
विद्या राजपूत, 45 वर्ष, ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, छत्तीसगढ़
ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता विद्या राजपूत अपने जैसे अन्य लोगों को सामाजिक बहिष्कार के विनाशकारी प्रभावों से मुक्त कराने के मिशन पर हैं.
1977 में छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में विनय सिंह राजपूत के रूप में जन्मे, इस थर्ड जेंडर एक्टिविस्ट (ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता) ने अपने शरीर की कुछ आवश्यक सर्जरी कराई और खुद को विद्या राजपूत नाम दिया. अपने छोटे से गांव फरसगांव में एक बच्चे और छात्र के रूप में उन्होंने दशकों तक दुर्व्यवहार सहा. यहां तक कि उनके अपने परिवार में भी वह संवेदशीलता नहीं थी जो उनके जैसे लोगों को समझने के लिए आवश्यक होती है. वे बताती हैं, ''मैं अपनी पहचान को लेकर भ्रमित थी. मैं खुद को लड़के की तरह नहीं ले पा रही थी. मुझे लगा कि मैं किसी पुरुष के शरीर में फंसी एक महिला हूं.'' लड़के का शरीर पर हाव-भाव स्त्रैण होने के कारण उनका उपहास हुआ. स्कूल में सहपाठी लड़के उन्हें अक्सर बाथरूम में बंद कर देते थे, उन पर पेशाब करते थे और उनका यौन उत्पीड़न भी किया जाता था.
विद्या 1998 में अपने गांव से भागकर रायपुर आ गईं, जहां उन्होंने एक होटल में स्टीवर्ड (सहायक) के रूप में काम करना शुरू किया. वहां उनकी मुलाकात दो अन्य स्टीवर्ड से हुई जिन्होंने बताया कि उनकी तरह वे दोनों भी ट्रांसजेंडर थीं. वे उन्हें रायपुर के एक पार्क में ले गए जहां समुदाय के सदस्य नियमित रूप से अपनी समस्याओं पर चर्चा करते थे. विद्या ने यौन उत्पीड़न, एचआइवी और बलात्कार की कहानियां सुनीं. इसके बाद विद्या ने फैसला कर लिया कि वे अब खुद को ट्रांसजेंडरों के लिए काम के समर्पित कर देंगी.
उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नैको) में दाखिला लिया. एक वॉलंटियर के रूप में, उन्होंने ट्रांसजेंडरों के बीच एचआइवी रोगियों पर ध्यान केंद्रित किया जिससे उन्हें समुदाय के मुद्दों के बारे में अधिक जानकारी मिली. विद्या और उनके दोस्तों ने छत्तीसगढ़ मितवा संकल्प समिति की स्थापना की, जो थर्ड जेंडर या तीसरे लिंग को मुख्यधारा में लाने के लिए समर्पित है. अपने नेटवर्क के अन्य सदस्यों द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर, विद्या ने 2015 में पुडुचेरी के एक अस्पताल में लिंग-परिवर्तन ऑपरेशन करवाया. वे इस कदम को जीवन की सबसे बड़ी क्रांतिकारी घटना मानती हैं.
लगभग आठ वर्षों के संघर्ष के बाद, विद्या ने अकेले ही अपने समुदाय के लिए कई अधिकार दिला दिए हैं. 2015 में ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की स्थापना उन प्रमुख उपलब्धियों में से एक थी. इससे लिंग के सदस्यों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न और अन्य सरकारी सेवाओं तक सुरक्षित पहुंच बनाने में मदद मिली है. रायपुर में गरिमा गृह नामक आश्रय गृह स्थापित किया गया है जहां उन्हें रहने के लिए जगह मिलती है और उन्हें सिलाई, कंप्यूटर, मेंहदी लगाने जैसे कौशल का प्रशिक्षण और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग भी दी जाती है. आज पुलिस यदि थर्ड जेंडर के किसी व्यक्ति को हिरासत में लेती है तो उसके साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए, इस पर एक एसओपी है तो यह विद्या के प्रयासों से ही सुनिश्चित हुआ है. 2020 से, राज्य पुलिस ने थर्ड जेंडर से 22 सदस्यों की भर्ती की है जो ऐतिहासिक कदम है. सरकार निर्मित आवासों में उनके लिए 2 प्रतिशत कोटा आरक्षित है.
विद्या छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर्स को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. विद्या कहती हैं, ''इससे जुड़े कलंक के कारण लोग थर्ड जेंडर की संख्या कम बताते हैं. मैं उस कलंक को हटाने पर काम कर रही हूं.''
खुशी के सूत्र
''अधिकारों के अभियान के लिए मैं अपनी जिंदगी का हर दिन इस तरह प्लान करती हूं कि वह पिछले दिन से बेहतर रहे. जब मैं अपने लक्ष्य हासिल कर लेती हूं तो बहुत खुश होती हूं'
—विद्या राजपूत, ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट