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मैं वैश्वीकरण के ख़िलाफ़ नहीं हूँ लेकिन चाहता हूँ कि करुणा का वैश्वीकरण होः कैलाश सत्यार्थी

वाणी प्रकाशन के तहत प्रकाशित होने वाली नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के कविता संग्रह का आवरण हाल ही में विमोचन किया गया

कैलाश सत्यार्थी की कविताएं कैलाश सत्यार्थी की कविताएं
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 11:16 PM IST

मंजीत ठाकुर

दिल्ली में जब सर्द हवाएं चल रही थी, तब नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के नए कविता संग्रह ‘चलो हवाओं का रुख़ मोड़ें’ के आवरण का विमोचन हो रहा था. 23 दिसम्बर की शाम को वाणी प्रकाशन ग्रुप ने यह विमोचन ऑनलाइन गोष्ठी के रूप में किया.  

दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित ‘नोबेल शान्ति पुरस्कार’से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने पढ़ाई तो इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में की है लेकिन आजीविका के लिए अध्यापन कार्य चुना. लेकिन उनके मन में ग़रीब और बेसहारा बच्चों की दशा देखकर उनके लिए कुछ करने की अकुलाहट थी। जब देश-दुनिया में बाल-मज़दूरी कोई मुद्दा नहीं हुआ करता था, तब सत्यार्थी ने 1981 में ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’की स्थापना की. 

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सत्यार्थी ने बच्चों के अधिकारों को लेकर देश और दुनिया में कई आन्दोलन शुरू किये और उनका नेतृत्व किया. दुनियाभर के वंचित, ग़रीब और हाशिए के बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और आजादी के वैश्विक संघर्ष और हस्तक्षेप के लिए उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेताओं और विश्व नेताओं को एकजुट कर ‘लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’की स्थापना की है। श्री कैलाश सत्यार्थी ने पूरी दुनिया में बच्चों के प्रति हिंसा को ख़त्म करने के मक़सद से ‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’ नामक एक विश्वव्यापी ऐतिहासिक आन्दोलन की भी शुरुआत की है. इसी कड़ी में श्री सत्यार्थी ने भारत में बाल यौन शोषण और बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) के ख़िलाफ़ 2017 में 11,000 किलोमीटर की देशव्यापी ‘भारत यात्रा’का आयोजन और नेतृत्व किया.

अपनी जनजागरूकता यात्राओं के गीत भी वे ख़ुद ही लिखते थे. उनकी पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और उनमें से कुछ का विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है.  

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उनकी किताब के आवरण के विमोचन के कार्यक्रम का संचालन कवि, कलाविद और आलोचक यतीन्द्र मिश्र ने किया था. कार्यक्रम में मैथिली तथा हिंदी भाषा की प्रख्यात लेखिका उषाकिरण खान ने कहा कि "कैलाश सत्यार्थी जी उन लोगों में से हैं जो तपे तपाये लोग हैं."

प्रख्यात हिन्दी कवि कुमार विश्वास ने कहा कि "जिस मंच से स्वामी विवेकानन्द ने अपना स्वर दिया है, विश्व के उस मंच पर रवीन्द्रनाथ टैगोर की परम्परा रही है, उसी मंच से कैलाश जी भी अपना स्वर दे चुके हैं। कैलाश जी ने शोक की कोंपलें चुनी है- जो प्रौढ़ का शोक है, वह पका हुआ शोक है। जो वृद्ध का शोक है, वह चुका हुआ शोक है। जो युवा का शोक है, वह भोगा हुआ कष्ट है और जो बचपन का कष्ट है, वह कोंपल का दुख है। एक ऐसी कोंपल जिसे पाले ने या किसी अनावृष्टि ने या किसी अनाचारी ने कुचल दिया है। कैलाश जी की कविता में, उनकी कविता की भाषा में जो बुन्देलखण्ड है, जो बुन्देली और मालवी भाषा की समझ है, उसने भी उनकी कविता के शब्दों को वर्तुल किया है, घिसा है।"

इस समारोह में शामिल होने वाले अन्य वक्ता लीलाधर जगूड़ी थे ने सत्यार्थी और उनके कवि-कर्म के विषय में कहा कि "कविता को किसी तरह के लाइसेंस की ज़रूरत नहीं।" 

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खुद कैलाश सत्यार्थी ने कहा, "कविता में जो ऊर्जा निहित है उसमें अलग ही सम्भावनाएँ हैं. दिल्ली मेरे लिए नयी थी, कोर्ट भी और बच्चों के साथ हो रही अमानवीय घटनाएँ भी नयी थीं लेकिन मैंने बिना संसाधनों के संघर्ष किया. मेरी कविताओं के लिए आप सभी वक्ताओं ने जो भी कहा वह मेरे लिए प्रमाणपत्र के समान है. मैं साधारण जीवन जीता हूँ और साधारण कपड़े पहनता हूँ लेकिन घड़ी विदेशी कम्पनी की पहनता हूँ. मैं वैश्वीकरण के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन चाहता हूँ कि करुणा का वैश्वीकरण हो. यदि हमारे भीतर क्षमा का भाव है, सत्य है और पारदर्शिता है तो इसका अर्थ यह है कि एक बालक अभी भी हमारे भीतर है और हम सौभाग्यशाली हैं. वसुधैव कुटुम्बकम एक नारा न रहे बल्कि हमारे जीवन जीने की दृष्टि बने।"

जाहिर है, इस अध्येता की कविताओं में करुणा का अलग विस्तार होगा. 

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