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रब ने जिसे बना दिया सोना

कारोबार का विस्तार करते वक्त उन्होंने अपना रणनीतिक ध्यान मलनाड इलाके के अलावा कुंदापुर और कर्कला की समृद्ध किसान पट्टियों पर लगाए रखा.

सुभाष एम. कामत सुभाष एम. कामत
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:12 PM IST

36वीं वर्षगांठः दिग्गज कारोबारी

सुभाष एम. कामत, 57 वर्ष, उडुपी
कंपनीः आभरण जूलर्स
परिवार की कुल संपत्ति: 1,900 करोड़ रु.

कहां करते हैं निवेश
वे अपने मुनाफे को कारोबार में ही निवेश करते हैं. सुभाष कहते हैं कि इस कारोबार ने अच्छा मुनाफा दिया है.

यह जानना दिलचस्प है कि आभरण ज्वेलर्स के मालिक कामत परिवार ने उडुपी का पहला रेडीमेड ज्वेलरी स्टोर आखिर कैसे खोला. 1920 के दशक की बात है. सौदागर बर्डे सदानंद कामत और उनके बड़े भाई तंबाकू लाने के लिए घोड़ों पर सवार होकर कर्नाटक के मलनाड इलाके में जाया करते थे.

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उन्होंने देखा कि उनके तटीय गृहनगर में बने आभूषणों की पहाड़ी इलाके के लोगों में अच्छी-खासी मांग है. और इस तरह कामत ने सोने के गहनों के व्यापार में कदम रखा. 1935 में उन्होंने उडुपी में नियो ज्वेलरी मार्ट खोला.

वह युद्ध का वक्त था और गोल्ड कंट्रोल नियमों ने 14 कैरट से ज्यादा शुद्धता के सोने के आभूषण बनाने पर रोक लगा दी थी. इस वजह से 1960 के दशक की शुरुआत में कामत ने इस कारोबार से बाहर निकलने का फैसला किया. लेकिन 1979 में उनके बेटे मधुकर कामत सोने की ज्वेलरी के कारोबार में फिर उतरे और आभरण ब्रांड के तहत उडुपी में शोरूम खोला.

मधुकर के बड़े बेटे 57 वर्षीय सुभाष कामत याद करते हैं कि उस समय वे नौवीं कक्षा में पढ़ते थे. वे बताते हैं, ''दुकान खुलने के पहले दिन से ही मेरे भाई और मुझे दो-एक घंटे स्टोर में बिताने पड़ते थे.’’ 1987 आते-आते सुभाष और उनके भाई महेश ने हाथों में कॉलेज की डिग्रियां थामे हुए परिवारिक कारोबार में औपचारिक कदम रखा.

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दूसरा स्टोर 1991 में शिमोगा में और तीसरा 2007 में मंगलूरू में खुला. सुभाष बताते हैं कि कामकाज बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी लाने की जरूरत को देखते हुए आभरण ज्वेलरी के उन पहले ब्रांडों में था जिन्होंने शुद्धता की जांच के लिए गोल्ड टेस्टिंग मशीन आयात की.

कारोबार का विस्तार करते वक्त उन्होंने अपना रणनीतिक ध्यान मलनाड इलाके के अलावा कुंदापुर और कर्कला की समृद्ध किसान पट्टियों पर लगाए रखा. इस ब्रांड के फिलहाल 14 स्टोर हैं जो पादुबिद्री, कर्कला, बेलथांगाडी, ब्रह्मवरा, कुदापुर, बायंदूर, हेब्री, तीर्थहल्ली, सागर और चिकमगलूर के अलावा गोवा के पंजिम तक फैले हैं. वे कहते हैं, ''अब हम धीरे-धीरे बड़े शहरों में जाने के बारे में सोच रहे हैं. 3-4 जगहें दिमाग में हैं.’’

उनका कहना है कि स्वर्ण मानक और हॉलमार्क यूनीक आइडेंटिफिकेशन (एचयूआइडी) आने के बाद ''शुद्धता के मामले में अब हर किसी के लिए बात एक बराबर हो गई है.’’ अब प्रतिस्पर्धा में बढ़त की जहां तक बात है तो वह ज्वेलरी डिजाइन और ग्राहक सेवा में रचनात्मकता से आएगी. कंपनी अपने मुनाफे का निवेश कहां करती है? सुभाष स्पष्ट करते हैं कि कंपनी अपनी कमाई वापस कारोबार में निवेश करना पसंद करती है: ''यह रणनीति खासी कामयाब रही. इसमें अब भी बहुत संभावना है.’’

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सुभाष और उनके 82 वर्षीय पिता मधुकर दोनों कारों के बहुत शौकीन हैं—1979 की होंडा एक्सएल 250एस एंड्यूरो मोटरसाइकिल और याम्हा विरागो 535 पिता कामत की तरफ से सौंपी गई बेशकीमती तोहफा है. पिछले दशक के दौरान सुभाष बाइक से हिमालय के पहाड़ों की ऊबड़-खाबड़ यात्राओं पर नियमित जाते रहे हैं—

हाल के वर्षों में उनकी ये यात्राएं अब रैंगलर जीप से होने लगी हैं. वे बताते हैं, ''मुझे वाटरस्पोर्ट्स भी बहुत अच्छे लगते हैं. हम सागर के किनारे हैं, इसलिए मैंने अपने लिए जेट स्की खरीदी.’’

सुभाष एक कयाक यानी चप्पू से चलने वाली छोटी नाव और 33 फुट की एक बोट के भी मालिक हैं, जिन्हें वे मछली पकड़ने की यात्राओं पर ले जाते हैं, जो उनका दूसरा शौक है. -अजय सुकुमारन

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