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मणिपुर में क्यों मचा बवाल

कुकी का कहना है कि यह उनकी जमीन पर कब्जा करने की चाल है जबकि मैतेयी अक्सर उन पर बाहरी होने का आरोप लगाते हैं

बिखरा समाज : 4 मई को इंफाल में मैतेयी-आदिवासी हिंसा के दौरान घरों को आग लगा दी गई बिखरा समाज : 4 मई को इंफाल में मैतेयी-आदिवासी हिंसा के दौरान घरों को आग लगा दी गई
कौशिक डेका
  • नई दिल्ली,
  • 16 मई 2023,
  • अपडेटेड 6:00 PM IST

जातीय टकराव का प्रेत मणिपुर को परेशान करने के लिए फिर लौट आया, जब 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) का 'ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च' हिंसक हो उठा. इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, काकचिंग, थोउबल, कांगपोकपी, चुराचांदपुर, तेंगनोउपाल और जिरिबाम सहित कई जिलों से मार-काट, दंगों और तोड़-फोड़ की खबरें आईं. पहले छह जिलों में मैतेयी समुदाय का दबदबा है तो बाकी तीन में ज्यादातर कुकी आदिवासी रहते हैं, सेना और असम राइफल्स ने फ्लैग मार्च निकाला, इंटरनेट सेवाएं रोक दी गईं. कर्फ्यू लगा दिया गया और करीब 15,000 लोगों को प्रभावित इलाकों से निकालकर राहत शिविरों में ले जाया गया. सरकार ने दावा किया कि 60 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हुए. अनधिकृत कयास तादाद को इससे ज्यादा बताते हैं.

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सॉलिडेरिटी मार्च या एकजुटता जुलूस हाल के मणिपुर हाइकोर्ट के उस आदेश के विरोध में निकाला गया जिसमें राज्य सरकार से कहा गया कि वह मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की राज्य सूची में शामिल करने के लिए केंद्र को सिफारिश भेजे. 14 अप्रैल के इस आदेश ने घाटी में रहने वाले मैतेयी और राज्य के पहाड़ी आदिवासियों यानी मुख्यत: नगा और कुकी के बीच ऐतिहासिक तनाव की चिनगारी फिर सुलगा दी. 

मैतेयी और कुकी के बीच झगड़ा इस साल की शुरुआत से ही खदबदा रहा था. इस खून-खराबे ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का राजनैतिक संकट और बढ़ा दिया. खासकर जब भाजपा के ही उनके कुछ साथी उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं. साइकोट से पार्टी विधायक और कुकी नेता पाओलीन लाल हाओकिप ने बीरेन सिंह पर कुकी-विरोधी होने का आरोप लगाया. मैतेयी समुदाय से आने वाले बीरेन सिंह ने आरोप को खारिज कर दिया. मुख्यमंत्री को हटाने की पिछली कोशिश इसलिए नाकाम रहीं क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व का समर्थन हासिल है. मुख्यमंत्री बदलने या राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए दबाव डालने की गरज पिछले महीने करीब दर्जन भर विधायक दिल्ली आए, इनमें ज्यादातर कुकी थे.

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भौगोलिक तौर पर मणिपुर को इंफाल घाटी और पहाड़ी इलाकों में बांटा जा सकता है. मणिपुर के 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 40 घाटी में हैं, जो छह जिलों इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, थोउबल, बिष्णुपुर, काकचिंग और कांगपोक्पी में आते हैं. बाकी 20 सीटें दूसरे 10 जिलों में फैली हैं. घाटी राज्य के भौगोलिक क्षेत्र की महज 11 फीसद है, पर कुल 28 लाख आबादी (2011 की जनगणना) के 57 फीसद लोग यहां रहते हैं, जिनमें मुख्यत: हिंदू बहुल मैतेयी समुदाय का दबदबा है. पहाड़ी जिलों के तहत 88 प्रतिशत से ज्यादा जमीन है और यहां महज 43 प्रतिशत आबादी रहती है. कुकी दक्षिण पश्चिम में और नगा बाकी में (नक्शा देखें) हैं और दोनों में ईसाइयों की बहुलता है. यह एक ऐसा सामाजिक भूगोल है जिसमें जातीय-धार्मिक टकराव के सारे तत्व मौजूद हैं.  

तीनों समुदायों के बीच जातीय प्रतिद्वंद्विता का लंबा इतिहास रहा है. आदिवासियों का दावा है कि घाटी के लोगों ने राजनैतिक वर्चस्व के दम पर विकास के काम हथिया लिए जबकि मैतेयी आरोप लगाते हैं कि उन्हें लगातार दरकिनार किया जा रहा है और उनकी आबादी 1951 में 59 फीसद से घटकर 2011 में 44 फीसद पर आ गई. वे पहाड़ी इलाकों में जमीन तक नहीं खरीद सकते (पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने का अधिकार केवल आदिवासियों को है).

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मैतेयी ट्राइबल यूनियन ने हाल में मणिपुर हाइकोर्ट के समक्ष एक याचिका में कहा कि 1949 में मणिपुर रियासत के भारत संघ में विलय से पहले समुदाय को जनजाति के रूप में मान्यता हासिल थी, लेकिन बाद में वह पहचान गुम हो गई. समुदाय को ''संरक्षित रखने'' और उसकी ''पैतृक जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा'' की रक्षा के लिए वे आदिवासी पहचान वापस चाहते हैं. आदिवासी संगठन इसे मैतेयी समुदाय की पूरे राज्य पर कब्जे की चाल के तौर पर देखते हैं, जिसके पास 60 सदस्यों की विधानसभा में 40 विधायक हैं. आदिवासी धड़ों का कहना है कि मैतेयी समुदाय को पहले ही अनुसूचित जाति (एससी) या अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) में रखा गया है.

बीरेन सिंह सरकार ने जब वन क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमण और पहाड़ों में बड़े भूभागों के अफीम की खेती से बर्बाद होने के खिलाफ अभियान चलाया, तो मैतेयी और कुकी के बीच खटपट तेज हो गई. चुराचांदपुर के के. सोंगजंग गांव में 23 फरवरी को बेदखली अभियान वह बिंदु था जहां से चीजें तेजी से बिगड़ीं. नवंबर 2022 में वन विभाग की अधिसूचना के जरिए चुराचांदपुर और नोनी के 38 गांवों की मान्यता यह कहकर रद्द कर दी गई कि वे चुराचांदपुर-खोउपम संरक्षित वन क्षेत्र में आते हैं. बीरेन सिंह ने उस वक्त कहा, ''मणिपुर के करीब 19 फीसद इलाके आरक्षित वन हैं और हम वहां से अवैध अतिक्रमण को हटा रहे हैं.'' इस कदम का मकसद कथित तौर पर राज्य को नशीली दवाओं के शिकंजे से छुड़ाना भी था. कई पहाड़ी इलाकों में ग्रामीण अतिरिक्त आमदनी के लिए अफीम की अवैध खेती करते हैं और म्यांमार से सटी सीमा से नारकोटिक्स की अंधाधुंध तस्करी होती है.

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भाजपा के 2017 में सत्ता में आने के बाद से ही सरकार ने आरक्षित वनों से कथित अतिक्रमण करने वालों को बेदखल किया है. प्रभावित ज्यादातर गांव कुकी हैं. कई सामाजिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार की इस कार्रवाई के नतीजतन रेशियल प्रोफाइलिंग हुई या जातीय पहचान का खाका तैयार हुआ. राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि ऐसे ही बेदखली अभियान इंफाल घाटी में भी चलाए गए.

कुकी समुदाय के नेताओं का आरोप है कि वैध निवासियों को भी बेदखल किया गया और उनके चर्च नेस्तोनाबूद कर दिए गए. उनका यह भी कहना है कि बीरेन सिंह सरकार ने समुचित अधिसूचना के बिना ही चुराचांदपुर-खोउपम अनुसूचित पहाड़ी क्षेत्र को संरक्षित वन घोषित कर दिया. वे दावा करते हैं कि मणिपुर पर विशेष रूप से लागू संविधान के अनुच्छेद 371सी के तहत सरकार भारतीय वन कानून 1927 के दायरे में संशोधन नहीं कर सकती. कुकी संगठनों का आरोप है कि नियमों में सरकार के ''अवैध'' बदलाव आदिवासी जमीन हड़पने की चाल है. राज्य के पर्यावरण मंत्री बिस्वजीत सिंह को, जो बीरेन सिंह को नापंसद हैं, 12 अप्रैल को लिखे पत्र में हाओकिप ने चुराचांदपुर-खोउपम क्षेत्र में राजस्व और वन सर्वे पर सवाल उठाए.

इस बीच कई मैतेयी संगठनों ने आरोप लगाया कि ''म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश के अवैध आप्रवासी मणिपुर के मूल निवासियों को'' हाशिये पर धकेल रहे हैं. उन्होंने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लागू करने और जनसंख्या आयोग बनाने की मांग की है. उनका कहना है कि पहाड़ों में आबादी अस्वाभाविक रूप से बढ़ी है, जहां 2011 की जनगणना के मुताबिक, दशकीय वृद्धि दर 40 फीसद थी, जबकि घाटी में यह 16 फीसद थी. कुकी आदिवासियों को ''आप्रवासी'' या ''विदेशी'' कहकर उन पर हमले किए गए, इशारों में उन्हें म्यांमार के प्रवासी कहा है. कुकी विरोधी भावनाएं तब और तीव्र हो गईं जब कुकी-चिन-जोमी-मिजो समुदाय के म्यांमार से आए शरणार्थी, जो मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड के पहाड़ी आदिवासियों से जातीय मूल साझा करते थे, उस देश में अशांति के बाद इन राज्यों में भाग गए. मैतेयी समूहों का कहना है कि आरक्षित वन भूमि पर नए गांव उभर रहे हैं और राज्य में इस घुसपैठ के कारण अफीम की खेती नित नए इलाकों में फैल रही है.

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हाल ही में बने इंडीजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आइटीएलएफ) ने 10 मार्च को कुछ पहाड़ी जिलों में बेदखली अभियानों के विरोध में रैलियां आयोजित कीं. कांगपोक्पी कस्बे में हिंसा फूट पड़ी. अगले दिन सरकार तीन आदिवासी उग्रवादी संगठनों—कुकी नेशनल आर्मी (केएनए), जोमी रिवॉल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) और कुकी रिवॉल्यूशनरी आर्मी (केआरए)—के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एओओ) यानी कार्रवाई रद्द करने के समझौते से पीछे हट गई. उसका आकलन यह था कि ये तीनों संगठन म्यांमार से आए प्रवासियों का समर्थन कर अफीम की खेती को बढ़ावा दे रहे थे. 28 अप्रैल को इंफाल से 65 किमी दक्षिण की तरफ कुकी बहुल चुराचांदपुर में एक भीड़ ने एक खुले जिम पर हमला बोल दिया, जिसका उद्घाटन अगले दिन मुख्यमंत्री को करना था. तभी से मणिपुर उबल रहा है.

पिछले साल बीरेन सिंह के सत्ता में लौटने का श्रेय अन्य बातों के अलावा उनके ''गो टू हिल्स'' कार्यक्रम को भी दिया गया था, जिसका मकसद कल्याण योजनाओं के फायदे आदिवासी-बहुल पहाड़ों पर ले जाना था. अब वे आदिवासियों के आक्रोश के निशाने पर हैं. उनकी सरकार को कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर कई सवालों के जवाब देने हैं. मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि हिंसा में 1,041 बंदूकें लूटी गईं, जिनमें से 214 बरामद कर ली गईं. हिंसा में विद्रोही धड़ों की शिरकत के दृश्य प्रमाण भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं.

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