
आठ दशकों से गीत-संगीत से गुलजार रहने वाली तानसेन की मजार पर इस बार सन्नाटा पसरा था. यहां की फिजा में हर साल तैरने वाली स्वरलहरियां अब शायद इधर कभी सुनाई नहीं देंगी.
वजह है पुरातत्व महत्व के संरक्षित स्मारकों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की आपत्ति. एएसआइ का कहना है कि संस्कृति विभाग संरक्षित स्मारकों पर कार्यक्रम कर उनके मूल स्वरूप को नुकसान पहुंचा रहा है.
इसके बाद से एएसआइ और संस्कृति विभाग में ठन गई है. इसी झ्गड़े में इस साल ग्वालियर के तानसेन संगीत समारोह की जगह भी बदल दी गई.
अब तक यह समारोह मोहम्मद गौस के मकबरा परिसर में बनी तानसेन की मजार पर होता था लेकिन इस बार आयोजन बैजाताल में हुआ. इसके बाद से देसी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र खजुराहो नृत्य उत्सव और जहाज महल मांडू उत्सव के आयोजन स्थलों को लेकर असमंजस बना हुआ है. अंदेशा जताया जा रहा है कि आने वाले समय में संरक्षित स्मारकों में संस्कृति से जुड़ी गतिविधियां शायद ही देखने को मिल पाएंगी.
वर्षों से तानसेन समारोह का गवाह बनती आ रही तानसेन की मजार पर इस बार केवल मिलाद और कव्वाली आयोजित कर चादरपोशी कर दी गई. बैजाताल जहां इस समारोह की भव्यता से दमक रहा था वहीं तानसेन की मजार पर सन्नाटा पसरा था.
आयोजन स्थान बदलने के पीछे संस्कृति विभाग का तर्क था कि एएसआइ ने तानसेन की मजार पर आयोजन की अनुमति नहीं दी है, जबकि एएसआइ से जुड़े एक स्थानीय अधिकारी बताते हैं कि इस साल संस्कृति विभाग ने मजार पर समारोह के आयोजन की अनुमति मांगी ही नहीं थी, केवल उर्स आयोजन की अनुमति ली गई थी.
एएसआइ से जुड़े अधिकारियों की मानें तो पिछले साल तानसेन संगीत समारोह के दौरान मकबरा परिसर में कीलें ठोकी गई थीं और जहां-तहां कचरा फैलाया गया था. यही नहीं मजार और मकबरे में लगाई गई लाइटें टांगी गई, जिससे स्मारक को नुक्सान पहुंचा. इस पर एएसआइ ने संस्कृति विभाग से इस बाबत जवाब मांगा जो विभाग ने आज तक नहीं दिया.
स्मारक को नुक्सान पहुंचाने का यह विवाद केवल तानसेन की मजार तक सीमित नहीं रहा. इसके बाद एएसआइ अपने संरक्षण वाले हर स्मारक की सुरक्षा को लेकर सचेत हो चुका है.
संस्कृति विभाग के संचालक श्रीराम तिवारी कहते हैं, ''एएसआइ ने खजुराहो के नृत्य उत्सव से लेकर मांडू के महल, भोजपुर और चंदेरी के दुर्ग में होने वाले आयोजनों पर भी आपत्तियां जतानी शुरू कर दी हैं.''
खजुराहो का प्रसिद्घ नृत्य उत्सव यहां के प्रमुख मंदिर कंदरिया महादेव से 700 फीट की दूरी पर होता है. 35 साल पहले तक यह उत्सव मंदिर के भीतर ही हुआ करता था, लेकिन एएसआइ ने इससे मंदिर को नुक्सान पहुंचने की आशंका जताई थी, जिसके बाद यह आयोजन मंदिर के बाहर होने लगा. लेकिन अब एएसआइ को इस पर भी आपत्ति है और उन्होंने मंदिर के बाहर उस जगह पेड़ लगा दिए हैं जहां पर मंच बनाया जाता है.
एएसआइ अधिकारियों ने इस जगह लाइट लगाने पर आपत्ति जताई है और कहा है कि इससे 1,000 साल पुराने मंदिर को नुक्सान पहुंच सकता है. तिवारी भी मानते हैं कि स्मारकों को नुक्सान पहुंचे, ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए लेकिन साथ ही वे यह भी जोड़ते हैं कि लाइट इसलिए लगाई जाती है ताकि लोगों को बैकग्राउंड में मंदिर अच्छे से नजर आए.
एएसआइ की इसी तरह की आपत्ति के बाद मांडू के जहाज महल के पास होने वाला उत्सव इससे बाहर किया जाने लगा है. भोजपुर के दुर्ग में सांस्कृतिक आयोजन करने पर भीएएसआइ ने एतराज जताया है.
एएसआइ, मध्य प्रदेश सर्किल के उप-अधीक्षक बसंत स्वर्णकार कहते हैं कि संरक्षित स्मारकों पर सांस्कृतिक आयोजन किए जा सकते हैं लेकिन इसके लिए कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है.
वे कहते हैं, ''संस्कृति विभाग ने कई बार नियमों का उल्लंघन किया है.'' स्वर्णकार के मुताबिक, पिछले साल के संगीत समारोह के दौरान तानसेन की मजार को नुकसान पहुंचा था, और जब इस बाबत पत्र भेजकर विभाग से जवाब मांगा गया तो कोई उत्तर नहीं मिला. इसलिए एएसआइ ने पिछले साल की सुरक्षा निधि जब्त कर ली थी. इस बार विभाग ने अनुमति ही नहीं मांगी और आयोजन स्थल बैजाताल कर दिया.''
स्वर्णकार साफ कहते हैं, ''जब तक संस्कृति विभाग एएसआइ की शर्तें पूरी नहीं करेगा, तब तक आपत्तियां लगेंगी. आखिरकार इन स्मारकों को फिर से तो नहीं बनाया जा सकता है. ऐसे में आयोजनों को सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही अनुमति दी जाएगी.''
फिलहाल, बीच का कोई रास्ता निकलता नहीं दिखाई दे रहा है. दोनों ही विभाग संरक्षित स्मारकों को नुकसान नहीं पहुंचाने के लिए प्रतिबद्घता दिखा रहे हैं. लेकिन दशकों से चले आ रहे सांस्कृतिक समारोहों की रंगत आयोजन स्थल बदलने से कितनी फीकी पड़ जाएगी और उस मौके के माहौल पर इसका कितना असर पड़ेगा, इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.