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हरजोत कौर: बिहार में बहाई दूध की नदियां

हरजोत के नेतृत्व में एक साल से भी कम समय में सुधा ब्रांड राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के वितरकों में तीसरे स्थान पर काबिज हो चुका है.

अमिताभ श्रीवास्तव
  • बिहार,
  • 17 सितंबर 2013,
  • अपडेटेड 12:33 PM IST

हरजोत कौर 1992 बैच की आइएएस अधिकारी हैं. उन्होंने दिसंबर, 2011 में जब बिहार सहकारी दुग्ध संघ (सीओएमएफईडी) की मैनेजिंग डायरेक्टर की कुर्सी संभाली तो यह संस्था बहुत खराब दौर से गुजर रही थी. 2011-12 में दूध खरीद 10,75,000 किलोग्राम प्रतिदिन थी जबकि उससे पहले वाले साल में यह 11,01,000 किलोग्राम प्रतिदिन हुआ करती थी.   

कॉमफेड (सीओएमएफईडी) के इतिहास में अभी तक की महज दूसरी यह गिरावट दुग्ध सहकारी समितियों के धूल चाटते आत्मविश्वास के अलावा 2007 और 2008 की प्रलयंकारी बाढ़ का नतीजा थी. वजहें और भी थीं. हरजोत ने मैनेजिंग डायरेक्टर की कुर्सी संभालने से पूर्व के दो मैनेजिंग डायरेक्टर का कार्यकाल बहुत छोटा रहा जिससे उन्हें बिहार की इस प्रमुख दुग्ध सहकारी समिति में चीजों को ठीक करने का बहुत कम समय मिल पाया था.

नॉर्थ कैरोलाइना की ड्यूक यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट और जेएनयू से एम.फिल हरजोत अपनी नियुक्ति के तुरंत बाद ही हरकत में आ गईं. उनका उद्देश्य कॉमफेड को उसका वाजिब स्थान दिलाना था. दूध उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए उन्होंने किसानों तथा सहकारी दुग्ध समिति के सदस्यों से मिलना शुरू किया. जनशक्ति प्रशिक्षण से लेकर आगे और पीछे की कड़ी जोडऩे तक, पशु नस्ल सुधार सुनिश्चित करने से लेकर पशुओं के स्वास्थ्य के रख-रखाव के प्रति जागरूकता पैदा करने तक, दूध संग्रह प्रणाली को सुविधाजनक बनाने से लेकर फैसला प्रक्रिया में दूध उत्पादकों को शामिल करने तक हरजोत ने दूध उत्पादन को बढ़ाने तथा वितरण तंत्र को अधिक सक्षम बनाने के लिए सब कुछ किया. उनका मानना है कि सबको साथ लेकर चलो और हर किसी को उसका हक मिलना ही चाहिए. इसके लिए वे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं.

हरजोत ने डेयरी विकास के माध्यम से खास तौर पर ग्रामीण स्त्रियों के लिए बने महिला सशक्तीकरण प्रोजेक्ट बिहार महिला डेयरी प्रोजेक्ट को भी मजबूती प्रदान की. कुछ ही महीनों में नतीजे दिखने शुरू हो गए. 2012-13 में औसत दूध उत्पादन बढ़कर 12,45,000 किलोग्राम प्रतिदिन हो गया. बिहार सहकारी दुग्ध संघ का कारोबार जो 1996-97 में 159 करोड़ रु. का था वह 1,564 करोड़ रु. तक पहुंच गया.

आणंद की तर्ज पर बिहार में डेयरी विकास कार्यक्रम के रूप में कॉमफेड ऑपरेशन फ्लड की क्रियान्वयन एजेंसी के तौर पर 1983 में अस्तित्व में आया. आज दूध की खरीद के मामले में बिहार देश के शीर्ष 10 संघों में से एक है.   

कॉमफेड की इस अभूतपूर्व प्रगति की मुख्य वजह किसानों और दूध उत्पादकों को दिया जाने वाला मोटा रिटर्न है. कॉमफेड यह पक्का करता है कि दूध बेचने से कमाए जाने वाले प्रत्येक रु. में से कम-से-कम 80 प्रतिशत किसानों तक अवश्य पहुंच जाए. इससे यह भी साबित होता है कि कॉमफेड ने वितरण प्रणाली से बिचैलियों का सफाया कर दिया है.
कॉमफेड राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी अपने पांव पसारने में कामयाब रहा है. उसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के निरंतर बढ़ते दूध वितरण बाजार में सुधा ब्रांड के अपने उत्पादों को उतारकर बड़ा बाजार ढूंढ लिया है. एक साल से भी कम समय में सुधा ब्रांड दूध वितरकों में तीसरे स्थान पर काबिज हो चुका है. 2020 तक दिल्ली क्षेत्र में प्रतिदिन एक करोड़ लीटर दूध की खपत होने की उम्मीद है.

दिल्ली के बाजार में प्रवेश करने की कॉमफेड की रणनीतिक चाल हरजोत कौर के कार्यकाल में समिति के पुनरुद्धार के बाद संभव हुई है. इससे यह भी जाहिर होता है कि प्रदेश की सहकारी समितियां अब परिपक्व होकर प्रतियोगिता के लिए तैयार हैं और श्वेत क्रांति की ओर बढ़ रही हैं. उनका इरादा दूध के सही दाम दिलाना भी है और इसके लिए वे पूरी कोशिश से लगी हुई हैं.

आज बिहार में लगभग 13,00,000 लीटर की दैनिक दूध खरीद के साथ कॉमफेड 7,59,000 से अधिक किसानों को अपने नेटवर्क में जोड़ चुका है जिसे अभी और भी बढऩा है. किसान भी राहत की सांस ले रहे हैं और उन्हें अपने दूध के अच्छे दाम भी मिल रहे हैं. कॉमफेड के पास दूध खरीद में सहायता के लिए लगभग 11,000 ग्रामस्तरीय डेयरी सहकारी समितियां भी हैं.

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