
बिहार में लोकसभा के तीसरे चरण के मतदान के लिए मिथिलांचल और सीमांचल के क्षेत्र यादव और मुस्लिम वोटरों के हिसाब से काफी अहम है, क्योंकि इसी सीटों से ही एम-वाई फैक्टर के आधार पर ही नेता संसद तक पहुंचते हैं. खुद को मुस्लिम और यादवों की हितैषी बताने वाले तीन बड़े नेता लालू यादव, शरद यादव, और पप्पू यादव ने यहीं से अपनी चुनावी जीत की शुरूआत की.
वर्तमान में इन पांच सीटों में तीन सीट अररिया, मधेपुरा, और सुपौल महागठबंधन के पास है, जबकि झंझारपुर और खगड़िया की सीटे एनडीए के पाले में है. इन पांच सालों में देश में जिस तरीके का माहौल बना है, उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि यह चुनाव एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इस चरण में दोनों ही पार्टियों के बीच अपनी-अपनी सीट बचाने की होड़ मची है. दोनों ही धड़े किसी भी सूरत में अपनी सीट गंवाना नहीं चाहती है.
बिहार की पांच सीटें सुपौल, अररिया, मधेपुरा, खगड़िया और झंझारपुर लोकसभा सीट पर मतदान 23 अप्रैल को होना है.
सुपौल
सुपौल बिहार के हाईप्रोफाइल लोकसभा सीटों में से एक है. साल 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद इस लोकसभा सीट को गठित किया गया. पहली बार यहां साल 2009 में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और एनडीए गठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला है. एक तरफ जहां कांग्रेस ने रंजीत रंजन को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं जदयू ने एक बार फिर दिलेश्वर कमैत को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से 7 निर्दलीय उम्मीदवार समेत कुल 20 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं.
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की रंजीत रंजन 21 फीसदी वोट के साथ पहले नंबर पर थी. जबकि जदयू के दिलेश्वर कमैत 17 फीसदी वोट के साथ दूसरे नंबर पर, तो भाजपा पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद 16 फीसदी वोट के साथ तीसरे नंबर पर थी.
सुपौल में कई ऐसे समस्याएं है जो आजतक सुलझ नहीं पाई है. कुछ प्रमुख मुद्दों में रेल सेवा का न होना, रोजगार के मुद्दे, हर साल लाखों लोगों का पलायन होना, कृषि आधारित एक भी उद्योग न होना. इसके अलावा कोसी त्रासदी की मार झेलने वाले इस क्षेत्र में और भी कई सारे मुद्दे हैं.
अररिया
बिहार का अररिया लोकसभा सीट मुस्लिम बहुल इलाका और यादवों का गढ़ होने के कारण एक महत्वपूर्ण सीट माना जाता है. यह सीमांचल क्षेत्र का हिस्सा है.
यहां 45 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और यादव मतदाता हैं. मुस्लिम और यादव वोटों के समीकरण से ही 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद के तस्लीमुद्दीन की जीत हुई थी. लेकिन तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई और मार्च 2018 में यहां उपचुनाव कराए गए. जिसमें राजद के उम्मीदवार और तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम ने जीत हासिल की.
2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा से प्रदीप कुमार सिंह, राजद से सरफराज आलम, बीएसपी से राम नारायण भारती, बहुजन मुक्ती पार्टी से ताराचंद पासवान और बिहार लोक निर्माण दल से सुदामा सिंह चुनावी मैदान में अपनी किश्मत आजमा रहे हैं. अररिया एक बाढ़ प्रभावित इलाका भी है. बाढ़ प्रभावित इस इलाके में रोजगार और नौकरी के लिए पलायन सबसे बड़ी समस्या है.
मधेपुरा
बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट यादवों का गढ़ माना जाता है, क्योंकि यहां के नेताओं का भविष्य यादव के वोट पर ही निर्भर करता है. इसीलिए मधेपुरा में एक कहावत मशहूर है, 'रोम पोप का, मधेपुरा गोप का'. मधेपुरा एक समय में लालू यादव का भी गढ़ रहा है. राजद चीफ लालू यादव दो बार मधेपुरा सीट से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से पप्पू यादव उर्फ राजेश रंजन ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा. हालांकि, बाद में पप्पू यादव राजद से अलग हो गए और उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली.
2014 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव को 21.38 फीसदी वोट मिले. तब जेडीयू के टिकट पर शरद यादव उनके सामने थे. शरद यादव को 18.12 फीसदी वोट मिले. जबकि भाजपा के विजय कुमार सिंह 14.63 फीसदी वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे.
लेकिन अब मामला बिल्कुल अलग है. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से कुल 10 उम्मीदवार मैदान में है. जहां शरद यादव राजद से, दिनेश चंद्र यादव जदयू से, और राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अपनी ही पार्टी जन अधिकार पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं.
झंझारपुर
बिहार के मिथिलांचल जिला में स्थित झंझारपुर लोकसभा सीट का इतिहास काफी रोचक है. कोसी और कमला नदी की गोद में बसा झंझारपुर इलाका दरभंगा जिले का हिस्सा है, लेकिन यहां लगातार अलग जिले की मांग हो रही है. इसी इलाके से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा जीतकर संसद पहुंचे थे. वर्तमान में यहां से सांसद हैं भाजपा के बीरेन्द्र कुमार चौधरी.
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भाजपा को इस सीट से जीत मिली थी. जहां भाजपा के उम्मीदवार बीरेन्द्र कुमार चौधरी को 20.11 फीसदी, राजद के उम्मीदवार मंगनी लाल मंडल को 16.79 फीसदी और भाजपा से अलग होकर जदयू के उम्मीदवार देवेन्द्र प्रसाद यादव को 11.01 फीसदी वोट मिले थे.
2019 के लोकसभा सीट के लिए यह सीट अब एनडीए की सहयोगी पार्टी जदयू के खाते में चली गई है. इस सीट से जदयू से रामप्रीत मंडल, आरजेडी से गुलाब यादव, शिवसेना से रमानंद ठाकुर और बहुजन समाज पार्टी से राज कुमार सिंह चुनावी मैदान में हैं. इस सीट से कुल 17 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
झंझारपुर कृषि के नजरिये से काफी अहम क्षेत्र माना जाता है. यहां की सबसे बड़ी समस्या ये है कि यह क्षेत्र बारिश के दिनों में अक्सर बाढ़ के चपेट में आ जाता है.
खगड़िया
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर खगड़िया सीट पर सस्पेंस बना हुआ है. यहां के लोगों के मन में जानने की जिज्ञासा है कि यादव बहुल इस क्षेत्र में यादवों का वोट किसको जायेगा. क्योंकि इस बार दिनेश चन्द्र यादव मधेपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं वहीं कृष्णा कुमारी यादव चुनाव मैदान से बाहर हो गई है.
ऐसा माना जा रहा है कि इस सीट से पहली बार ऐसा हुआ है कि यादव बहुल क्षेत्र होने के बावजूद चुनावी लड़ाई में कोई यादव प्रत्याशी नहीं है. यही कारण है कि एनडीए और महागठबंधन दोनो ही यादव वोटरों को अपनी ओर रिझाने में जुटे हैं. पिछले बार की अपेक्षा इस बार मामला कुछ अलग है, क्योंकि जदयू जहां एनडीए के साथ है तो वहीं उपेन्द्र कुशवाह की पार्टी रालोसपा और जीतनराम मांझी की हम पार्टी महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है.
2019 के लोकसभा चुनाव में लोक जन शक्ती पार्टी के प्रत्याशी चौधरी महबूब अली कैसर, बहुजन समाज पार्टी से रमाकांत चौधरी चुनावी मैदान में हैं. इस सीट से कुल 20 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 59.49 फीसदी वोटिंग हुई थी. जिसमें एलजेपी के अली कैसर को 20.83 फीसदी, आरजेडी के कृष्णा कुमारी यादव को 15.78 फीसदी वोट मिले थे.
(अमित प्रकाश आइटीएमआइ के छात्र हैं और इंडिया टुडे में प्रशिक्षु हैं. उनके लेख से इंडिया टुडे की सहमति आवश्यक नहीं है)
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