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बिहार

Bihar: जान‍िए कहां पैदा होता है सबसे ज्‍यादा मखाना, कैसे डबल इनकम देती है इसकी फसल?

aajtak.in
  • 26 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 2:37 PM IST
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नमकीन हो या व्रत का फलाहार, या फ‍िर ड्राई फ्रूट्स के लड्डू, मखाना के बिना इनकी कल्‍पना नहीं की जा सकती. क्‍या आप जानते हैं कि दुन‍िया में सबसे ज्‍यादा मखाना कहां पैदा होता है? नहीं जानते तो कोई बात नहीं, हम बता देते हैं. ये जगह है उत्तर बिहार. यहां के मधुबनी, दरभंगा तथा आस-पास के अन्‍य जिलों में दुन‍िया की कुल खपत का सबसे बड़ा हिस्‍सा पैदा होता है. दुन‍िया की कुल खपत का 90 प्रतिशत मखाना भारत में पैदा होता है जिसमें से 80 प्रतिशत की भागीदारी उत्तर बिहार के इन्हीं जिलों से है. 

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दी लल्‍लनटॉप की टीम चुनाव यात्रा में पहुंची दरभंगा जिला जो मखाना उत्‍पादन का प्रमुख केंद्र है. यहां स्‍थापित है दुन‍िया का एकमात्र मखाना रिसर्च सेंटर. यहां मुलाकात हुई कृषि वैज्ञान‍िक डॉ. मनोज कुमार से. उन्‍होंने बताया कि 2002 में स्‍थापित इस रिसर्च सेंटर में लगातार मखाने की हाईब्रिड प्रजाति के साथ, कम लागत में ज्‍यादा से ज्‍यादा उत्‍पादन तथा मखाना में पोषक तत्‍वों से जुड़े रिसर्च चलते हैं. इस सेंटर में किसानों और इसकी खेती से जुड़े कामगारों को ट्रेनिंग भी दी जाती है. मखाने की पहली हाईब्रिड प्रजाति स्‍वर्ण वैदेही की खोज इसी सेंटर में हुई है. 

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इस सेंटर ने मखाना की खेती को तालाबों से खेतों तक पहुंचा दिया है. डॉ मनोज कुमार कहते हैं कि खेतों में अब मखाना उगाना शुरू हो चुका है. इसमें लागत कम है और वैज्ञान‍िक तरीके से काम किया जाए तो साल में दो पैदावार ली जा सकती हैं. 

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उन्‍होंने रिसर्च सेंटर में खेतों में ली जा रही पैदावार को भी दिखाया. बताया कि ये काफी मुनाफे का काम है. अब वैज्ञान‍िक पद्धति के समावेश से मुनाफा बढ़ रहा है. नये-नये  किसान इससे जुड़ रहे हैं और पहली पैदावार से ही प्रॉफ‍िट कमा रहे हैं. 

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डॉ मनोज कुमार ने बताया कि मखाना जो बाजार में मिलता है, उसे उस रूप तक पहुंचने में दो चरण से गुजरना होता है. पहला मखाने का बीज तैयार करना जिस स्‍थानीय भाषा में गुणी कहते हैं. ये बिलकुल कमलगट्टा ही है. जबकि गुणी को एक खास कौशल के साथ रोस्टिंग करते हुए उसमें से मखाने को न‍िकालना फाइनल प्रॉसेसिंग है. यदि कोई अपने यहां मखाने के बीज यान‍ि गुणी पैदा करता है तो एक औसत में वह प्रति हेक्‍टेयर 1 लाख रुपये प्रॉफ‍िट कमा सकता है जो लागत की तुलना में डबल कमाई होती है. 

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उन्‍होंने ये भी बताया कि यदि कोई किसान गुणी पैदा कर अपने यहां की उसे प्रॉसेस कराकर मखाना न‍िकाले तो वह अपनी कमाई 60 गुना तक बढ़ा सकता है. क्‍योंकि मखाने का बाजार मूल्‍य साइज और क्‍वॉलिटी के अनुसार कई गुना बढ़ जाता है. ये 400 रुपये प्रति किलो से 800 रुपये प्रति किलो तक बिकता है. 

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इसकी मेन फसल मार्च-अप्रैल में लगाई जाती है और अगस्‍त-सितंबर में पैदावार देती है. जबकि किसान चाहे तो सितंबर से मार्च के बीच एक और पैदावार ले सकता है लेकिन इसमें पैदावार अपेक्षाकृत कम होती है.

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