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जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों पर बहार है

लॉकडाउन और कोरोना के खौफ में जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व में इनसानी दखल बंद है. ऐसे में अपनी जनसंख्या बढ़ने के साथ ही लॉकडाउन में रॉयल बंगाल टाइगर्स ने कर लिया रिजर्व में अपनी सल्तनत का विस्तार.

जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में एक बाघ पर दहाड़ता दूसरा बाघ (फोटो : डॉ. विवेक बनर्जी) जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में एक बाघ पर दहाड़ता दूसरा बाघ (फोटो : डॉ. विवेक बनर्जी)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST

राजधानी दिल्ली से 290 किमी दूर देश के सबसे पुराने जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (जीटीआर) में इन दिनों बंगाल टाइगर्स की सलतनत में कोई रुकावट नहीं है. पहले तीन महीने लॉकडाउन और अब कोरोना के खौफ में यहां इनसानी दखल बंद है. टाइगर बिना रोकटोक अपनी बादशाहत बढ़ा रहे हैं. प्रति बाघ जो दायरा पहले लगातार कम होता चला गया था, वह अब इनका कुनबा बढ़ने के बावजूद बढ़ गया है. 12 वर्ग किमी में एक टाइगर के दायरे के साम्राज्य की विरासत प्राकृतिक माहौल में लौट आई है. हालांकि यहां टाइगर कंजर्वेशन के सराहनीय प्रयासों ने इनकी तादाद में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की है. यहां 2014 में 215 बाघ थे, लेकिन चार सालों में ये बढ़कर 260 हो गए. यह वृद्धि दर बाघ संरक्षण के प्रयासों को हौसला देने वाली है.

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जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क 1936 में लुप्तप्राय रॉयल बंगाल टाइगर के संरक्षण के लिए स्थापित किया गया था, जो अब उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर इलाके में है. यह बाघ संरक्षण परियोजना के तहत आने वाला पहला पार्क है. रामगंगा की पातलीदून घाटी में 1,318.54 वर्ग किलोमीटर के इस पार्क में 821.99 वर्ग किलोमीटर के एरिया में जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व है. अपनी स्थापना के 74 साल के पर्यटन सीजन में यह पहली बार कोविड-19 के कारण 17 मार्च से 12 जून की लंबी अवधि तक पर्यटकों के लिए बंद रहा. अनलॉक वन में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण निर्देश पर खुला तो कोरोना के खौफ में अपेक्षित पर्यटक नहीं पहुंचे.

पार्क निदेशक राहुल कहते हैं, “देश के 31 कोरोना प्रभावित शहरों के पर्यटकों के यहां आने पर रोक है और मानसून सिर पर होने के कारण ढिकाला और दुर्गादेवी जोन नहीं खोले गए. बिजरानी, ढेला, झिरना और पांखरो जोन को भी मात्र डे-विजिट के लिए खोला गया.” हालांकि हर साल बरसात में तीन महीने के लिए यहां पर्यटन गतिविधियां बंद हो जाती हैं. वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर डॉ. विवेक बनर्जी कहते हैं, “लॉकडाउन अवधि में रॉयल बंगाल टाइगर को अपनी परंपरागत 12 वर्ग किमी की आवासीय विरासत हासिल करने का बेहतर मौका मिला है. इस दौरान बिना किसी दखल के शांत वातावरण में बाघों ने अपने दायरे को बढ़ाया है, जो आमतौर पर घटता जा रहा था. अगले तीन महीने बाघों के इस उपक्रम में महत्वपूर्ण साबित होंगे.”

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आम तौर पर एक बाघ 12 स्क्वायर किमी के एरिया को अपना आवासीय इलाका बनाता है. अपनी प्राकृतिक यूनिक गंध से वह इसका सीमांकन करता है, जिसे सूंघकर दूसरा बाघ उस इलाके से दूर रहता है. एक टाइगर के इलाके में तीन से चार बाघिन होती हैं. इंसानी दखल से यह एरिया लगातार तंग हुआ. वाइल्ड लाइफ जानकार मानते हैं कि ऐसी स्थिति में ही बाघों में आपसी वर्चस्व के लिए संघर्ष होता है, लेकिन जीटीआर में लॉकडाउन अवधि के दौरान बाघों में संघर्ष की भी कोई घटना सामने नहीं आई. वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. एस.के. उपाध्याय का मानना है, “लॉकडाउन वनस्पतियों के लिए भी वरदान साबित हुआ है. आमतौर पर टाइगर चारागाहों के आसपास ही अपना दायरा विकसित करते हैं, क्योंकि यहां आने वाले जानवरों का वे आसानी से शिकार कर लेते हैं.”

सवाल उठता है कि तीन महीने बरसात के मौसम में पर्यटन गतिविधियां बंद रहने के दौरान बाघ अपनी प्राकृतिक विरासत को क्यों विकसित नहीं कर पाते हैं? वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून के एक वैज्ञानिक कहते हैं, “इस विरासत को जंगलों में बारिश और बाढ़ के कारण पुनर्स्थापित कर पाना बाघों के लिए संभव नहीं हो पाता है. क्योंकि तब चारागाह बरसात से प्रभावित हो जाते हैं और महीनों तक इनमें खरपतवार रहती है.” साफ है कि लॉकडाउन में पर्यटन बंद रहा तो ऐसा पहली बार संभव हुआ है.

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हालांकि हाईकोर्ट ने नवंबर 2018 में पर्यटन पर दो माह के लिए रोक लगाई थी, लेकिन तब लॉकडाउन जैसा माहौल नहीं था. यहां पर्यटन की गतिविधियों में वृद्धि और अन्य समस्याएं इसके पारिस्थितिक संतुलन को गंभीर चुनौती पेश करती रही हैं. जीटीआर लंबे समय से पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक प्राकृतिक स्थान है. इसके चयनित क्षेत्रों में ही पर्यटन गतिविधियों की अनुमति है ताकि पर्यटक यहां शानदार दृश्यों और वन्यजीवों को देख सकें. हाल के वर्षों में यहां पर्यटकों में काफी वृद्धि हुई और हर मौसम में 70 हजार से अधिक लोग पार्क में आते हैं.

4 साल में बढ़े 45 रॉयल बंगाल टाइगर

15 नवंबर, 2018 से 15 फरवरी, 2019 तक तीन महीने के दौरान वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआइआइ) ने जीटीआर में कैमरा ट्रैप लगाए थे. लॉकडाउन से पहले करीब छह सौ कैमरों की मदद से ट्रैप डेटा एकत्र किया गया. जनवरी तक करीब दो लाख वन्यजीवों की फोटो कैद हुई. टाइगर सेल में एक हफ्ते तक फोटो का विश्लेषण हुआ, जो डब्ल्यूआइआइ को भेज दिया गया. मुख्य वैज्ञानिक यादवेंद्र देव झाला के मुताबिक, “कॉर्बेट में 260 बाघ रिकॉर्ड किए गए. चार साल में 45 बाघों का बढ़ना इस बात का प्रतीक है कि बाघ संरक्षण के लिए रिजर्व एरिया में बेहतर कार्य हुए हैं और यहां का माहौल बाघों के अनुकूल विकसित हो रहा है.” कॉर्बेट में 2006 में बाघों की संख्या 150 थी, जो 2010 में 184 और 2014 में 215 दर्ज की गई. देश के 2,967 बाघों में 442 अकेले उत्तराखंड में और इसके आधे से ज्यादा जीटीआर में हैं.

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बाघ तो बढ़े, लेकिन बजट घट गया

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों की तादाद बढ़ने के बावजूद सुरक्षा का बजट घटा दिया गया है. पार्क निदेशक राहुल बताते हैं कि कोरोना के कारण सालाना 17 करोड़ रुपये की बजट राशि को इस बार राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एनटीसीए ने 14 करोड़ रुपये ही मंजूर किया है. इससे ट्रैप कैमरे लगाने, सुरक्षा उपकरण खरीदने, नए गलियारे और ग्रासलैंड विकास के कार्य प्रभावित होंगे.

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की विशेषता

यहां के तराई क्षेत्र (उप-हिमालयन बेल्ट) की भौगोलिक और पारिस्थितिक विशेषताएं हैं, जो इसे इकोटोरिज़्म स्थल बनाती हैं. यहाँ पौधों की 488 प्रजातियां और जीवों की विविधता है. यहां पहाड़, नदियों की श्रृंखलाएं, दलदलीय स्थान, घास के मैदान और एक बड़ी झील है. 1,300 से 4,000 फुट की ऊंचाई वाले इस इलाके में सर्दियों में रातें भले ही ठंडी हों, लेकिन दिन गर्म होते हैं और जुलाई से सितंबर तक बारिश होती है.

घने नम पर्णपाती वन में मुख्य रूप से साल, हल्दु, पीपल, रोहिनी और आम के पेड़ हैं, जो पार्क का लगभग 73 हिस्सा कवर करते हैं. जंगल के 10 फीसद इलाके में घास के मैदान (चारागाह ) हैं. यहां पेड़ों की 110 प्रजातियां, स्तनधारियों की 50 प्रजातियां, पक्षियों की 580 प्रजातियां और सापों की 25 प्रजातियां हैं.

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'बाघ' पर कैमरा ट्रैप गिनीज रिकॉर्ड में शामिल

देश में ली गई तीन करोड़ से अधिक तस्वीरें

11 जुलाई 2020 को बाघों के संरक्षण मामले में भारत में एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित हुआ है. चार साल में बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोतरी के साथ ही ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन का कैमरा ट्रैप गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हो गया है. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड की वेबसाइट के प्रशस्ति पत्र में लिखा गया है, “2018-19 में किया गया चौथा सर्वेक्षण संसाधन और डेटा दोनों हिसाब से अब तक का सबसे व्यापक रहा है. कैमरा ट्रैप (मोशन सेंसर्स के साथ लगे हुए बाहरी फोटोग्राफिक उपकरण, जो किसी भी जानवर के गुजरने पर रिकॉर्डिंग शुरू कर देते हैं) को 141 विभिन्न साइटों में 26,838 स्थानों पर रखा गया था और 1,21,337 वर्ग किलोमीटर (46,848 वर्ग मील) के प्रभावी क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया. कुल मिलाकर, कैमरा ट्रैप ने वन्यजीवों की 3,48,58,623 तस्वीरों को खींचा (जिनमें 76,651 बाघों, 51,777 तेंदुए और शेष अन्य जीव-जंतुओं की हैं. इन तस्वीरों के माध्यम से, 2,461 बाघों (शावकों को छोड़कर) की पहचान स्ट्राइप पैटर्न रिकॉग्नाइज सॉफ्टवेयर का उपयोग करके की गई.

जावड़ेकर ने बताया महान उपलब्धि

इस उपलब्धि को एक महान क्षण बताते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने अपने ट्वीट में कहा, “यह आत्मनिर्भर भारत का जीता जागता उदाहरण है, जिसे प्रधानमंत्री के शब्दों में संकल्प से सिद्धि के माध्यम से प्राप्त किया गया है.” जावड़ेकर ने यह भी कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अपने लक्ष्य से चार वर्ष पूर्व ही बाघों की संख्या दोगुनी करने वाले अपने संकल्प को पूरा कर लिया है. नवीनतम गणना के अनुसार, देश में बाघों की अनुमानित संख्या 2,967 हैं. वैश्विक संख्या का लगभग 75 फीसद बाघ भारत में निवास करते हैं. भारत द्वारा 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग में बाघों की संख्या दोगुनी करने वाले अपने संकल्प को निर्धारित लक्ष्य 2022 से पहले ही प्राप्त कर लिया है.

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भारत के किस राज्य में कितने बाघ

मध्यप्रदेश: 526, कर्नाटक: 524, उत्तराखंड: 442, महाराष्ट्र: 312. तमिलनाडु: 264, केरल: 190, आसाम: 190, उत्तर प्रदेश: 173, राजस्थान: 69, आंध्रप्रदेश: 48, बिहार : 31, अरुणाचल प्रदेश: 29, ओडिशा: 28, तेलंगाना: 26, छत्तीसगढ़ : 19, झारखंड: 5, गोवा : 3

(स्रोत: टाइगर सेंसस रिपोर्ट-2018-19)

ऐसे की गई थी बाघों की गणना

बाघों के निशान और उनके द्वारा किए गए शिकार के आधार पर 3.81 लाख वर्ग किमी जंगल में सर्वेक्षण, 5.22 लाख किमी पदचिह्नों का सर्वे, भोजन, शिकार के अवशेष के लिए जानवरों के 3.17 लाख स्थानों से लिए गए सैंपल और 141 साइटों पर 26,838 कैमरों से की गई ट्रैपिंग के द्वारा देश भर में बाघों की गणना की गई.

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