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बिक रहीं आदिवासी बेटियां

राजस्थान के आदिवासी बहुल जिलों से नाबालिग लड़कियों की तस्करी के मामलों की पड़ताल

मिलती हैं धमकियां: उदयपुर जिले के मंडबाल गांव की कमला (बदला हुआ नाम) मिलती हैं धमकियां: उदयपुर जिले के मंडबाल गांव की कमला (बदला हुआ नाम)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:22 AM IST

आनंद चौधरी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की हाल ही में जारी रिपोर्ट के आंकड़े राजस्थान के लिए बहुत डराने वाले हैं. खासकर यहां की महिलाओं और बेटियों को. ये आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में महिलाओं से बलात्कार के मामलों में राज्य पहले स्थान पर रहा. वहीं महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों में वह उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है. यह कोई पहली बार नहीं है. पिछले तीन साल से राजस्थान बलात्कार के मामलों में पहले नंबर पर बना हुआ है. दूसरी तरफ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों की सत्यता पर सवाल उठा रहे हैं. उनका दावा है कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 56 प्रतिशत मामले झूठे हैं.  

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सरकार के दावों और एनसीआरबी के आंकड़ों को एकबारगी अगर किनारे रख दिया जाए तो जमीनी हकीकत बताती है कि राजस्थान के तीन आदिवासी जिलों में महिलाओं के खिलाफ अपराध एक अलग स्तर पर पहुंच चुका है. इन जिलों उदयपुर, डूंगरपुर और बांसवाड़ा में नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त के कई मामले सामने आए हैं. अपनी पड़ताल में इंडिया टुडे को पता चला कि इन जिलों की आदिवासी लड़कियों को मजदूरी के बहाने गुजरात और अन्य राज्यों में ले जाया जाता है और वहां से उन्हें दलालों के हाथ बेच दिया जाता है. मानव तस्करी के खिलाफ लंबे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज शेख बताते हैं कि इन जिलों से रोजाना 10 से 15 साल के करीब दस हजार बच्चे मजदूरी के लिए गुजरात ले जाए जाते हैं. इन्हीं में से कुछ मानव तस्करों के चंगुल में फंस जाते हैं और फिर कभी वापस अपने घर नहीं लौट पाते. राजस्थान से सटी गुजरात सीमा के इलाकों में कई मानव तस्कर गिरोह सक्रिय हैं, जो इन अपराधों को अंजाम देते हैं. 

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इस पड़ताल के दौरान दर्जनों पीड़ित लड़कियों से भेंट की, जो लंबे अरसे तक मानव तस्करों के जाल में फंसी रहीं और अब किसी तरह उससे निकलकर अपने घरों तक पहुंच पाई हैं. हालांकि अब यहां भी वे नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं. इनमें से ज्यादातर को तस्करों ने चंद पैसों के लालच में देह के दलालों को सौंप दिया था. कुछ लड़कियों का उम्र में दो-तीन गुना बड़े लोगों के साथ जबरन विवाह करा दिया गया. इनमें से कुछ लड़कियां किशोरवय उम्र में ही मां भी बन गईं. उदयपुर की कोटड़ा तहसील के सामाजिक कार्यकर्ता सोहन लाल कहते हैं, ''बरसों से हमारे इलाके से लगातार बच्चियां गायब हो रही हैं और पुलिस की कार्रवाई बेअसर है.'' हालांकि उदयपुर संभाग के आइजी प्रफुल्ल कुमार पुलिस का बचाव करते हुए कहते हैं, ''मानव तस्करी को लेकर पुलिस काफी सजग है. हमने कई बार गुजरात पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त कार्रवाई की है और जो भी प्रकरण हमारे संज्ञान में आता है, हम तुरंत कार्रवाई करते हैं.''  

गैर सरकारी संगठन क्राई के अनुसार राजस्थान में हर दिन 12 लड़कियां और दो लड़के यानी, कुल 14 बच्चे गायब हो रहे हैं. मानव तस्करी में मध्य प्रदेश के बाद राज्य दूसरे नंबर पर है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, राजस्थान में पिछले पांच साल में 18 वर्ष से कम आयु के 21,095 बच्चे गायब हुए हैं. इनमें बड़ी तादाद आदिवासी इलाकों के बच्चों की है. इन इलाकों में स्थानीय दलाल नौकरी का लालच देकर मासूम लड़कियों और उनके परिजनों को अपने जाल में फंसाते हैं और फिर उन्हें गुजरात, तेलंगाना और महाराष्ट्र सहित देश के अन्य इलाकों में बेच देते हैं. 

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सरकार आदिवासियों को मानव तस्करों से बचाने में ही असमर्थ नहीं रही बल्कि पीड़ितों को मुआवजे देने में भी नाकाम रही है. मानव तस्करी के ऐसे मामले जिनमें पीड़ित को मानसिक और शारीरिक तौर पर नुक्सान पहुंचाया गया है, उनमें 25 हजार रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक का मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है. राजस्थान में पीड़ित प्रतिकर स्कीम के तहत मानव तस्करी पीड़ित को पुनर्वास के लिए एक लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है लेकिन इंडिया टुडे टीम जिन पीड़िताओं तक पहुंची उनमें से एक को भी मुआवजा नहीं दिया गया. इस मामले पर जब हमने उदयपुर के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिवक्ता ललित मेनारिया से बात की तो उनका कहना था कि आवेदन मिलने पर ही मुआवजा दिया जाता है, लेकिन वे संबंधित इलाके में मुआवजे से वंचित पीड़िताओं की स्थिति का पता लगाएंगे.

आज भी मिल रही हैं धमकियां

उदयपुर जिले के मंडबाल गांव की कमला (बदला हुआ नाम) की उम्र 14 साल है. एक साल पहले मानव तस्कर उसे मजदूरी के बहाने गुजरात ले गए और 80 हजार रुपए में राजकोट जिले के बालसर गांव के अजीत को बेच दिया. कमला के पिता बासु पारगी शारीरिक रूप से अशक्त हैं, इस वजह से वे अपनी बेटी को तलाश भी नहीं कर पाए. 8-10 महीने बाद मौका पाकर कमला अजीत के चंगुल से छूटकर तो भाग आई, लेकिन मुश्किलों ने यहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ा. कमला और उसके पिता को रोज धमकियां मिलती हैं कि पुलिस को कुछ बताया तो दोनों को जान से मार देंगे. घर लौटकर कमला और उसके परिजनों ने पुलिस में मामला भी दर्ज कराया लेकिन अब तक पुलिस की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखी.

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कैसे होती है लड़कियों की तस्करी

राजस्थान की सीमा से सटे गुजरात के कई गांव मानव तस्करी के लिए कुख्यात हैं. गुजरात के खेड़ब्रह्मा, मेहसाणा और हिम्मतनगर जिलों के इन गांवो में राजस्थान से रोज कई बच्चियां लाई जाती हैं. यहां सक्रिय दलाल मजदूरी के नाम पर लाई जाने वाली इन आदिवासी लड़कियों के नाम से पहले फर्जी पहचान पत्र बनवाते हैं. फिर जबरदस्ती उनकी किसी भी व्यक्ति के साथ शादी करवाकर मैरिज सर्टिफिकेट हासिल कर लेते हैं. जिस व्यक्ति के साथ शादी कराई जाती है, उसी के साथ इन लड़कियों को तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों में प्राइवेट गाड़ियों में भेजा जाता है. इस दौरान रास्ते में पुलिस इन्हें रोकती है तो मैरिज सर्टिफिकेट दिखाकर ये लोग बच जाते हैं. 3 सितंबर को राजस्थान के सिरोही जिले से पुलिस ने आदिवासी लड़कियों की तस्करी करने और उन्हें बेचने वाले एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया है. 

पुलिस की गिरफ्त में आए इन आरोपियों में एक महिला दिवाली भी शामिल हैं जो अपने पति वनराज के साथ मिलकर इस रैकेट को चला रही थी. गुजरात के मेहसाणा का रहने वाला नागजी इस गिरोह का मास्टर माइंड था. 

सिरोही एसपी ममता गुप्ता की अगुआई में पिंडवाड़ा के डिप्टी एसपी जेठू सिंह करणोत ने घटनाओं की कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए नागजी को गिरफ्तार किया है. जेठू सिंह करणोत बताते हैं, ''दिवाली नौकरी का हवाला देकर नाबालिग लड़कियों को अपने साथ लाती थी. लड़कियों के परिजनों को 20-25 हजार रुपए एडवांस देकर यह कहा जाता था कि उनकी बेटी को नौकरी मिल गई है और अब हर महीने उनको पैसे मिलेंगे.'' पुलिस तहकीकात में पता चला है कि बाद में लड़कियों को नागजी के हवाले कर दिया जाता था. नागजी इन्हें गुजरात के किसी शहर में ले जाकर तब तक कैद में रखता था जब तक कि उनका सौदा न हो जाए. इस बीच नागजी और उसके साथी इन नाबालिग लड़कियों के साथ आए दिन बलात्कार भी करते थे.

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13 साल की उम्र में बनी मां

उदयपुर जिले की कोटड़ा तहसील के मामेर गांव की रोसी (बदला हुआ नाम) की उम्र महज 17 साल है और वह 4 साल के बच्चे की मां है. जनवरी 2017 में 12 साल की रोसी को मानव तस्कर मजदूरी के लिए गुजरात ले गए थे, जहां उसे 35 साल के एक युवक को बेच दिया गया. घरवाले पांच साल तक बेटी की तलाश में भटकते रहे लेकिन कोई सुराग नहीं लगा. पांच साल बाद मार्च 2022 में जब रोसी बीमारी की हालत में घरवालों को मिली तो एक बच्चा उसकी गोद में था और दूसरा कोख में. समय पर इलाज नहीं मिल पाने के कारण दूसरे बच्चे की कोख में ही मौत हो गई. परिजनों ने पुलिस थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया लेकिन अभी तक किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. परिजनों को अब भी डर है कि मानव तस्कर उनकी बेटी को फिर उठाकर ले जाएंगे. 

दलालों को पैसा देकर छुटकारा

उदयपुर जिले के आशावाड़ा गांव की 15 साल की वमिला (बदला हुआ नाम) इस साल की शुरुआत में गुजरात के पालनपुर में मजदूरी के लिए गई थी. मानव तस्कर बाजार से उठाकर उसे पाली ले गए. तस्करों ने वहां आधार कार्ड में उसका नाम बदलवाया और उम्र 21 साल करा दी. फिर कोर्ट में 50 साल के मानाराम नाम के एक अधेड़ से उसकी शादी करा दी. शादी के तुरंत बाद मानाराम और उसके साथी उसे तेलंगाना ले गए और वहां उसे देह व्यापार के दल-दल में झोंक दिया गया. छह माह तक वमिला को किसी से बात भी नहीं करने दी गई. इसके बाद जब घरवालों को उसका पता चला तो दलालों ने कहा कि उसे 10 लाख रुपए में खरीदा गया है और पैसा मिलने पर ही वे उसे वापस भेजेंगे. पिता ने अपना सब कुछ बेचकर बड़ी मुश्किल से एक लाख रुपए लौटाए और पांच लाख रुपए जल्द देने की बात कहकर वमिला को उनसे मुक्त कराया. एक माह पहले ही वह अपने गांव लौटी है.

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35 साल बड़े व्यक्ति से जबरदस्ती शादी की गई

मानव तस्करों ने उदयपुर की कोटड़ा तहसील के महाद गांव की कला की जिंदगी को नारकीय बना दिया है. आठ साल पहले मजदूरी के लिए गुजरात गईं कला को दलालों ने उससे उम्र में 35 साल बड़े रमेश को 30 हजार रुपए में बेच दिया था. मेहसाणा जिले के बढ़ारिया गांव में रमेश ने कला को सात साल तक बंधक बनाकर अपने साथ रखा. इस दौरान कला के दो बच्चे भी हो गए. सात साल बाद पिता की मौत के बाद बड़ी मुश्किल से रमेश के चंगुल से छूटकर वह अपने गांव आई. गांव आकर मानव तस्कर और रमेश के खिलाफ पुलिस थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. दूसरी तरफ गांव में उसे लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं.

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