
अजय सुकुमारन
द आर्ट सैंक्चुएरी, स्थापना : 2019, बेंगलूरू
मराठाहल्ली स्थित बेंगलूरू के टेक कॉरिडोर के पास एक विला की छत पर आर्ट क्लास चल रही है, जहां कुछ युवाओं का समूह अपनी तमाम शारीरिक और मानसिक अक्षमताएं भुलाकर पूरी तल्लीनता के साथ कुछ ड्रा करने या चित्रों में रंग भरने में व्यस्त है. उनके खुशी से खिले चेहरे देखते ही बनते हैं. सब कुछ अच्छी तरह चलने के बीच कभी कोई ब्रश चलाते-चलाते अचानक हड़बड़ा जाता है तो कोई दिल के आकार जैसी आकृतियां बनाने में ध्यानमग्न नजर आता है. यह सब देखकर कलाकारों के साथ आई मांओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहता. यह सेशन द आर्ट सैंक्चुएरी (टीएएस) की देखरेख में चल रहा है, जो 'न्यूरोडायवर्स' युवाओं को रचनात्मक कौशल प्रदर्शित करने का मौका देने वाला एक मंच है.
न्यूरोडायवर्स शब्द का उपयोग ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम, सेरेब्रल पाल्सी या डिस्लेक्सिया के शिकार लोगों के लिए किया जाता है. 2019 में टीएएस की स्थापना करने वाली बेंगलूरू निवासी शालिनी गुप्ता कहती हैं, ''सिर्फ इसलिए कि अभी हम ठीक से यह नहीं समझ पाते कि संज्ञानात्मक बोध न होना किस तरह की अक्षमता है, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती.'' एक बिजनेस कंसल्टेंट शालिनी गुप्ता ने 21 साल पहले अपने करियर को उस समय ही तिलांजलि दे दी थी, जब उन्होंने डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बेटी गायत्री को जन्म दिया. शालिनी बताती हैं कि टीएएस की स्थापना का विचार उन्हें बच्ची को पालने के अनुभवों से आया. यह धर्मार्थ ट्रस्ट दिव्यांग युवा वयस्कों में छिपी कलात्मक प्रतिभा को उभारकर खुशी महसूस करता है और उनके पेंटिंग, मूर्तिकारी, फिल्मों और फोटोग्राफी से जुड़े कौशल को निखारने के साथ उनकी कृतियों की प्रदर्शनी भी लगाता है.
टीएएस ने लघु फिल्म निर्माण में कोर्स के लिए फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआइआइ) के साथ करार किया है. इसके अलावा, पेंटिंग या क्ले मॉडलिंग वर्कशॉप के लिए नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए) के साथ मिलकर भी काम किया जा रहा है. शालिनी गुप्ता बताती हैं, ''हमने इन युवाओं की कला प्रदर्शनी पहली बार करीब चार साल पूर्व एक व्यावसायिक गैलरी में लगाई थी और इसमें करीब 70 फीसद बिक्री में सफलता हासिल की थी. टीएएस ने नई दिल्ली स्थित किरण नादर म्यूजियम ऑफ आर्ट और दिल्ली, मुंबई और बेंगलूरू में एनजीएमए में भी प्रदर्शनियां लगाई हैं. कार्यशालाओं में टीएएस करीब 50 युवाओं के साथ काम करता है, वहीं 20 शहरों में पैरेंट्स सपोर्ट ग्रुप्स के माध्यम से प्रदर्शनियां आयोजित करके इस संस्था ने पूरे भारत में लगभग 1,500 परिवारों के साथ संपर्क स्थापित किया है.
शालिनी बताती हैं, ''जब हमारे बच्चे पैदा हुए थे, तो दुनिया ने हमसे यही कहा कि अब आंसू और इलाज ही हमारी नियति बनकर रह जाएंगे....लेकिन आज हमारे चारों ओर बिखरी खुशियों को देखिए.'' टीएएस की तरफ से 2019 में पहली बार कला प्रदर्शनी लगाए जाने के बाद से कुछ युवा कलाकारों की स्थिति में सुधार हुआ है और उन्हें दी जाने वाली ऐंटी-डिप्रेसेंट दवाओं की खुराक घटी है. वे कहती हैं, ''हम जो कोर्स चार महीने में पूरा करेंगे, उन्हें वह सीखने में चार साल लग सकते हैं. लेकिन जल्दी किसे है?''
खुशी के सूत्र
''बेटे के सम्मानित होने पर मां के की आंखों में आंसू...बतौर एक युवा फिल्मकार, यही मेरे लिए असली खुशी है''
-शालिनी गुप्ता, संस्थापक, द आर्ट सेंक्चुरी खुशी के सूत्र