Advertisement

सीएए और एनआरसी का लिटमस टेस्ट साबित होंगे पांच राज्यों के चुनाव

पांच राज्यों में से असम और पश्चिम बंगाल सीएए और एनआरसी के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं.

असम में दिसंबर, 2019 में सीएए विरोधी एक प्रदर्शन (फोटोः पीटीआइ) असम में दिसंबर, 2019 में सीएए विरोधी एक प्रदर्शन (फोटोः पीटीआइ)
सुजीत ठाकुर
  • नई दिल्ली,
  • 24 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST
  • एनआरसी को लेकर असम में भाजपा असहज है
  • सीएए को लेकर तमिलनाडु में भाजपा ने चुप्पी साध रखी है
  • वहीं बंगाल में भाजपा सीएए का मद्दा उठा रही है

पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में सियासी दलों के साथ ही दो चर्चित मुद्दे, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) भी अग्निपरीक्षा से गुजरेंगे. मोदी-2 सरकार में ये दोनों ही मुद्दे सियासी भूचाल मचा चुके हैं और देश के साथ ही दुनिया भर की निगाहे इन मुद्दों पर टिकी हुई हैं.

एनआरसी को लेकर केंद्र सरकार, भाजपा तथा असम की भाजपा सरकार और राज्य की पार्टी इकाई में मतभेद सार्वजनिक हो चुके हैं. असम में एनआरसी के मुद्दे पर भाजपा को इसलिए बैकफुट पर जाना पड़ा था क्योंकि तकनीकी कारणों से 16 लाख से ज्यादा हिंदू परिवार रजिस्टर में स्थान पाने से वंचित रह गए थे. इस चुनाव में भाजपा एनआरसी को लेकर राज्य में बैकफुट पर दिख रही है. हालांकि असम में चुनावी घोषणापत्र जारी करते हुए पार्टी ने एनआरसी लागू करने की बात की है, लेकिन पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को कहना पड़ा कि भाजपा सही तरीके से एनआरसी लागू कर असम के मूल लोगों के हितों की रक्षा करेगी. यह कहते हुए नड्डा ने परोक्ष रूप से उन हिंदू परिवारों को साधने की कोशिश की जो सूची से बाहर हो गए थे और एनआरसी को लेकर अभी तक लोगों में चिता है.

Advertisement

इसी तरह भाजपा पश्चिम बंगाल में एनआरसी का जिक्र नहीं कर रही है लेकिन वहां सीएए का मुद्दा उठा रही है. सीएए के तहत मुस्लिमों को छोड़कर अन्य धर्मों के लोगों, जो बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आए हैं, को नागरिकता देने का प्रावधान है. यह कानून सियासी रूप से इतना संवेदनशील रहा है कि 2019 से ही इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन दिल्ली में हुआ और कई महीनों तक चला. बाद में कोरोना की वजह से आंदोलन तो समाप्त हो गया लेकिन मुद्दा खत्म नहीं हुआ. बंगाल में गैर-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के लिए यह मुद्दा भाजपा प्रमुखता से उठा रही है.

वहीं, सीएए के मुद्दे पर भाजपा तमिलनाडु में चुप्पी साधे बैठी है क्योंकि श्रीलंका से भारत आए दो लाख से ज्यादा तमिल लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान सीएए के तहत नहीं है. सीएए लागू होने के बाद से ही तमिलनाडु में यह मांग होती रही है कि तमिल शरणार्थियों को भी इसके दायरे में लाया जाए. पड़ोसी राज्य पुद्दुचेरी में भी तमिल शरणार्थियों के प्रति संवेदना है. वहीं, दक्षिण भारतीय राज्य केरल का इसाई समुदाय सीएए को लेकर आशावान इसलिए है क्योंकि इस धर्म के उन लोगों को भारत की नागरिता देने का प्रावधान है जो पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान से आए हैं. राजनीतिक मामलों के जानकार एन. अशोकन कहते हैं कि तमिलनाडु, पुद्दुचेरी और केरल में भाजपा के प्रदर्शन से काफी हद तक यह पता चलेगा कि सीएए को लेकर इन राज्यों में भाजपा को किताना समर्थन है. एक अन्य राजनीतिक टीकाकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें असम और पश्चिम बंगाल दो ऐसे राज्य हैं जो सीएए और एनआरसी के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं, क्योंकि पाकिस्तान और बांग्लादेश से काफी संख्या में शरणार्थी भारत आए हैं. इसलिए इन दोनों मुद्दे का लिटमस टेस्ट भी इन चुनावों में होगा.

Advertisement

***

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement