
वाराणसी में अस्सी घाट से हरिश्चंद्र घाट की तरफ चलने पर कर्नाटक घाट की बगल में हनुमान घाट है. इस घाट के पीछे बसे मोहल्ले को 'मिनी तमिलनाडु’ कहा जाता है. यहां पर वे 200 तमिल परिवार रहते हैं जिनके पूर्वज तमिलनाडु से आकर काशी में बस गए थे.
यहां पर बना काशी कामकोटीश्वर मंदिर हू-ब-हू तमिलनाडु के मदुरै के विश्व प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर की प्रतिकृति है. दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला के दक्ष शिल्पकारों के बनाए उत्तर भारत के इस इकलौते मंदिर में शिव के पंचायतन स्वरूप के दर्शन होते हैं. कांची शंकराचार्य पीठ की ओर से संरक्षित इस देवालय में केरल के शबरीमाला पर्वत पर विराज रहे स्वामी अयप्पा शबरीमाला भी उसी रूप में पूजित और प्रतिष्ठित हैं.
मंदिर की बगल में स्वाधीनता संग्राम के लिए अनेक तमिल कविताओं के जरिए जनजागृति फैलाने वाले राष्ट्रकवि चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती की प्रतिमा स्थापित है, जो 16 साल की अवस्था में काशी आए और यहां ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई. हनुमान घाट से करीब 200 मीटर की दूरी पर विजयानगरम घाट की बगल में केदारघाट है जो तमिलनाडु के साथ दक्षिण भारतीय लोगों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. यहां बाबा केदारनाथ के साथ माता पार्वती लिंग स्वरूप में विराजमान हैं. यहां के गौरी-केदाश्वर मंदिर का प्रबंधन तमिलनाडु के कुमारस्वामी मठ की ओर से किया जाता है. कार्तिक के महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
देश की प्राचीनतम धर्मनगरी काशी के तमिलनाडु और तमिल भाषा से पौराणिक समय से चले आ रहे श्रद्धा और संस्कृति के संबंध को और प्रगाढ़ करने के लिए वाराणसी में काशी-तमिल संगमम् के अनोखे कार्यक्रम की शुरुआत की गई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत केंद्र सरकार के कई मंत्रियों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 19 नवंबर को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के एंफीथियेटर मैदान में काशी-तमिल संगमम् का उद्घाटन किया.
तमिलनाडु से भावनात्मक रिश्ता जोड़ने के लिए मोदी परंपरागत तमिल परिधान में मौजूद थे. यहां अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ वणक्कम (नमस्ते) काशी, वणक्कम तमिलनाडु कह कर की. भाषण में मोदी ने काशी और तमिलनाडु की सभ्यता के नए-पुराने सभी पहलुओं को बखूबी छुआ. नई पीढ़ी को संकेत करते वे बोले, ''आज भी तमिल विवाह परंपरा में काशी यात्रा का जिक्र होता है यानी तमिल युवाओं के जीवन की नई यात्रा को काशी यात्रा से जोड़ा जाता है.’’
उत्तर-दक्षिण की संस्कृति को जोड़ने के साथ राष्ट्रवाद के एजेंडे को भी व्यापक बनाते हुए मोदी ने मंच से तमिल भाषा में ''नाट्टु नलने नमदु नलन’’ कहा और इसकी व्याख्या करते हुए बताया कि राष्ट्रहित ही हमारा हित है. तमिलनाडु में जन्मे बीएचयू के पूर्व कुलपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, रामघाट पर सांगवेद की स्थापना करने वाले राजेश्वर शास्त्री, कवि सुब्रमण्यम भारती समेत कई तमिल हस्तियों का जिक्र करके प्रधानमंत्री ने काशी के विकास में तमिलनाडु के योगदान की भी चर्चा की. इस मौके पर उन्होंने तमिलनाडु के प्रमुख मठ-मंदिर के नौ अधीनम् (धर्माचार्य) को भी पहली बार काशी में सम्मानित कर दक्षिण भारत को एक सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की.
काशी-तमिल संगमम् की शुरुआत भले ही 17 नवंबर से हुई हो लेकिन इसकी नींव पिछले वर्ष दिसंबर में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन से ठीक पहले पड़ गई थी. कॉरिडोर के लोकार्पण से ठीक पहले जब काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद का पुनर्गठन हुआ तब उसमें पहली बार तमिलनाडु मूल के विद्वान वेंकटरमण घनपाठी को भी सदस्य बनाया गया. वेदों के अध्ययन और अनुष्ठानों से जुड़े होने के कारण ये घनपाठी कहलाए.
चेन्नै में पैदा हुए 49 वर्षीय वेंकटरमण ने बीकॉम तक की शिक्षा वाराणसी में ग्रहण की है. इनके पिता वी. कृष्णमूर्ति घनपाठी काशी के ख्याति प्राप्त संस्कृत विद्वान थे. वर्ष 2015 में उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वेंकटरमण घनपाठी के पांच पीढ़ियों से पूर्वज काशी में रहकर वैदिक अनुष्ठानों से जुड़े थे. काशी कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद प्रधानमंत्री ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को काशी और तमिल संस्कृतियों के बीच सेतु सरीखे किसी कार्यक्रम की योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी.
प्रारंभिक रूपरेखा तैयार होने के बाद अगस्त में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में भारतीय भाषा समिति के चेयरमैन चामू कृष्ण शास्त्री को काशी-तमिल संगमम् का 'कॉन्सेप्ट नोट’ बनाने की जिम्मेदारी सौंपी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े 68 वर्षीय शास्त्री देश में संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं.
भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए गठित 'हाइपावर कमेटी’ भारतीय भाषा समिति ने नई शिक्षा नीति-2020 के तहत 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ संकल्पना को आधार बनाकर काशी और तमिलनाडु के सांस्कृतिक, शैक्षिक, भाषाई, आर्थिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने के लिए काशी-तमिल संगमम् की रूपरेखा तैयार की.
संगमम् के लिए कार्तिक मास में काशीवास की योजना बनी. तमिलनाडु में कार्तिक मास उसी तरह मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में श्रावण मास. चामू कृष्ण शास्त्री बताते हैं, ''काशी-तमिल संगमम् के लिए यह तय किया गया कि तमिलनाडु के करीब ढाई हजार प्रतिनिधियों को काशी आना चाहिए और यहां की संस्कृति के विविध पहलुओं के साथ यहां हुए विकास को देखना चाहिए.’’
संगमम् की रूपरेखा बनने के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मद्रास और काशी हिंदू विश्वविद्यालय को नोडल सेंटर बनाया गया. आइआइटी मद्रास को तमिलनाडु से आने वाले प्रतिनिधियों के चयन का जिम्मा दिया गया तो बीएचयू को संगमम् से जुड़े विविध कार्यक्रमों के आयोजन का. बीएचयू की आयोजन समिति की जिम्मेदारी संकाय अध्यक्ष हरिशचंद्र सिंह राठौर को जरूर दी गई, पर तमिल मूल के गंगाधर और शशिनाथ को भी इसमें शामिल किया गया.
संगमम् को और प्रभावी बनाने के लिए तमिल आइएएस अफसर एस. राजलिंगम को वाराणसी का जिलाधिकारी बनाया गया. 6 नवंबर को वाराणसी के जिलाधिकारी का दायित्व संभालते ही उन्होंने तमिलनाडु से काशी आने वाले प्रतिनिधियों के स्वागत की तैयारियों को तेज कर दिया.
काशी आने वाले प्रतिनिधियों का चयन करने के लिए आइआइटी मद्रास ने एक वेबसाइट बनाकर शिक्षा, संस्कृति समेत करीब 12 श्रेणियों में आवेदन आमंत्रित किए गए. उन आवेदन पत्रों की स्क्रीनिंग करके 2,500 प्रतिनिधियों का चयन किया गया जिन्हें 200-200 के दस समूहों में बांटा गया. 17 नवंबर से शुरू काशी-तमिल संगमम् में आने के लिए 200 प्रतिनिधियों के समूह हर दूसरे दिन चेन्नै से काशी रवाना होने लगे. इसके लिए चेन्नै से काशी आने वाली ट्रेनों में तीन विशेष डिब्बे लगाए गए हैं.
हर प्रतिनिधिमंडल के साथ गाइड और अनुवादक भी हैं. दो दिन वाराणसी में रहकर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, गंगा घाट, सारनाथ समेत अन्य प्रमुख स्थानों का भ्रमण करने के बाद तमिल प्रतिनिधियों का समूह दो दिन संगमनगरी प्रयागराज में बिताता है और इसके बाद वह भव्य राममंदिर के निर्माण का गवाह बनने अयोध्या को रवाना हो जाता है. इस तरह आठ दिनों तक यूपी में काशी समेत अन्य स्थानों की संस्कृतियों और हो रहे विकास से रूबरू होने के बाद प्रतिनिधिमंडल वापस तमिलनाडु की ओर रवाना हो जाता है.
चामू कृष्ण शास्त्री बताते हैं, ''तमिलनाडु के प्रतिनिधियों के लिए बीएचयू में एक शैक्षिक सेमिनार का आयोजन भी होता है.’’ साथ ही तमिलनाडु की कला-संस्कृति को और काशी से उनके जुड़ाव को दर्शाते हुए बीएचयू के एम्फीथियेटर में एक विशाल प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है.
यहां बने पंडाल में तमिलनाडु से आए 750 कलाकार रोज शाम को तमिल कला की विधाओं और शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन कर रहे हैं. शास्त्री बताते हैं ''तमिल प्रतिनिधिमंडल विभिन्न जगहों का भ्रमण कर काशी और अन्य स्थानों के बारे में जानकारी पा रहे हैं तो काशी की जनता प्रदर्शनी के माध्यम से तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत और परंपरा से परिचित हो रही है.’’
तमिल संस्कृति से सांस्कृतिक रिश्ते को और प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से 15 नवंबर से काशी विश्वनाथ धाम में ब्रह्ममुहूर्त से ही तमिलनाडु की प्रसिद्ध गायिका रहीं भारत रत्न एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी की आवाज में सुप्रभातम का प्रसारण दोबारा शुरू किया गया है. धाम के गेट नंबर चार के सामने सरकारी लॉकर के प्रभारी बबलू पाठक बताते हैं ''काशी में सुप्रभातम की शुरुआत 1983 में हुई थी, मगर एक दशक बाद अज्ञात वजहों से इसका प्रसारण बंद हो गया था.’’
सुप्रभातम में विश्वेश्वर, माधव, ढुंढिराज गणेश, दंडपाणि, भैरव, काशी, मां गंगा, मां भवानी और मणिकर्णिका स्मरण करते हुए बाबा विश्वनाथ को नमन किया गया है. जिला प्रशासन काशी तमिल संगमम् के दौरान वाराणसी के कमांड कंट्रोल सिस्टम से तमिल भाषा में सुप्रभातम पूरे शहर में प्रसारित करने की योजना तैयार कर रहा है.
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिल महाकवि सुब्रमण्यम भारती की बुआ के हनुमान घाट स्थित आवास को संग्रहालय बनाने की घोषणा की है. इसके अलावा केंद्र सरकार 11 दिसंबर को सुब्रमण्यम भारती की जन्मतिथि को भाषा दिवस के रूप में भी मनाएगी. प्रधान ने सुब्रमण्यम भारती के परिवार को दिसंबर में आयोजित होने वाले काशी-तमिल संगमम् के समापन समारोह में मंच पर मौजूद रहने के लिए न्योता भेजा है.
काशी-तमिल संगमम् को पूरी तरह एक सांस्कृतिक आयोजन के रूप में भले ही पेश किया जा रहा हो लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ इसे दूसरे नजरिए से देख रहे हैं. बीएचयू से सेवानिवृत्त प्रोफेसर अजित कुमार बताते हैं, ''काशी-तमिल संगमम् के जरिए भाजपा सरकार ने अपने 'मिशन साउथ’ की शुरुआत की है. यह संगमम् दक्षिण भारतीय राज्यों खासकर तमिलनाडु में भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे की पैठ बनाने की दिशा में महत्पपूर्ण कड़ी साबित होगा.’’
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भले ही 20 महीने से कम का समय रह गया हो लेकिन भाजपा दक्षिण भारत के राज्यों में अपनी सीटों में इजाफा करना चाहती है. खासकर तमिलनाडु में उस स्थिति में पहुंचना चाहती है जहां भाजपा की सीटें दो अंकों में पहुंच सकें. दक्षिणी राज्यों में तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 39 लोकसभा सीटें हैं लेकिन वहां भाजपा गठबंधन का केवल एक ही सांसद है. इसलिए राजनीतिक लिहाज से तमिलनाडु भाजपा के लिए सर्वाधिक संभावनाओं वाला प्रदेश है.
वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव तमिलनाडु में एआइएडीएमके के साथ गठबंधन कर लड़ने वाली भाजपा के मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई है. वर्ष 2014 में भगवा खेमे को राज्य में करीब 5 प्रतिशत वोट मिले थे तो पांच साल बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में घटकर 3.66 प्रतिशत रह गया था. भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि तमिलनाडु के पड़ोसी राज्य केरल में भाजपा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है.
यहां वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में ''नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस’’ (एनडीए) ने कुल 10.85 प्रतिशत वोट हासिल किए थे जो पांच साल बाद बढ़कर 15.20 प्रतिशत हो गए थे. बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी कहते हैं, ''काशी-तमिल संगमम् से उत्तर और दक्षिण राज्यों के बीच सांस्कृतिक और व्यावसायिक रिश्ते मजबूत होंगे.
अगर राजनीतिक रूप से इसका सकारात्मक प्रभाव होता तो इसका फायदा सत्तारूढ़ भाजपा को मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन इसमें लंबा समय लगेगा.’’ जाहिर है, काशी-तमिल संगमम् के जरिए भाजपा दक्षिणी राज्यों में कमल खिलाने की एक दीर्घकालीन रणनीति की शुरुआत कर चुकी है.