
उर्दू शायरी को अक्सर रोमानी अतीत को याद करने का जरिया माना जाता है. पर आज वह कितनी लोकप्रिय है? इस सवाल के कई मुमकिन जवाब हैं. एक तरीका यह है कि ट्विटर पर कुछ लोकप्रिय शायरों की फॉलोइंग के आंकड़ों पर नजर डाली जाए. राहत इंदौरी के 4,00,000 से ज्यादा फॉलोवर हैं. यह इंदौर के उस पूर्व प्रोफेसर और पेंटर के लिए कम नहीं जो वर्चुअल दुनिया से ज्यादा वाबस्ता नहीं.
आज उन्हें उर्दू का सबसे लोकप्रिय शायर कहने वालों की कमी नहीं. मुशायरों के आयोजकों के लिए वे सभागारों के नौजवानों से खचाखच भरे रहने की गारंटी हैं, हिंदुस्तान ही नहीं, दुनिया भर में. उनकी किताबें खासी तादाद में बिकती हैं, जैसा कि हिंदी के सबसे बड़े प्रकाशक राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम तस्दीक करते हैं. देवनागरी जबान में उनकी दो किताबें यहां से छपी हैं. हिट फिल्मों में उन्होंने लोकप्रिय गाने भी लिखे हैं, कई अवॉर्ड जीते हैं और दुनिया भर में उनके अभिनंदन हुए हैं.
राहत इंदौरी की कामयाबी की कहानी यह है कि उन्होंने तीनों क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी का एहसास करवाया है. अपने नाटकीय अंदाज में पढ़ी गई शायरी से उन्होंने तड़क-भड़क और लटके-झटकों से भरे रॉक स्टार की तरह मुशायरों का मिजाज बुनियादी तौर पर बदलकर रख दिया है. उनके आलोचक मंच पर शायरी सुनाते वक्त उनके लटकों-झटकों और हरकतों की तरफ इशारा करते हैं, जो वे अपनी लोकप्रियता पर मोहर लगवाने के मकसद से लोगों की वाहवाही हासिल करने के लिए करते हैं; पर लोग कहते हैं ना कि लोकप्रियता महानता का पैमाना नहीं. इऌंदौर के एक हिंदी संपादक प्रकाश पुरोहित की राय में, उनमें भी ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि उनकी लिखी हुई शायरी में मुशायरों में पढ़ी गई शायरी से ज्यादा गहराई है.
उनके सबसे नजदीकी दोस्तों और प्रमोटरों में हिंदी कवि कुमार विश्वास भी हैं, जो उनसे ठीक 20 साल छोटे हैं. उन्होंने बीते 25 साल में इंदौरी को तीन चरणों में विकसित होते देखा है—पहले उर्दू अध्येता; दूसरे कमोबेश लोकप्रिय मगर मुशायरों में बुरे अंदाज में शायरी पढऩे वाले शायर; और तीसरे ''अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाले शायर-ए-आजम". उनकी शोहरत सत्ता प्रतिष्ठान के प्रति निश्चित बेरुखी से बनी है, केवल सत्ता प्रतिष्ठान नहीं बल्कि उर्दू का साहित्यिक प्रतिष्ठान भी.
विश्वास ने हिंदी कविता की दुनिया में एक अजनबी के तौर पर शुरुआत की थी और खुद अपना रास्ता गढ़ते हुए नौजवान श्रोताओं के दिल में जगह बनाई. ट्विटर पर उनके 54 लाख फॉलोवर हैं. इंदौरी में उन्हें एक तजुर्बेकार स्टार परफॉर्मर और दोस्त मिला. विश्वास के आग्रह पर ही उनके बेटे फैसल ने पिता की ऑनलाइन मौजूदगी की सार-संभाल शुरू की और उनका ब्रांड तैयार किया. उनके दूसरे बेटे सतलज ने उम्रदराज पिता की सेहत का ख्याल रखने और देश भर में मुशायरों में उनके साथ जाने के लिए अपनी पत्रकारिता दांव पर लगा दी. विश्वास इंदौरी को दिलचस्प और पुरलुत्फ हमसफर करार देते हैं, जिनके पास पुराने साहित्यिक किरदारों की कारस्तानियों के बेशुमार किस्से हैं.
इंदौरी की तुलना अक्सर दुष्यंत कुमार से की जाती है, जिनकी 1975 में 42 साल की उम्र में मौत हो गई थी. दुष्यंत को सत्ता प्रतिष्ठान ने स्वीकार नहीं किया, मगर अपने क्रांतिकारी विचारों की वजह से वे खासे लोकप्रिय हैं. कुछ इसी तरह इंदौरी को हिंदुस्तान का जॉन एलिया कहा जाता है, जो दुस्साहसी पाकिस्तानी शायर थे. निरुपम इंदौरी को बहादुरी की दुर्लभ मिसाल करार देते हैं जो 2014 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद बीते पांच साल में बदलते सियासी मिजाज की आलोचना करने से जरा नहीं हिचके.
कुछ लोग कहते हैं कि वे आलोचना में कुछ ज्यादा आगे बढ़ जाते हैं और हाल के धार्मिक ध्रुवीकरण से पैदा हुई सांप्रदायिक बाड़ेबंदी में चले जाते हैं. हिंदुत्व की मुखालिफत के लिए उन्हें ऑनलाइन ट्रॉल किया जाता है, पर उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वे कतई धार्मिक नहीं हैं, उनके सरोकार सांप्रदायिक होने के बजाए सामाजिक हैं. विवादों ने जिस तरह उनका पीछा किया है, उसको देखते हुए वे रिपोर्टरों से बात करने को लेकर तुनकमिजाज हो गए हैं.
उनके काम से वाकिफ कोई भी शख्स उनके रवैये और उनके भीतर खौलते गुस्से की बात करता है और यह भी कि वे कितनी आसानी से आक्रोश से हटकर रोमानी मिजाज में जा सकते हैं. विश्वास कहते कि उनकी कविता का अंदाज अलग से पहचाना जा सकता है. पुरोहित कहते हैं, दूसरी तमाम बातों को छोड़ भी दें तो वे उर्दू को आम लोगों तक ले गए हैं.
अनगिनत नौजवानों को उनके शेरों में अपनी आवाज सुनाई देती है. नौजवान श्रोताओं को आकर्षित करने की गरज से उन पर लोकप्रियतावाद, यौन इशारों का इस्तेमाल करने और नाटकीय अंदाज में शायरी पढऩे का इल्जाम भी लगाया जाता है. ये जोखिम तो खैर इस फन के साथ जुड़े ही हैं. अपने मुशायरों में इंदौरी अक्सर श्रोताओं से बड़े ध्यान से सुनने के लिए कहते हैं क्योंकि ''कभी-कभी मैं अच्छा शेर भी पढ़ जाता हूं."
लेखक और साहित्यिक पत्रिका समास के संपादक उदयन वाजपेयी कहते हैं कि उर्दू परंपरा ने खुद पर सवाल उठाने पर जोर दिया है; कालजयी रचनाएं दुनिया का सामना करने से पहले खुद से मुठभेड़ के साथ शुरू होती हैं. यह वे इंदौरी की शायरी में देखना चाहेंगे.
बागी, सियासी, उर्दू का सेवक, लोकप्रियतावादी, हिंसक छवियों से हिंसा की मुखालिफत करने वाला, बहुत नफासत से सनसनी पैदा करने वाला, इंकलाबी, प्रतिक्रियावादी, मानवतावादी...इनमें से किसे आप असली राहत इंदौरी कहेंगे!