पैर में चोट खाए पिता को साइिकल पर बैठाकर गुरुग्राम से लेकर बिहार के दरभंगा तक लाने वाली 15 साल की ज्योति कुमार तो आपको याद ही होगी. अखबारों में उस पर छपी खबर के बाद वह सोशल मीडिया की मोस्ट व्यूड पोस्ट बन गई थी, जिसे अमेरिकन राष्ट्रपति की बेटी तक ने शेयर किया था. अब कहां है बिहार की ज्योति कुमारी? किस हाल में है? बिहार में चुनावी शोर-शराबे में कैसे कट रही है ज्योति की जिंदगी? चलिए आज आपको मिलवाते हैं उसी ज्योति से.
दी लल्लनटॉप की टीम चुनाव यात्रा के दौरान पहुंची दरभंगा. यहां हम पहुंचे सिरहुल्ली गांव. यहीं ज्योति का घर है. वही, ज्योति जो लॉकडाउन में गुरुग्राम में फंसे अपने पिता को 500 रुपए की सेकेंड हैंड साइकिल खरीद कर अपने गांव को निकल पड़ी थी. ज्योति ने पिता को साइकिल के कैरियर पर बैठाकर छह दिन में 1200 किमी की यात्रा की थी. उस वक्त ज्योति का घर एक कमरे का था, जिसमें माता-पिता, तीन बहन और दो भाई तथा जीजा सहित करीब 8-9 लोग रहते थे.
दी लल्लनटॉप की टीम जब ज्योति के घर पहुंची तो काफी कुछ बदला हुआ नजर आया. अब ज्योति के पास निर्माणाधीन दो मंजिला घर है. उसकी बहादुरी के लिए कई लोगों और संस्थाओं ने कई साइकिलें भेंट की हैं. अब उसके पास आधा दर्जन से ज्यादा साइकिलें हैं. इतना ही नहीं, एक बड़ा सा टीन का ट्रंक (संदूक) भी है जो उपहारों से भरा पड़ा है. ये उपहार भी ज्योति को उसके अविश्वसनीय हौसले के लिए मिलें हैं.
लोहे के मेन दरवाजे पर माता-पिता ने अपनी बेटी ज्योति का नाम लिखवाया है. कहते हैं कि आज जो कुछ भी उनके पास है, उसकी वजह उनकी बेटी ज्योति ही है. उसी की वजह से सरकारी सहायता मिली जिससे घर बन रहा है. इतना नाम हुआ. अब हम एक कमरे में रहने का मजबूर नहीं हैं. अपनी बेटी पर हमें गर्व है. इधर, ज्योति ने साइकिल यात्रा की कहानी सुनाई. बताया कि पिता गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलाने का काम करते थे. जनवरी में उनका एक्सिडेंट हो गया और घुटने में गहरी चोट लगी तो मैं, मां और जीजा गुरुग्राम पहुंचे.
ज्योति ने बताया कि मां और जीजा कुछ दिन बाद गांव लौट आए और मैं पिताजी की देखरेख के लिए वहीं रुक गई. उसी वक्त लॉकडाउन लग गया. पैसे खत्म हो गए. मां ने कर्ज लेकर कुछ रुपये भेजे, वो भी खत्म हो गए. किराया देने का भी पैसा नहीं था.
उस वक्त दरभंगा के लोगों ने साइकिल से घर वापसी का प्लान बनाया. मैंने सेकेंड हैंड साइकिल एक हजार में खरीदी और उसमें 500 रुपये उधार भी रखा. छह दिनों तक चलकर हम गांव पहुंचे. पापा मना कर रहे थे लेकिन मैंने ठान लिया था कि अब नहीं रुकना है. गांव वापस जाना है. यहां आने के बाद मानो जिंदगी बदल गई.