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तीस्ता पर पुरानी तकरार

हसीना के राजनीतिक विरोधी तीस्ता के अनसुलझे मुद्दे को उनकी विफलता बताते हुए इसके लिए भारत के साथ उनकी निकटता को जिम्मेदार बताते हैं

पानी के बीच : उत्तर बंगाल में तीस्ता में अपने काम में जुटे मछुआरे पानी के बीच : उत्तर बंगाल में तीस्ता में अपने काम में जुटे मछुआरे
रोमिता दत्ता
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:45 AM IST

भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे का विवादास्पद मुद्दा एक दशक से भी अधिक समय से चुनाव के दौरान गर्माता रहा है-खासकर बांग्लादेश में. अब तक इसका समाधान नहीं हो सका है. लगता है, दोनों देशों के बीच यह सर्वाधिक विवादास्पद मुद्दा अब चुनावों की तिकड़ी में फिर से महत्वपूर्ण हो गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को 2023 में आम चुनावों का सामना करना है, जबकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 में लोकसभा चुनावों में उतरना है. इन दोनों के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी सवाल है जो आम चुनावों के अलावा 2023 के पंचायत चुनावों के लिए कमर कस रही हैं.

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गत 5 से 8 सितंबर तक भारत की चार-दिवसीय यात्रा के दौरान हसीना ने रेलवे, ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, मीडिया तथा असम से निकलकर बांग्लादेश जाने वाली कम विवादास्पद कुशियारा नदी के पानी के बंटवारे जैसे सात मुद्दों पर भारत के साथ समझौता पत्रों पर हस्ताक्षर किए. कुशियारा समझौते से निचले असम और बांग्लादेश में सिलहट इलाके को फायदा होगा. लेकिन, इस दौरान तीस्ता समझौते पर कोई बात नहीं हुई. औपचारिक घोषणाओं के दौरान तीस्ता मुद्दे से सावधानी से बच निकलते हुए भी एक निजी चैनल को दिए साक्षात्कार में हसीना यह कहने में नहीं हिचकीं कि इस मामले में भारत को अपनी भूमिका कैसे निभानी चाहिए. 

तीस्ता उत्तरी सिक्किम में त्सो ल्हामो झील से निकलती है और बांग्लादेश में प्रवेश करने से पहले सिक्किम (172 किमी) और पश्चिम बंगाल (118 किमी) से होकर बहती है. सिक्किम के मैदानी इलाकों के अलावा, यह उत्तरी बंगाल के कई जिलों के लिए महत्वपूर्ण है. ठीक ऐसे ही, बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र (जमुना) से संगम के पहले उत्तरी बांग्लादेश में इसके 124 किमी के प्रवाह क्षेत्र में निवास करने वाले लाखों लोग इस पर निर्भर हैं. दोनों ही देशों में तीस्ता के पानी के बंटवारे का मुद्दा राजनीतिक बाध्यताओं से जुड़ा है. सबसे पहले साल 1983 में तीस्ता जल बंटवारे की व्यवस्था की गई थी, लेकिन वह कभी लागू नहीं हो सकी. फिर, 2011 में एक योजना तैयार की गई जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और हसीना पानी के 40:40 बंटवारे पर सहमत हुए थे. परंतु, इसके लागू होने में ममता की सहमति जरूरी थी क्योंकि पानी राज्य का विषय है.

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ममता उसी समय से इसका विरोध कर रही हैं. भाजपा की बंगाल इकाई भी असमंजस में है क्योंकि बंगाल में पार्टी की चुनावी सफलता उत्तर बंगाल में उसके बढ़ते प्रभाव पर ही निर्भर है जहां उसने 2019 में लोकसभा की आठ में से सात सीटें हासिल की थीं. इसके बाद, 2021 के विधानसभा चुनावों में ममता की आंधी के बीच भी इस इलाके में भाजपा ने विधानसभा की 54 में से 30 सीटों पर जीत हासिल की. तृणमूल कांग्रेस के एक राज्यसभा सांसद इस पर कहते हैं, ''बांग्लादेश लंबे समय से इस पर जोर दे रहा है, लेकिन इस बार भारत ने साफ तौर पर चुप्पी साध रखी थी.'' उनके कहने का आशय यह था कि समझौते पर गतिरोध के लिए सिर्फ तृणमूल कांग्रेस को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

ममता तीस्ता के जल प्रवाह की अनिश्चित प्रकृति के कारण इसमें किसी भी प्रतिशत की साझेदारी के खिलाफ हैं. प्रवाह की अनिश्चितता का आकलन नदी विशेषज्ञ डॉ. कल्याण रुद्र ने किया है. रुद्र के अनुसार, नवंबर से अप्रैल के बीच के सूखे महीनों में उद्गम से आगे बढ़ते हुए तीस्ता में बमुश्किल 10 से 20 प्रतिशत का न्यूनतम प्रवाह होता है. ऐसा सिक्किम में नदी के ऊपरी हिस्सों में बने चार बांधों और इसकी सहायक नदी रंगित पर बने दो बांधों के कारण है. बंगाल में नौ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए 90 के दशक में जलपाईगुड़ी जिले के गजोल्डोबा में बने तीस्ता बैराज के नकारात्मक परिणाम मिले हैं.

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पानी की कमी के चलते ही बांग्लादेश में बनाया गया दुआनी बैराज भी कम प्रवाह वाले मौसम में काम नहीं कर पाता. रुद्र और सौमित्र घोष जैसे विशेषज्ञों का अनुमान है कि 16 लाख हेक्टेयर (बंगाल में नौ लाख हेक्टेयर और बांग्लादेश में सात लाख हेक्टेयर) से अधिक क्षेत्र में कृषि गतिविधियों के लिए कम से कम 1,600 क्यूमेक्स (घन मीटर प्रति सेकंड) पानी की आवश्यकता होगी. वर्तमान में, गैर-बरसाती दिनों में तीस्ता में केवल 100 क्यूमेक्स पानी होता है जिससे केवल 48,000-50,000 हेक्टेयर क्षेत्र की जरूरतें पूरी हो सकती हैं. 

नरेंद्र मोदी 2014 में जब सत्ता में आए तो वह बांग्लादेश के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रतिबद्ध थे. लेकिन ममता की ओर से इसके कड़े विरोध के कारण कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है. 

यद्यपि हसीना मोदी के साथ अपने सभी संवादों में तीस्ता जल में साझेदारी में देरी पर लगातार चिंता व्यक्त करती रही हैं, लेकिन इस पर उन्हें कोई उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली है. अब, भाजपा के लिए उत्तर बंगाल में राजनीतिक लाभ की क्षति का मुद्दा है जहां वह तृणमूल कांग्रेस पर लोगों के हितों की उपेक्षा के आरोप लगाते हुए अलग राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को हवा देती है. लेकिन, हसीना को अंतहीन तरीके से प्रतीक्षारत रखना नुकसानदेह हो सकता है. उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए भारत-विरोधी विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई की है और आतंकवादरोधी गतिविधियों में सहयोग किया है.

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यह भी अहम बात है कि चीन के रूप में बांग्लादेश के पास तुरुप का इक्का है. बांग्लादेश साल 2016 से तीस्ता जल प्रबंधन पर चीन से समर्थन मांगने के बारे में गंभीरता से सोच रहा है. असल में, यह एक ऐसा कदम है जो भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय हो सकता है. हसीना के राजनीतिक विरोधी तीस्ता के अनसुलझे मुद्दे को उनकी विफलता बताते हुए इसके लिए भारत के साथ उनकी निकटता को जिम्मेदार बताते हैं. नई दिल्ली से विदा होते हुए हसीना ने जो आखिरी बात कही, वह यह थी, ''पानी भारत की ओर से आता है और इस बारे में भारत को उदारता दिखानी चाहिए.''

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