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नगर निगम चुनाव बना नाक की लड़ाई

दिल्ली के नगर निगम चुनाव में जहां भाजपा सत्ता बचाने की जुगत में है, वहीं  आप पहली बार सत्तामें आने की. इसके लिए दोनों पार्टियों की क्या हैं रणनीतियां.

अपनी-अपनी तैयारी : दिल्ली में भाजपा के 'पंच परमेश्वर सम्मेलन’ के दौरान पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के साथ अन्य वरिष्ठ नेता अपनी-अपनी तैयारी : दिल्ली में भाजपा के 'पंच परमेश्वर सम्मेलन’ के दौरान पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के साथ अन्य वरिष्ठ नेता
हिमांशु शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 27 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST

बीते 16 अक्तूबर को आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआइ का सम्मन मिला. वे अगले दिन चुनाव प्रचार के लिए गुजरात जाने वाले थे, लेकिन इसके बाद सिसोदिया और पार्टी के तमाम नेता भाजपा पर हमलावर हो गए. विवादित शराब नीति की जांच के सिलसिले में मिले इस सम्मन को लेकर आप की तरफ से आरोप लगाए जाने लगे कि केंद्र की भाजपा सरकार सिसोदिया को गिरफ्तार करने वाली है ताकि वे गुजरात न जा सकें .

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हालांकि दिलचस्प बात यह है कि भाजपा उसी दिन दिल्ली में आप को मात देने के लिए जमीनी स्तर पर बड़ा कार्यक्रम कर रही थी. 16 अक्तूबर को राजधानी के रामलीला मैदान में भाजपा ने 'पंच परमेश्वर सम्मेलन’ आयोजित किया था. यहां पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने अपने भाषण में आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए कहा, ''केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में घोटाले पर घोटाला किया है. केजरीवाल तुमने दिल्ली को बेहाल किया, अब तुम्हें दिल्ली से जाना होगा, भाजपा को यहां आना होगा.’’

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव की तैयारियों को ध्यान में रखते हुए इस सम्मेलन का आयोजन दिल्ली प्रदेश भाजपा ने किया था. इसमें भाजपा नेताओं की बातों ने संकेत दे दिया कि भले ही दिल्ली में चुनाव निगम का हो लेकिन निशाने पर प्रदेश की केजरीवाल सरकार रहने वाली है. दिल्ली की विवादित शराब नीति पर न सिर्फ नड्डा ने बल्कि दूसरे नेताओं ने भी जमकर हमला बोला. इसके अलावा भाजपा स्कूलों और मोहल्ला क्लिनिकों में बदहाली का आरोप भी आप सरकार पर लगा रही है. दिलचस्प बात है कि ये तीनों मुद्दे निगमों से जुड़े नहीं हैं, फिर भी भाजपा इनके बहाने एमसीडी चुनाव में आप को घेरने की रणनीति पर चल रही है.

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एमसीडी चुनाव इस साल मार्च में ही हो जाने थे. लेकिन केंद्र सरकार ने 2012 के उस फैसले को पलट दिया जिसके तहत दिल्ली नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटा गया था. केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन करके अलग-अलग बने तीन निगमों को आपस में मिला दिया. केंद्र ने तर्क दिया कि अलग-अलग निगम होने की वजह से तीनों निकायों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है और ये अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे.

हालांकि, उस फैसले की आप ने यह कहकर आलोचना की कि केंद्र सरकार निगम का चुनाव टालना चाहती है ताकि उसे तैयारी के लिए और समय मिल जाए. पार्टी ने यह भी कहा कि भाजपा अपनी संभावित हार से बचने के लिए ऐसा कर रही है. भाजपा एमसीडी की सत्ता में 2007 से ही लगातार बनी हुई है. लेकिन इस बार उसे प्रदेश की सत्ताधारी आप से कड़ी चुनौती मिल रही है.
तीनों निगमों को फिर से एक बनाने के बाद सीटों के परिसीमन के लिए केंद्र सरकार ने एक समिति बनाई थी.

इस समिति के रिपोर्ट देने के बाद 18 अक्तूबर को केंद्र की ओर से इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई. नए नोटिफिकेशन के मुताबिक अब दिल्ली में निगम वार्डों की कुल संख्या 272 से घटकर 250 रह जाएगी. इनमें 42 सीटों को अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया गया है. इस नोटिफिकेशन के साथ ही दिल्ली में एमसीडी चुनाव कराने का रास्ता साफ हो गया है. संभावना है कि दिसंबर में एमसीडी के चुनाव होंगे.

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चुनाव नजदीक आते देख दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियों ने अपनी तैयारियों को तेज कर दिया है. एमसीडी चुनावों में कांग्रेस भी अपने उम्मीदवार उतारेगी लेकिन यहां सीधा मुकाबला भाजपा और आप के बीच है. भाजपा के सामने एमसीडी चुनावों में दो बड़ी चुनौतियां हैं. पहली तो यही है कि वह पिछले 15 साल से निगम की सत्ता पर काबिज है और ऐसे में उसे सत्ता विरोधी लहर का भय सता रहा है. वहीं उसकी दूसरी चुनौती है, पिछले कुछ सालों में दिल्ली में मजबूत हुई आम आदमी पार्टी. 

इन चुनौतियों की पृष्ठभूमि में भाजपा पूरी चुस्ती के साथ तैयारी में जुटी है. जिस पंच परमेश्वर सम्मेलन का आयोजन अभी किया गया, उसके लिए पार्टी ने तकरीबन दो महीने पहले हर बूथ पर 'पंच परमेश्वर’ चुने थे. दिल्ली में तकरीबन 13,000 मतदान केंद्र हैं. इन सभी केंद्रों पर पार्टी ने पांच-पांच कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की और उन्हें अपने बूथ के चुनावी प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई.

पार्टी ने इन्हें ही हर बूथ का 'पंच परमेश्वर’ कहा. इन कार्यकर्ताओं और संगठन में नीचे से लेकर ऊपर तक के सभी पदाधिकारियों समेत सभी सांसदों, विधायकों और पार्षदों को पार्टी ने अपने इस सम्मेलन में बुलाया था. इस बारे में दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष आदेश गुप्ता कहते हैं, ''पंच परमेश्वर सम्मेलन के जरिए हमने दिल्ली सरकार द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचारों को उजागर करने का काम किया है. एक लाख कार्यकर्ताओं के जरिए हम दिल्ली के तकरीबन दो करोड़ लोगों में से हर किसी के पास पहुंचने की योजना बना रहे हैं.’’

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संगठन के स्तर पर हर बूथ के लिए 'पंच परमेश्वर’ की नियुक्ति के अलावा पार्टी ने हर विधानसभा सीट पर एक 'विस्तारक’ की नियुक्ति भी की है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को विस्तारक बनाया गया है. इनको यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर वोटर तक पार्टी का कोई न कोई कार्यकर्ता पहुंचे.

एमसीडी चुनावों को लेकर भाजपा और आप के बीच चल रही जुबानी जंग के मैदान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी एंट्री हो गई है. 20 अक्तूबर को दक्षिणी दिल्ली में एक वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट के उदघाहोटन कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा, ''वे दिल्ली को आपनिर्भर बनाना चाहते हैं. हम इसे आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं.

अगले एमसीडी चुनाव में, लोगों को यह तय करना होगा कि वे आपनिर्भर बनना चाहते हैं या आत्मनिर्भर.’’ इस पर अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके पलटवार किया, ''केंद्र सरकार ने 15 साल में एमसीडी को कितने पैसे दिए? दोनों जगह बीजेपी की सरकार थी? डबल इंजन? अपनी नाकामी के बहाने मत बनाइए. जनता को बताइए आपने 15 साल में क्या काम किया. मैं चैलेंज करता हूं कोई एक काम बता दीजिए.’’

आम आदमी पार्टी भी पहली बार एमसीडी की सत्ता में आने के लिए पूरा जोर लगा रही है. आप 2017 में भी एमसीडी चुनाव में उतरी थी और तीनों नगर निगम में कांग्रेस को पछाड़कर मुख्य विपक्षी पार्टी बनने में कामयाब हुई थी. तब आप ने अपनी हार के लिए ईवीएम में गड़बड़ियों का आरोप लगाया था. लेकिन उस चुनाव में आप की हार की प्रमुख वजहों में आंतरिक कलह भी थी. टिकटों के बंटवारे को लेकर पार्टी के कुछ नेताओं में असंतोष था. बवाना से पार्टी विधायक वेद प्रकाश ने निगम चुनावों के दौरान ही आप छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. दूसरे विधायक राजेश ऋषि ने भी पार्टी के टिकट बंटवारे पर सवाल उठाए थे.

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हालांकि, इस बार आप काफी सतर्क दिख रही है. पार्टी ने अपने एक विधायक दुर्गेश पाठक को एमसीडी चुनावों का प्रभारी बनाया है. आप की तैयारियों के बारे में दुर्गेश बताते हैं, ''हमने कार्यकर्ताओं की 3,000 टीमें बनाई हैं. ये लोग दिल्ली में घर-घर जा रहे हैं और लोगों के बीच जागरूकता फैला रहे हैं. ये कार्यकर्ता दिल्ली के लोगों को बता रहे हैं कि कैसे भाजपा शासित निगम में और निगम के कार्यों में अव्यवस्था दिख रही है.’’ पार्टी का दावा है कि उसने अब तक 20 लाख परिवारों से संवाद किया है.

आम आदमी पार्टी ने एमसीडी में पिछले 15 साल के भाजपा कार्यकाल की नाकामियों की सूची तैयार की है और इसे लोगों के बीच लेकर जा रही है. आप दिल्ली में कचरा प्रबंधन को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है. आप के नेता लगातार यह बयान दे रहे हैं कि पिछले 15 साल में भाजपा ने दिल्ली को कूड़े के बड़े-बड़े पहाड़ देने के अलावा कुछ और नहीं किया है.

दिलचस्प है कि जब आप ने इस मुद्दे को बार-बार उठाना शुरू किया तो दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने इस मसले पर संबंधित एजेंसियों को कार्रवाई करने के निर्देश दिए. इस पर आप ने उपराज्यपाल पर आरोप लगाया कि एमसीडी का काम वे अपने हाथों में लेकर भाजपा की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. इस मुद्दे के साथ आप यह वादा भी कर रही है कि एमसीडी में आने पर वह दिल्ली के कूड़े की समस्या का स्थाई समाधान करेगी.

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1998 से 2013 तक दिल्ली सरकार चलाने वाली कांग्रेस जिस तरह से विधानसभा चुनावों में हाशिये पर चली गई है, उसी तरह से निगम चुनावों में भी उसके लिए बहुत संभावनाएं नहीं दिख रही हैं. 2017 के निगम चुनावों में पार्टी तीनों निगमों में तीसरे स्थान पर चली गई थी. इस बार कांग्रेस की राह और मुश्किल लग रही है. एमसीडी चुनाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस की सुस्ती साफ दिख रही है.

जहां भाजपा और आप सघन जनसंपर्क अभियान चला रही हैं, वहीं कांग्रेस विभिन्न स्तर पर समिति बनाकर तैयारियां करने में लगी है. पिछले दिनों एमसीडी चुनावों को लेकर प्रदेश कांग्रेस की एक बैठक हुई और इसमें जिला स्तर पर एक-एक कोऑर्डिनेटर नियुक्त किए गए. इन्हें एमसीडी चुनावों में उम्मीदवारों के चयन के लिए जानकारियां जुटाकर पार्टी को देने को कहा गया है.

हालांकि, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष अनिल चौधरी कहते हैं, ''एमसीडी चुनावों की तैयारियों का जायजा लेने के लिए हम लगातार बैठकें कर रहे हैं. हमारी तैयारी अपनी पूरी गति से चल रही है.’’ लेकिन दिल्ली में जमीनी स्तर पर एमसीडी चुनावों को लेकर भाजपा और आप के ही कार्यकर्ता सक्रिय दिख रहे हैं. कांग्रेस कार्यकर्ता या कांग्रेस का कोई चुनावी अभियान जमीनी स्तर पर नहीं दिख रहा.

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19 अक्तूबर को दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग ने दिल्ली के 250 नगर निगम वार्डों के लिए निर्वाचन-सह-जांच अधिकारियों की नियुक्ति की है. इस नियुक्ति को एमसीडी चुनाव प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत माना जाता है. नए परिसीमन के आधार पर होने वाले एमसीडी चुनावों की तारीखों की घोषणा अगले कुछ दिनों में हो सकती है और दिसंबर महीने में चुनाव हो सकते हैं. 

क्यों अलग है, इस बार का एमसीडी चुनाव

 2012 में दिल्ली नगर निगम को तीन अलग-अलग निगमों में बांट दिया गया था. इस बार इन तीनों को मिलाकर फिर एक निगम बना दिया गया है.

 इस बार का चुनाव नए परिसीमन के आधार पर हो रहा है. दिल्ली में कुल वार्डों की संख्या 272 से घटाकर 250 कर दी गई है.

 इनमें से 42 सीटें अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होंगी. पहले 46 सीटें आरक्षित थीं.

 सात सालों से प्रदेश की सत्ता में होने की वजह से आम आदमी पार्टी का सांगठनिक ढांचा मजबूत हुआ है. इसलिए इस बार भाजपा और आप में दिखेगा सीधा मुकाबला.

 2002 में एमसीडी में तीन-चौथाई बहुमत हासिल करने वाली कांग्रेस इस बार के चुनावों में हाशिये पर दिख रही है.

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