी तरह की आरक्षण की मांग उठाएंगे. यह जातिगत शक्ति प्रदर्शन और उन्हें राजनीतिक दलों का बढ़ावा, दोनों रुकने चाहिए.'' 

प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. राजीव गुप्ता जातिगत समूहों के समाजशास्त्रीय पहलुओं की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ''लोकतंत्र अब सेक्युलर नहीं बल्कि जातिगत तत्वों की खंडित राजनीति और पहचान का तंत्र बन गया है. जातिगत पहचान आधारित केंद्रित राजनीति भारत में जातीय तानाशाही को स्थापित करती जा रही है. राजनीतिक पार्टियां जातिगत समूहों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती हैं. जब जातियां वोट बैंक बन जाती हैं तो हर जाति अपनी पहचान को और मजबूत करने में लग जाती है.'' 

भांडे में ही भेद है, पानी सब में एक 
राजस्थान में पिछले दो माह में दस से ज्यादा जातियों के सम्मेलन हो चुके हैं. इन सम्मेलनों में मांगें सबकी एक जैसी हैं. मसलन, गत 4 जून 2023 को जयपुर में माली, सैनी, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य समाज को 12 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर महासंगम बुलाया गया. इसके अलावा महात्मा ज्योतिबाराव फूले और सावित्री बाई फूले को भारत रत्न, नए संसद भवन में इनकी प्रतिमा, माली समाज से हर जिले में एक टिकट और लोकसभा में एक सीट पर मौका देने की मांग रखी गई. इसी तरह 5 मई को जयपुर में जाट महाकुंभ का आयोजन हुआ. इसमें जाट मुख्यमंत्री और ओबीसी आरक्षण 21 से बढ़ाकर 27 फीसद किए जाने की मांग उठी. 

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इससे करीब एक महीने पहले 2 अप्रैल 2023 को जयपुर में राजपूत करणी सेना की केसरिया महापंचायत का आयोजन हुआ. इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े (ईडब्ल्यूएस) सवर्णों के लिए आरक्षण 10 से बढ़ाकर 14 फीसद करने की मांग हुई. फिर 16 अप्रैल 2023 को नाथ योगी समाज ने जयपुर में महासंगम बुलाया. इसमें राज्य सरकार के सामने गोरखनाथ बोर्ड के गठन की मांग रखी गई और विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस से समाज को उचित प्रतिनिधित्व देने की मांग हुई. 16 अप्रैल को ही जयपुर के वीर तेजाजी ग्राउंड पर अहीर जनजागृति सम्मेलन हुआ. इसमें सेना में अहीर रेजिमेंट की स्थापना, राव दुलाराम के शहीद दिवस पर 23 सितंबर को राजकीय अवकाश घोषित करने और जयपुर की न्यू सांगानेर रोड का नाम बदलकर रेजांगला मार्ग किए जाने की मांग रखी गई.

मई के आखिर में 22 तारीख को जयपुर में कुमावत महापंचायत हुई. इस महापंचायत में भाजपा और कांग्रेस के सामने कई मांगें रखी गईं. इनमें समाज के प्रतिनिधियों को विधानसभा चुनाव में 10-10 टिकट देना, लोकसभा चुनाव में समाज के एक प्रतिनिधि को मौका देना, ओबीसी आरक्षण 21 से बढ़ाकर 27 फीसद किया जाना, कुमावत समाज को ओबीसी वाले कोटे में अलग से 7 फीसद आरक्षण दिया जाना और शिल्पकला बोर्ड बनाया जाना शामिल था.

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राजस्थान में सबसे बड़ी सियासी ताकत ओबीसी वर्ग की है. इस वर्ग के 61 विधायक और 11 लोकसभा सांसद हैं. अनुसूचित जाति वर्ग से 34 विधायक और 4 सांसद तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग से 33 विधायक और 3 सांसद हैं. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को लोकसभा और विधानसभा के साथ नगरीय निकायों और पंचायतराज संस्थानों में आरक्षण हासिल है.

ओबीसी वर्ग को नगरीय निकाय और पंचायतराज संस्थानों के चुनावों में 21 फीसद आरक्षण मिला हुआ है जबकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में इस वर्ग के लिए सीटें आरक्षित नहीं हैं. अति पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) को नगरीय निकायों और पंचायतराज संस्थाओं में एक प्रतिशत आरक्षण दिया गया है जबकि ईडब्ल्यूएस को प्रदेश में शिक्षण संस्थानों और सरकारी भर्तियों में 10 फीसद आरक्षण प्राप्त है.

बाकी राज्यों की तरह राजस्थान में भी जाति चुनावों को प्रभावित करने वाला काफी अहम फैक्टर रहा है. लेकिन इस बार जातिगत समूहों में अपनी मांगों को लेकर जो मुखरता दिख रही है, उससे राजनीतिक पार्टियों की चुनौती और बढऩा तय है.

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