
दिलीप नारायण नांपी का दुबई में सफल करियर इस साल मार्च में अचानक खत्म हो गया, जब उनकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने कोरोनो वायरस लॉकडाउन के दौरान हुए नुक्सान के कारण उनकी छुट्टी कर दी. 2003 से दुबई में कार्यरत 40 वर्षीय आइटी इंजीनियर नई नौकरी तलाश रहे हैं. वे कहते हैं कि उनकी एचआर एग्जीक्यूटिव पत्नी की तनख्वाह दुनिया के सबसे महंगे शहरों में शुमार दुबई में गुजर-बसर के लिए पर्याप्त नहीं होगी. परेशान नंपी कहते हैं, ‘‘महामारी से रातोरात दुबई बदल-सी गई है. प्रवासी समुदाय में वर्ग और हैसियत का फर्क मिट गया है. सभी बीमारी की दया पर निर्भर हैं.’’
नई भर्तियों के बंद होने, नौकरियों में स्थानीय लोगों को वरीयता देने की उठती जोरदार मांग और खाड़ी क्षेत्र की तेल अर्थव्यवस्था के संकट में घिरने से नांपी के लिए नई नौकरी की संभावना अच्छी नहीं दिखती.
हताश नांपी के लिए अंतिम विकल्प अपनी मातृभूमि केरल वापसी का हो सकता है. हालांकि यह भी मुश्किल विकल्प ही है क्योंकि कोविड संकट के कारण विदेशी भूमि पर गहरी आर्थिक अनिश्चितता में डूबे हजारों आप्रवासी केरलवासी इसी विकल्प पर विचार कर रहे हैं. अभी तक दुनियाभर से 4,42,000 आप्रवासी केरल सरकार के ऑनलाइन पंजीकरण के जरिए एनओआरकेए (आप्रवासी केरलवासी विभाग) में अपने गृह प्रदेश लौटने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं. कुछ तो हमेशा के लिए केरल लौट आना चाहते हैं.
भारत सरकार के विभिन्न देशों में फंसे नागरिकों की वापसी केलिए 7 मई को देर शाम, यूएई से 368 आप्रवासी केरलवासी कोच्चि और कोझीकोड में उतरने वाले थे. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, यानी 8 मई को बहरीन से एक जहाज कोच्चि के लिए उड़ान भर चुका था; एक दिन बाद कुवैत और ओमान से भी एक-एक जहाज केरल आने वाले थे. एयर इंडिया ने खाड़ी देशों से 64 उड़ानों की योजना बनाई है.
सुंदर सपना टूट गया?
1970 के दशक के बाद से, औसत मलयाली के लिए खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई में नौकरी करना ख्वाब रहा है. खाड़ी देश तेल की मांग में आई उछाल से समृद्ध होते रहे और उससे लाभान्वित आप्रवासी केरलवासी भारत में अपने घरों को समृद्ध करते रहे. युद्ध से बर्बाद इराक भी निर्माण श्रमिकों और नॄसग कर्मचारियों के लिए बड़ा आकर्षण था. वर्तमान में खाड़ी में अनुमानित 20 लाख आप्रवासी केरलवासी काम करते हैं. इसकी तुलना में, केवल 4,00,000 आप्रवासी केरलवासी ही दुनिया के और देशों में हैं.
खाड़ी देशों से आप्रवासी भारतीय, खासकर केरलवासी अच्छी-खासी रकम भारत भेजते रहे हैं. यही वजह है कि वहां से उनके लौटने से बड़ा आर्थिक नुक्सान हो सकता है. हाल ही में क्रिसिल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में विदेशी धरती से आप्रवासियों की भारत में भेजी गई कुल 83 अरब डॉलर (6.3 लाख करोड़ रु.) की रकम में से खाड़ी देशों से आए पैसे का हिस्सा 60 प्रतिशत यानी 49.8 अरब डॉलर (3.7 लाख करोड़ रु.) था. 18.5 अरब डॉलर (1.4 लाख करोड़ रुपए) के साथ यूएई इस सूची में सबसे ऊपर है. केरल राज्य योजना बोर्ड का अनुमान है कि 2019 में राज्य में बाहर से आए 85,000 करोड़ रु. में 80 प्रतिशत (68,000 करोड़ रु.) खाड़ी देशों से आप्रवासी केरलवासियों से आए थे.
लेकिन मौजूदा घटनाएं इस गुलाबी तस्वीर को बदल रही हैं. कोविड-19 की वजह से मांग में गिरावट और सबसे बड़े तेल उत्पादक सऊदी अरब की कीमतों में कटौती के कारण 9 मार्च को, कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट आई. 5 मई को ब्रेंट क्रूड की कीमत गिरकर 32 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई और 29 मई को 29.3 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार किया. दुबई में एक निर्माण कंपनी में 34 वर्षीय इंजीनियर जॉन थॉमस का कहना है, ‘‘कच्चे तेल की कीमतों के गिरने से ज्यादातर कंपनियों ने छंटनी शुरू कर दी. यूएई का हर क्षेत्र इससे प्रभावित हुआ है.’’ उनका कहना है कि जिन कंपनियों ने छंटनी नहीं की है, उनमें वेतन कटौती या तनख्वाह देने में देरी की है. जॉन ने स्थिति के सुधरने तक अपने परिवार को केरल वापस भेजने की योजना स्थगित कर दी है.
एक के बाद एक संकट
खाड़ी देशों के एनआरआइ के सामने इस पैमाने का बड़ा संकट आखिरी बार 1990 और 2003 के खाड़ी युद्ध के दौरान देखा गया था. पहले युद्ध से पूर्व, भारत सरकार ने इस क्षेत्र से लगभग 160,000 लोगों को निकाला था. इस बार समस्या कहीं ज्यादा विकट है. पिछले कुछ वर्षों में, जीसीसी राष्ट्रों ने जहां एक तरफ इस्लामी आतंक का उदय देखा वहीं दूसरी ओर स्थानीय लोगों को नौकरियां देने की मांगें भी मुखर हुई हैं. बढ़ते असंतोष से कई सरकारें नौकरियों में आरक्षण लागू करने को बाध्य हुई हैं. सऊदी अरब ने 2016 में ‘निताकत’ या राष्ट्रीयकरण नीति को लागू किया, जिसका उद्देश्य नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देना है. इस महीने की शुरुआत में ओमान, जहां 97,000 आप्रवासी केरलवासी कार्यरत हैं, ने घोषणा की कि सरकारी क्षेत्र में ओमान के नागरिकों को काम दिया जाएगा.
ओमान के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वहां काम करने वाले करीब 13 लाख विदेशियों में 53,000 सरकारी नौकरियों में हैं.
तीन दशकों से खाड़ी में व्यापार कर रहे 56 वर्षीय एम.पी. वर्गीज, बहरीन और सऊदी अरब में शॉपिंग मॉल्स के मालिक हैं. वे कहते हैं कि सभी जीसीसी देश, बाहर से आए लोगों के वर्क परमिट रद्द करने की योजना बना रहे हैं; अगला कदम यहां जारी व्यवसायों के लिए कड़े मानदंड के रूप में हो सकता है. वर्गीज कहते हैं, ‘‘ऐसा लगता है कि खाड़ी के लिए हमारा रास्ता कोविड-19 के साथ बंद हो गया है. हमें नए ठिकाने तलाशने होंगे.’’
खाड़ी देशों में अब तक 4,000 केरलवासी कोविड-19 संक्रमण के शिकार हुए हैं; 54 लोगों की मौत की सूचना है. 7 मई तक यूएई में ही 40 लोगों के मरने की खबर है. कतर में इंडियन कम्युनिटी बेनेवोलेंट फोरम के अध्यक्ष पी.एन. बाबूराजन ने इंडिया टुडे को फोन पर बताया, ‘‘वापसी में देरी से केरल के लोगों में असंतोष है.’’ 57 साल के बाबूराजन त्रिशूर के हैं. वे पिछले 36 साल से कतर में रह रहे हैं और कौशल विकास के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र चलाते हैं. वे बताते हैं, ‘‘लगभग 42,000 लोगों ने भारत लौटने के लिए कतर में हमारे दूतावास में पंजीकरण कराया है. उनमें अधिकांश केरल से हैं. हर दिन नई चुनौतियों खड़ी हो रही हैं, वापस आनेे वालों की संक्चया बढ़ सकती है.’’
आर्थिक लागत
खाड़ी में बसे आप्रवासी केरलवासी दशकों से केरल की अर्थव्यवस्था के स्तंभ रहे हैं. अब उनकी अचानक घर वापसी से विदेशों से भेजी गई रकम पर निर्भर इस राज्य के सामने खौफनाक हालात पेश कर दिए हैं. 2018-19 में केरल का राजकोषीय घाटा 23,957.06 करोड़ रुपए था. यह सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 3.4 फीसद था. खाड़ी से अचानक धन के स्रोतों के सूखने से मनोरंजन उद्योग और कला तथा साहित्यिक जगत को मार झेलनी पड़ सकती है. आप्रवासियों की वापसी बेरोजगारी की दर में भी इजाफा करेगी, जो सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी के मुताबिक दिसंबर 2019 में 9.2 फीसद थी, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 7.6 फीसद था. युवाओं (15-29 साल) के बीच बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा केरल में ही है.
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन हालांकि आप्रवासियों की वापसी को लेकर आशावादी नजरिया जाहिर करते हैं. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ‘‘अभी तक हमने अपने सामने आई चुनौतियों का इस्तेमाल अवसर के तौर पर किया है. हम केरल में उद्योगों की तेज बढ़ोतरी के हक में स्वदेश लौट रहे आप्रवासियों की पेशेवर विशेषज्ञता का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं.’’ वे एक विशेषज्ञ समिति गठित करने जा रहे हैं, जो उन्हें लौटने वाले लोगों के पुनर्वास के मॉडल सुझाएगी. मुख्यमंत्री विजयन का एक साल का कार्यकाल बाकी है पर लंबी जिम्मेदारी उनके कंधों पर है.
घर वापसी की राह
विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने के अभियान का पहला चरण शुरू
कोविड महामारी के बीच विदेशों में फंसे भारतीय कामगारों और छात्रों ने इस हफ्ते राहत की सांस ली जब सरकार ने उन्हें वापस लाने की योजना का ऐलान कर दिया. गृह मंत्रालय ने कहा कि वे 7 मई से शुरू हो रही एयर इंडिया की विशेष उड़ानों से—किराया अदा करके—वापस लौट सकते हैं.
यह ‘वंदे भारत’ अभियान एक हक्रते चलेगा. इसमें 12 देशों से 14,800 नागरिकों को लाने के लिए 64 उड़ानें तय की गई हैं. 12 देश हैं यूएई, अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, बांग्लादेश, मलेशिया, सऊदी अरब, कुवैत, फिलीपींस, ओमान, कतर और बहरीन. इस सेवा का लाभ उठाने के इच्छुक आप्रवासी भारतीयों को कोविड-19 का रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाना होगा. लौटने वालों की सूची पर अंतिम निर्णय गृह मंत्रालय लेगा.
मंत्रालय ने दिशानिर्देश जारी करके बताया है कि यात्रा के लिए किन्हें तरजीह मिलेगी—द्ब्रलू कॉलर कामगार, प्रवासी मजदूर, महिलाएं, बच्चे, वरिष्ठ नागरिक और वीजा की मियाद पूरी कर रहे लोग. ज्यादातर भारतीय यूएई से उड़ान लेंगे; इस देश के लिए 10 उड़ानें तय की गई हैं. अमेरिका, बांग्लादेश और मलेशिया में से हरेक के लिए सात उड़ानें होंगी. सऊदी अरब, कुवैत और फिलीपींस के लिए पांच-पांच उड़ानें तय की गई हैं. बाकी सभी देशों में से हरेक के लिए दो उड़ानें होंगी.
स्वदेश वापसी के इस कार्यक्रम के पहले चरण में सबसे ज्यादा लोगों के केरल, तमिलनाडु और दिल्ली लौटने की उम्मीद है. तकरीबन 17 लाख आप्रवासी भारतीय फिलहाल दुनिया भर में फंसे हैं. सशस्त्र बल भी जहाजों से भारतीय नागरिकों को लाने की योजना पर काम कर रहे हैं. भारतीय नौसेना के दो जहाज मालदीव से 1,000 भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए रवाना हो चुके हैं.
भारत लौटने पर सभी यात्रियों को 14 दिनों के लिए क्वारंटीन किया जाएगा. 5 मई को गृह मंत्रालय की तरफ से जारी दिशानिर्देशों में साफ कर दिया गया है कि लौटने वाले नागरिकों को अपने क्वारंटीन खर्च उठाना होगा. हरेक चरण पर रकम अदा करने की इस बात को लेकर विवाद पैदा हो गया है. पिछले महीने जब एयर इंडिया ने थोड़े से वक्त के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकिंग खोली थी, अमेरिका में कई भारतीय छात्रों ने शिकायत की थी कि एयरलाइन उड़ान का कार्यक्रम जून में तय करने के लिए उनसे फीस वसूल रही है.
अमेरिका से लौटने के इच्छुक हरेक व्यक्ति को अब एकतरफा टिकट के लिए 1 लाख रुपए अदा करने होंगे. ब्रिटेन से लौटने वालों को 50,000 रुपए का टिकट खरीदना होगा, जबकि खाड़ी देशों से लौटने वाले भारतीयों के लिए टिकट की कीमत करीब 15,000 रुपए होगी.
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