
बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब मुंबई की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) डीएचएफएल के प्रमोटर 49 वर्षीय कपिल और 44 वर्षीय धीरज वधावन मुंबई के कॉर्पोरेट हलकों में चर्चित शख्सियत हुए करते थे. ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कोवान यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री लेकर आए कपिल 1997 में अपने पारिवारिक रियल एस्टेट के वित्तीय कारोबार से जुड़ गए, जिसे उस वक्त दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड कहा जाता था और भाई धीरज के साथ मिलकर उन्होंने इसका कायापलट कर दिया.
जब कपिल ने कमान संभाली तब इसका राजस्व करीब 100 करोड़ रुपए और मुनाफा महज 16 करोड़ रुपए था, जो बढ़ते-बढ़ते 2016-17 में 10,826 करोड़ रुपए के राजस्व और 2,896 करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ पर पहुंच गया. कारोबार के विस्तार के लिए भाइयों ने एक के बाद एक अधिग्रहणों का भी सहारा लिया और महज होम लोन कंपनी से इसे लंबी-चौड़ी वित्तीय सेवा फर्म तक फैला दिया जो पढ़ाई के लिए और छोटे तथा मध्यम उद्यमों को कर्ज देती थी और म्यूचुअल फंड के अलावा जीवन और सामान्य बीमा कारोबार में दाखिल हुई. वे शान-शौकत की जिंदगी जीते थे. उनके पास एक निजी विमान, एक यॉट, रोल्स रॉयस फैंटम और बेंटले सहित लग्जरी कारों का बेड़ा था और बंदूकधारी बॉडीगार्ड लेकर घूमते थे.
उनके पिता राजेश वधावन ने 1980 के दशक में कंपनी स्थापित की थी. कपिल के कमान संभालने के तीन साल बाद 2000 में वे गुजर गए. राजेश के भाई राकेश और भतीजे सारंग ने हाल तक परिवार का पुराना रियल एस्टेट कारोबार एचडीआइएल (पहले हाउसिंग डेवलपमेंट ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लि.) चलाया.
उत्थान की इस कहानी के अब तीव्र पतन में खत्म होने की आशंका है. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने 20 जून को वधावन भाइयों के खिलाफ बैंकों के एक कंसोर्शियम के साथ धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज किया, जिसे देश की सबसे बड़ी बैंकिंग धोखाधड़ी कहा जा रहा है.
प्राथमिकी (एफआइआर) में एजेंसी ने कहा कि उसे मुंबई में नरीमन पॉइंट स्थित यूनियन बैंक की औद्योगिक वित्त शाखा के डिप्टी जनरल मैनेजर और शाखा प्रमुख विपिन कुमार शुक्ला की तरफ से 11 फरवरी, 2022 को एक शिकायत मिली. शिकायत में उसने आरोप लगाया कि डीएचएफएल, उस वक्त उसके सीएमडी कपिल वधावन, तब डायरेक्टर धीरज वधावन और अन्य लोगों ने कंसोर्शियम को धोखा देने के लिए आपराधिक षड्यंत्र किया. उन्होंने कंर्सोशियम को 42,871.42 करोड़ रुपए का कर्ज देने के लिए लुभाया और इस फंड का खासा बड़ा हिस्सा डीएचएफएल की लेखा-बहियों में हेरफेर करके हड़प लिया, गबन कर लिया और कंसोर्शियम को कर्ज की अदायगी से चूक गया, जिससे 34,615 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ...
दो साल पहले मई 2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने वधावन बंधुओं को येस बैंक से उसके संस्थापक राणा कपूर के साथ साठगांठ कर 5,050 करोड़ रुपए निकालने में कथित मिलीभगत के लिए गिरफ्तार किया था. उनके चाचा राकेश और चचेरे भाई सारंग को अक्तूबर 2019 में महाराष्ट्र की आर्थिक अपराध शाखा ने पीएमसी बैंक घोटाले से जुड़े धनशोधन के मामले में गिरफ्तार किया.
भारतीय स्टेट बैंक और आइसीआइसीआइ बैंक सहित 28 बैंकों के कंसोर्शिम से 22,842 करोड़ रुपए के गबन के आरोप में फरवरी में एबीजी शिपयार्ड के चेयरमैन ऋषि अग्रवाल और अन्य डायरेक्टरों की गिरफ्तारी के कुछ ही वक्त बाद डीएचएफएल का यह मामला ग्रेट इंडियन बैंक रॉबरी की लगातार जारी गाथा का एक और काला अध्याय है. दिसंबर 2021 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) या बकाया धनराशियां 5.4 लाख करोड़ रुपए बताई जाती हैं. डीएचएफएल का इस रुग्णता में कितना योगदान है?
डीएचएफएल के शीर्ष पर अपने शुरुआती दिनों से ही कपिल वधावन ने कंपनी के मूल कारोबार यानी निम्न और मध्यम आय समूहों को कर्ज देने पर ध्यान बनाए रखा. आइएनजी वैश्य बैंक के होम लोन डिविजन के अधिग्रहण से पैमाना और दक्षता के अलावा दक्षिण भारत में आधार हासिल करने में मदद मिली. फिर दिसंबर 2010 में दायचे पोस्टबैंक होम फाइनेंस को खरीद लिया. यह बढ़कर भारत की सबसे बड़े मॉर्गेज फाइनेंसरों में से एक बन गई और यहां तक कि एक वक्त उसकी नजर एलआइसी हाउसिंग फाइनेंस पर भी थी.
अलबत्ता कपिल को जरा अंदाज नहीं था कि नए वित्त बैंक उभर आएंगे जिनका ध्यान छोटे कस्बों और शहरों पर होगा और उनसे उन्हें तगड़ी प्रतिस्पर्धा मिलेगी. लोगों को कर्ज देने के लिए डीएचएफएल, कमर्शियल पेपर्स (सीपी) जारी करके वित्तीय संस्थाओं से भारी उधार लेता रहा—इस उम्मीद में कि वह यह कर्ज चुका पाएगा. मगर 2018 में आइएलऐंडएफएस संकट में जब एनबीएफसी कर्ज चुकाने से चूक गई, तो डीएचएफएल के सीपी का कोई खरीदार नहीं मिला. इसके शेयर भी बुरी तरह टूट गए.
डीएचएफएल 1984 से ही यूनियन बैंक से उधार की सुविधा लेता रहा था. उधार की सुविधा पूर्व स्वीकृत कर्ज होता है जो आपको हर बार नए कर्ज के लिए आवेदन करने के बजाए लंबी अवधि में निरंतर आधार पर धन उधार लेने की सुविधा देता है. यूनियन बैंक के अलावा कॉर्पोरेशन बैंक और आंध्रा बैंक (जिसका अप्रैल 2020 में यूनियन बैंक में विलय हो गया) समय-समय पर इस सुविधा का नवीनीकरण करते रहे.
डीएचएफएल को उधार देने के लिए जुलाई 2010 में यूनियन बैंक की अगुआई में 29 बैंकों का कंसोर्शियम बनाया गया. (कुछ उधारदाता बाद में बाहर निकल गए; जुलाई 2020 तक कंसोर्शियम में 17 सदस्य बचे थे). उधार की सुविधा देने के अलावा यूनियन बैंक, कॉर्पोरेशन बैंक और आंध्रा बैंक ने 2016 और 2019 के बीच डीएचएफएल के 262 करोड़ रु. के नॉन-कंवर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी) भी सब्स्क्राइब किए. एनसीडी वित्तीय लिखत हैं जिनका इस्तेमाल कंपनियां लंबे वक्त की पूंजी उगाहने के लिए करती हैं.
डीएचएफएल, उसके प्रमोटरों और निदेशकों के खिलाफ धन को दूसरे कामों में लगाने, राउंड-ट्रिपिंग करने (जिसमें धनशोधन करने या करों से बचने के लिए धन एक देश से दूसरे देश ले जाया जाता है और फिर मूल देश में वापस लाया जाता है) और बेईमानी से धन निकालने तथा धोखाधड़ी के गंभीर आरोप जनवरी 2019 में मीडिया में आने लगे. इन घटनाक्रमों की रोशनी में डीएचएफएल के सात सबसे बड़े बैंक—भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक, सिंडिकेट बैंक और यूनियन बैंक—साथ आए और उन्होंने अप्रैल 2015 से दिसंबर 2018 तक डीएचएफएल की विशेष निगरानी के लिए एजेंसी के तौर पर अल्वारेज ऐंड मार्सल की और विशेष समीक्षा ऑडिट के लिए केपीएमजी की नियुक्ति की.
निगरानी और ऑडिट की अवधि बाद में फरवरी 2019 तक बढ़ा दी गई. उसी साल अक्तूबर में उधारदाताओं ने बैंकों को भुगतान में देरी और चूक, बैंक गारंटियों के प्रयोग, प्रमुख कर्मियों के इस्तीफे आदि सरीखे शुरुआती चेतावनी संकेतों के आधार पर कंपनी के खाते को ''रेड फ्लैग्ड अकाउंट’’ या खतरे वाले खाते की श्रेणी में डाल दिया.
अपनी विशेष समीक्षा ऑडिट रिपोर्ट में केपीएमजी ने कहा कि डीएचएफएल ने अप्रैल 2015 और दिसंबर 2018 के बीच 29,100.33 करोड़ रुपए के कर्ज करीब 35 अंतर-संबंधित संस्थाओं और व्यक्तियों को बांटे. इसमें मय ब्याज 29,849.62 करोड़ रुपए बकाया थे. ज्यादातर लेन-देन जमीन या संपत्तियों में निवेश के रूप में किए गए. केपीएमजी की रिपोर्ट ने ''कपिल वधावन, धीरज वधावन और उनसे जुड़े लोगों की ओर से गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, संबंधित पक्षों के माध्यम से दूसरे कामों में धन लगाने, धोखा देने की गरज से गैर-मौजूद खुदरा कर्ज दिखाने के लिए लेखा-बहियों में हेर-फेर, धन की राउंड-ट्रिपिंग और अपनी संपत्तियों के निर्माण के लिए मूल कामों से हटकर धन के इस्तेमाल’’ की तरफ इशारा किया.
कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिनमें प्रमोटर ग्रुप की संस्थाओं के एनसीडी / प्रीफरेंस शेयरों में निवेश के लिए महीने भर के भीतर धन दूसरे काम में लगाया गया या उनकी राउंड-ट्रिपिंग की गई; कई करोड़ रुपए के पुनर्भुगतान बैंक खाते के विवरणों में नहीं दिखाए गए; और मूल रकम और ब्याज चुकाने पर मोरेटोरियम जाहिरा औचित्य के बगैर बढ़ा दिए गए.
डीएचएफएल और उसके प्रमोटरों ने प्रोजेक्ट में लगाने के लिए धन दिया पर यह खुदरा कर्ज की तरह दिखाया गया. इसकी वजह से खुदरा कर्ज पोर्टफोलियो बहुत फूल गया जिसमें 14,095 करोड़ रुपए के 1,81,664 झूठे और ऐसे खुदरा कर्ज थे जिनका कोई वजूद नहीं था. फर्जी नामों के तहत ऐसे कर्जों के ब्योरे एक अलग अकाउंटिंग प्रणाली में रखे गए और फिर मुख्य अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर में ट्रांसफर कर दिए गए. वित्तीय अनियमितता के एक अन्य मामले में बिल्डर्स की रकम के 600 करोड़ रुपए डू इट अर्बन वेंचर्स को दिए गए जिसमें राणा कपूर की पत्नी बिंदु और बेटी रोशनी डायरेक्टर थीं.
कंपनी का पतन जून 2019 में शुरू हुआ, जब वह 900 करोड़ रुपए के भुगतान से चूक गई. नवंबर 2019 में डीएचएफएल ने इनसॉल्वेंसी या ऋणशोधन अक्षमता घोषित कर दी और भारतीय रिजर्व बैंक ने उसे ऋणशोधन अक्षमता की कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) को भेज दिया. अजय पीरामल की अगुआई वाली पीरामल कैपिटल ऐंड हाउसिंग फाइनेंस ने जुलाई 2021 में एनसीएलटी की तरफ से स्वीकृत समाधान योजना के मुताबिक कर्जदाताओं को नगद 14,700 करोड़ रुपए चुकाकर डीएचएफएल का अधिग्रहण कर लिया. ऋणशोधन कार्यवाही की बदौलत उधारदाता 5,977.93 करोड़ रु. और 7,186.74 करोड़ रु. के एनसीडी वसूल कर पाए.
फिलहाल कंसोर्शियम के सदस्य बैंकों में डीएचएफएल के खाते एनपीए की श्रेणी में डाल दिए गए हैं और सभी ने उन्हें 'फ्रॉड’ घोषित कर दिया है. यूनियन बैंक की शिकायत के मुताबिक डीएचएफएल को सबसे ज्यादा रकम—9,898.76 करोड़ रुपए—भारतीय स्टेट बैंक को देनी है.
सवाल यह है कि इतना भारी-भरकम घोटाला 17 बैंकों के ध्यान में आने से कैसे चूक गया? वित्तीय विशेषज्ञ इसकी वजह बैंकिंग प्रणाली के तमाम स्तरों पर जरूरी तत्परता की नाकामी बताते हैं. एक विशेषज्ञ कहते हैं, ''आम धारणा यह है कि लीड बैंकर, जिसका ऋण जोखिम सबसे ज्यादा है, तमाम तरह की जरूरी सतर्कता और तत्परता बरतेगा. आदर्शत: सभी से यही उम्मीद की जाती है. 17 में से कम से कम एक बैंक को तो काफी पहले हल्ला मचाना चाहिए था.’’
विजय माल्या, नीरव मोदी और अब वधावन बंधुओं ने इतनी आसानी से व्यवस्था को दुहकर निचोड़ लिया, तब भी अब तक लगता है कोई सबक नहीं सीखा गया. ऐसी धोखाधड़ियों को रोकने के लिए हमारी व्यवस्था में अब भी उचित रक्षाकवच नहीं हैं. जब तक वे नहीं होंगे, बैंकों को चूना लगाया जाता रहेगा.
मुंबई में यूनियन बैंक की औद्योगिक वित्तीय शाखा के प्रमुख वी.के. शुक्ला की 11 फरवरी, 2022 की शिकायत के बाद सीबीआइ ने कपिल और धीरज वधावन को गिरफ्तार किया
डीएचएफएल जैसे मामले सभी स्तरों पर पर्याप्त जांच-पड़ताल के अभाव में घटित होते हैं. हर कोई उम्मीद करता है कि लीड बैंकर ही सारी जांच-पड़ताल कर दे जबकि यह सभी को करना चाहिए
बैंकों से महा लूट
किस तरह डीएचएफएल के प्रमोटरों ने लोन का गबन किया
डीएचएफएल यूनियन बैंक की कर्ज सुविधा का इस्तेमाल 1984 से कर रहा था. जुलाई 2020 तक यूनियन बैंक की अगुवाई वाले 17 बैंकों के कंसोर्शियम ने डीएचएफएल को 42,871.42 करोड़ रु. स्वीकृत किए. हालांकि यह कर्ज अदायगी में जून 2019 से ही चूकने लगा था और अभी इसके खाते कंसोर्शियम के कर्जदाताओं ने एनपीए (नॉन पर्फार्मिंग एसेट) या गैर निष्पादित संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किए हैं.
यूनियन बैंक, आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक ने साल 2016 से 2019 के बीच डीएचएफएल के 262 करोड़ रुपए के नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर सब्स्क्राइब किए थे. हालांकि ये एनसीडी भी रिडीम नहीं हो सके या भुनाए नहीं जा सके
अपनी विशेष ऑडिट रिपोर्ट में केपीएमजी ने कहा, डीएचएफएल ने बड़ी मात्रा में कर्ज और एडवांस कंपनी से अंदरूनी तौर पर जुड़ी संस्थाओं और व्यक्तियों को दिया. इस धन से किए गए ज्यादातर सौदे भूमि और प्रॉपर्टी से जुड़े हुए थे
रिपोर्ट में गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, संबंधित पार्टियों के जरिए धन को डाइवर्ट करना, धोखाधड़ी कर दिए गए फर्जी और गैर मौजूद खुदरा लोन को खाता-बही में दिखाने के लिए हेराफेरी, धन की राउंड टिपिंग और डाइवर्ट फंड का इस्तेमाल कपिल और धीरज वधावन व उनके सहयोगियों के लिए संपत्ति बनाने में किए जाने की तरफ इशारा किया गया है
अप्रैल 2015 और दिसंबर 2018 के बीच 35 संस्थाओं को 29,100.33 करोड़ का कर्ज बांटा गया. इसमें से करीब 29,849. 62 करोड़ रुपए बकाया है
कई मामलों में फंड को एक महीने के भीतर ही डाइवर्ट कर दिया गया, राउंड ट्रिपिंग हुई ताकि इसका प्रमोटर ग्रुप की कंपनियों केएनसीडी/प्रिफरेंस शेयर में इस्तेमाल किया जा सके अथवा खातों को एनपीए घोषित किए बगैर ही लोन को रोल ओवर कर दिया गया
अनेक अवसरों पर कई करोड़ रुपए के लोन की अदायगी का बैंक अकाउंट स्टेटमेंट में जिक्र पाया ही नहीं गया और बिना किसी पर्याप्त औचित्य के मूलधन और ब्याज के भुगतान से छूट दे गई
डीएचएफएल और इसके प्रमोटर्स ने प्रोजेक्ट फाइनेंस के नाम पर फंड दिया लेकिन खाते बही में उसे खुदरा कर्ज के तौर पर दर्ज किया. इससे खुदरा लोन पोर्टफोलियो बहुत ज्यादा फूल गया और इसमें 14,095 करोड़ रुपए के 1,81,664 फर्जी और गैर मौजूद कर्ज दर्ज हो गए.