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दिल्ली विस्फोट: कोई सुरक्षा नहीं

धमाका सुरक्षित क्षेत्र से बाहर हुआ.'' दिल्ली हाइकोर्ट में 7 सितंबर को आंतकी हमले पर दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (कानून-व्यवस्था) की यह पहली प्रतिक्रिया थी. इससे आम आदमी के प्रति अधिकारियों की उदासीनता जाहिर हो गई.

दिल्ली विस्फोट दिल्ली विस्फोट
aajtak.in
  • नई दिल्‍ली,
  • 11 सितंबर 2011,
  • अपडेटेड 11:18 AM IST

धमाका सुरक्षित क्षेत्र से बाहर हुआ.'' दिल्ली हाइकोर्ट में 7 सितंबर को आंतकी हमले पर दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (कानून-व्यवस्था) की यह पहली प्रतिक्रिया थी. इससे आम आदमी के प्रति अधिकारियों की उदासीनता जाहिर हो गई. इसने हादसे में पीड़ितों के परेशान रिश्तेदारों को नाराज कर दिया, और जब राहुल गांधी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पीड़ितों को देखने के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचे तो गुस्साए रिश्तेदारों ने उन्हें अपने सवालों से तंग कर दिया.

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कुंठित गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने पुलिस आयुक्त बी.के. गुप्ता को तलब किया और उन्हें खरी-खोटी सुनाते हुए विस्फोट की जांच का जिम्मा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को सौंप दिया. चिदंबरम ने इसके लिए पूरी तरह से दिल्ली पुलिस (जो उन्हें ही रिपोर्ट करती है) को दोषी ठहराने की कोशिश की.

उन्होंने कहा कि पुलिस ने दिल्ली को निशाना बना रहे कुछ आतंकी समूहों के बारे में जुलाई में मुहैया कराई गई खुफिया जानकारी पर कार्रवाई नहीं की. लेकिन उनके अपने विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) यू.के. बंसल ने फौरन यह कहकर उनकी बात काट दी कि खुफिया जानकारी स्पष्ट नहीं थी.

रक्षात्मक रवैया अपना रहे दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उस खुफिया जानकारी को अनाप-शनाप करार दिया जिसे गृह मंत्रालय ने उनसे साझा किया था. उस अधिकारी ने कहा, ''हमें 29 जुलाई को बताया गया कि अगर मृत्युदंड पाने वाले और खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के नेता देविंदर सिंह भुल्लर को फांसी दी गई तो सिख आतंकी हमला कर सकते हैं. गृह मंत्रालय ने हमारे साथ कुछ साझा नहीं किया.''

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लेकिन उन्हें पर्याप्त चेतावनी मिल चुकी थी. दिल्ली हाइकोर्ट में बीती 25 मई को धमाका किया गया था, जिसे पुलिस ने गंभीरतापूर्वक नहीं लिया क्योंकि उसमें कोई हताहत नहीं हुआ था. संसद में चिदंबरम ने रक्षात्मक रुख अपनाया. उन्होंने कहा, ''पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली पुलिस को मजबूत बनाने के कई उपाय किए गए हैं. तैयार की गई क्षमता के बावजूद और दिल्ली पुलिस के सतर्क रहने के बावजूद आज दुखद घटना हो गई.''

यही नहीं, यहां तक कि खुफिया और जांच एजेंसियां, सभी गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती हैं, भी कोई आतंकी हमला रोकने या होने के बाद उसे सुलझाने में नाकाम रही हैं. 2008 में मुंबई हमलों के बाद पहली बार फरवरी, 2010 में पुणे जर्मन बेकरी धमाके को अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है हालांकि दो गिरफ्तारियां 'ईं और आरोपपत्र भी दाखिल कर दिया गया. मुंबई एटीएस को उस समय काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी जब सुनवाई के दौरान पता चला कि मंगलूर से गिरफ्तार एक अभियुक्त अब्दुल समद ने कभी पुणे का दौरा नहीं किया.

हादसों के बाद अक्सर देखा गया है कि पुलिस कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लेती है या गिरफ्तार करने का दावा करती है और कुछ दिनों बाद इन लोगों को सबूत के अभाव में छोड़ा दिया जाता है और ऐसा लगता है कि खानापूर्ति के बाद हर कोई इन मामलों को भूल जाता है लेकिन जैसे ही फिर कोई हादसा होता है, पुराने घाव फिर ताजा हो जाते हैं, लेकिन देखा यही गया है कि कुछ दिनों से पुलिस जस की तस दिखाई देती है.

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उसके बाद के धमाकों-अप्रैल, 2010 में बंगलुरू के चिन्नस्वामी क्रिकेट स्टेडियम में धमाके, सितंबर, 2010 में जामा मस्जिद विस्फोट से लेकर दिसंबर, 2010 में वाराणसी के शीतला घाट पर धमाका और जुलाई, 2011 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाके-को भी सुलझाया नहीं जा सका (देखें बॉक्स).

सुरक्षा विशेषज्ञ अजय साहनी कहते हैं कि अगर व्यवस्था को फिर से उत्साहित नहीं किया गया तो और आतंकी हमले होंगे. उनका कहना है, ''देश की आतंकवाद विरोधी व्यवस्था अब भी बहुत कमजोर है और खुफिया जानकारी जुटाने की व्यवस्था गर्त में है.'' आतंक से लड़ने के लिए एक समर्पित और सक्षम खुफिया जानकारी जुटाने की व्यवस्था की जरूरत है. वे कहते हैं, ''इसे ऐसा नहीं बनाया जाना चाहिए कि जिसमें लोग धमाके की खबर खत्म होने के बाद सोने चले जाएं.''

दरअसल, हाइकोर्ट का धमाका दिल्ली पुलिस के रिकॉर्ड पर सबसे बड़ा धब्बा है क्योंकि यह उसी जगह हुआ जहां 25 मई को हमला हुआ था. पुलिस ने उस घटना की यह कहते हुए जांच की थी कि यह इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) की कारस्तानी हो सकती है.

दिल्ली हाइकोर्ट बार एसोसिएशन (डीएचसीबीए) सुरक्षा बढ़ाए जाने की मांग कर रहा था और एक्स-रे मशीन एवं सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला किया गया था. अब डीएचसीबीए अध्यक्ष अमरजीत सिंह चंडियोक कहते हैं कि सीसीटीवी कैमरे ''रास्ते में'' हैं और एक्स-रे मशीनें ''पहुंचने ही वाली हैं.'' निविदा प्रक्रिया में एक समस्या की वजह से जरूरी सुरक्षा उपकरणों की खरीदारी में देरी हो गई. दिल्ली पुलिस जरूरी सीसीटीवी की संख्या बदलती रही.

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इसी दौरान आतंकियों ने अपने विस्फोटक हार्डवेयर को दुरुस्त कर लिया और नवीनतम धमाके के लिए तैयार कर लिया. एक सुरक्षा विशेषज्ञ का कहना है, ''दुनिया में कहीं भी आतंकी एक ही लक्ष्य को दोबारा निशाना नहीं बनाते.''

हाइकोर्ट में 25 मई, उस रोज भी बुधवार ही था, के विस्फोट की कार्य प्रणाली लगभग समान थी. एक छोटे काले थैले में करीब 2 किलो विस्फोटक रखा गया था. उस समय उसे हाइकोर्ट के पिछवाड़े गेट नंबर 7 पर छोड़ा गया था, उस इलाके का इस्तेमाल वकील और वादी अपनी गाड़ियां खड़ी करने के लिए करते हैं. वह बिल्कुल सही योजना थी लेकिन सर्किट की खराबी की वजह से साजिश नाकाम हो गई.

चिदंबरम के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी एक रटा-रटाया बयान दिया-''आतंकी स्वभाव की एक कायरतापूर्ण हरकत''-हर आतंकी हमले के बाद वे ऐसा ही बयान देते हैं.

7 सितंबर को दोपहर में कुछ समाचार चैनलों को कथित तौर पर हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (जी)-पाकिस्तान और बांग्लादेश में स्थित एक आतंकी संगठन जिसके मॉड्यूल भारत में सक्रिय हैं-ने ई-मेल भेजकर धमाके की जिम्मेदारी ली. उस मेल की विश्वसनीयता और स्त्रोत का पता अभी नहीं लगा है लेकिन एनआइए प्रमुख एस.सी. सिन्हा ने कहा कि वे इसे गंभीरतापूर्वक ले रहे हैं.

प्राथमिक जांच से संकेत मिला कि यह ई-मेल दक्षिण अफ्रीका में स्थित प्रॉक्सी सर्वरों से बाउंस होने के बाद भारत संचार निगम लिमिटेड इंटरनेट प्रोटोकोल एड्रेस से भेजी गई. ई-मेल में कहा गया, ''हमारी मांग है कि अफजल गुरु की सजा-ए-मौत जल्दी खत्म की जाए वरना हम प्रमुख हाइकोर्ट और भारतीय सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाएंगे.''

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8 सितंबर को दोपहर में इंडियन मुजाहिदीन ने कुछ समाचार माध्यमों को ई-मेल भेजकर कहा कि हाइकोर्ट में जी ने नहीं, उसने विस्फोट कराया है और जल्दी ही एक शॉपिंग मॉल में विस्फोट होगा. लेकिन खुफिया और जांच एजेंसियों को आतंकी समूह के बारे में कोई सुराग नहीं मिल रहा है. सूत्रों ने कहा कि जांच एजेंसियां पिछले कुछ विस्फोटों से भौंचक हैं क्योंकि वे किसी भी एक आतंकी समूह को दोषी नहीं ठहरा पाई हैं.

अब आइएम के सिर दोष मढऩे की रणनीति कारगर नहीं हो रही है. पिछले आठ प्रमुख हमलों में से पांच के लिए बिना किसी आधार के आइएम को दोषी ठहराया गया. विभिन्न जांच एजेंसियों ने समय-समय पर ''संदिग्ध आइएम कार्यकर्ताओं'' को गिरफ्तार किया.

दरअसल, मुंबई एटीएस ने जुलाई, 2011 में दो व्यक्तियों को आइएम कार्यकर्ता मानकर गिरफ्तार किया और यह तक स्पष्ट नहीं किया कि वे किसी आतंकी हमले में शामिल थे. एक खुफिया सूचना विशेषज्ञ का कहना है, 'हुएक ही स्पष्ट संकेत है कि ऐसा करने को देसी समूह दोषी है जिसका आइएम से कोई सरोकार नहीं है. लेकिन उसके बारे में कुछ और मालूम नहीं है.''

गृह मंत्रालय का कहना है कि पाकिस्तान स्थित आतंकियों की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता. सूत्रों ने कहा कि 17 सितंबर को नोएडा में नीरज नामक एक लड़के को पाकिस्तान से फोन पर दिल्ली में बड़े धमाके की चेतावनी मिली थी, लेकिन समय और जगह के बारे में कुछ नहीं बताया था. वह नंबर इस्लामाबाद में एक सैन्य शिविर का था.

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आलोचना झेल रही दिल्ली पुलिस को केवल एनआइए की मदद करने का काम दिया गया है. 2008 में मुंबई आतंकी हमलों के बाद ऐसे मामलों की जांच करने के लिए संघीय एजेंसी के तौर पर एनआइए का गठन किया गया था.

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल, जो आतंकी हमलों से निबटने के लिए खास तौर पर तैयार की गई है, को चेन झ्पटने जैसे रोजमर्रा के मामूली अपराधों से निबटने में लगा दिया गया है. 2008 में बटला हाउस मुठभेड़ में स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर एम.सी. शर्मा के मारे जाने के बाद इस इकाई को वस्तुतः बेकार बना दिया गया. उसके पास कोई जांच का काम नहीं है.

आतंक से लड़ने के लिए लफ्फाजी से बढ़कर कुछ और करने की जरूरत होती है. 

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