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आनंद मोहन और पप्पू यादव... दो बाहुबलियों की कभी अदावत के किस्से थे मशहूर, अब गले मिलने की तस्वीर चर्चा का कारण

बिहार की सियासत में इन दिनों बाहुबली आनंद मोहन और पप्पू यादव की चर्चा हर तरफ है, क्योंकि दोनों ही नेताओं के बीच तीन दशक के बाद दुश्मनी की दीवार टूटी है. नब्बे के दशक में कोसी और सीमांचल के इलाके में राजनीतिक वर्चस्व को लेकर शुरू हुई अदावत की कहानी हर तरफ गूंजती थी, लेकिन वक्त के साथ रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगी है.

आनंद मोहन और पप्पू यादव आनंद मोहन और पप्पू यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 16 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST

बिहार की सियासत में आनंद मोहन और पप्पू यादव कभी एक दूसरे के जानी-दुश्मन हुआ करते थे, जिनकी अदावत के किस्से सीमांचल और कोसी के इलाके में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में गूंजते थे. दोनों की ताकत बाहुबल थी और जातीय वोटों का आधार उनके पास था. नब्बे के दशक में आनंद मोहन राजपूत और सवर्णों की राजनीति कर रहे थे, तो पप्पू यादव पिछड़ों और यादवों को लेकर आगे बढ़ रहे थे. इसके चलते दोनों के बीच दुश्मनी की दीवार खड़ी हुई जो तीन दशक के बाद अब जाकर टूटी है. 

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आनंद मोहन और पप्पू यादव एक समय आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खासमखास हुआ करते थे, लेकिन मंडल कमीशन और राजनीतिक वर्चस्व के चलते उनके बीच अदावत शुरू हुई और फिर दोनों गुटों में मारपीट, लड़ाई झगड़े खून-खराबा आम बात थी. ऐसे में कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी कि ये जानी-दुश्मन कभी एक दूसरे के गले लगेंगे, लेकिन तीन दशक के बाद आनंद मोहन की बेटी की शादी के मौके पर पप्पू यादव की उपस्थिति चर्चा का विषय बन गई है.

आनंद मोहन का राजनीतिक सफर
आनंद मोहन का जन्म 26 जनवरी, 1956 को बिहार के सहरसा जिले के नवगछिया गांव में हुआ. उनके दादा राम बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे. जेपी आंदोलन के प्रभाव से आनंद मोहन भी अछूते नहीं थे. इमरजेंसी के दौरान दो साल तक जेल में भी रहे और जेल से बाहर आते ही अस्सी के दशक में उन्होंने अपनी दबंगई शुरू कर दी थी. कोसी इलाके में वो एक बड़े राजपूत दबंग के रूप पहचाने जाने लगे थे. मारपीट हो या फिर हत्या, हर तरफ आनंद मोहन की दबंगई की कहानी बयां होने लगी. 

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1990 में पहली बार जनता दल के टिकट पर महिषी सीट से विधायक बने, लेकिन उसी समय मंडल कमीशन लागू हो गया तो आनंद मोहन उसके विरोध में उतर गए, जिसके चलते राजपूत समुदाय के बीच उनका ग्राफ बढ़ा. 1993 में आनंद मोहन ने बिहार पीपल्स पार्टी यानी बीपीपी बनाई और बाद में समता पार्टी के साथ मिल गए. इसी दौर में उसी कोसी और सीमांचल के इलाके में पप्पू यादव का भी राजनीतिक ग्राफ बढ़ने लगा था, जो मंडल कमीशन के समर्थन में खड़े थे. इलाके में दोनों ही नेताओं ने अपनी रॉबिनहुड वाली छवि बनाई थी, जिसमें एक राजपूत और सवर्णों का नेता था तो दूसरा यादव और पिछड़ों का. 

कोसी में सियासी वर्चस्व की लड़ाई
बिहार की सत्ता पर लालू प्रसाद यादव का कब्जा था तो यादव सियासत भी परवान चढ़ने लगी थी. इस दौर में बाहुबली पप्पू यादव भी अपना राजनैतिक जीवन शुरू कर रहे थे. आनंद मोहन जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे, जबकि पप्पू यादव को जनता दल ने टिकट नहीं दिया तो वो मधेपुरा के सिंहेश्वर से निर्दलीय लड़कर विधायक बने थे. आनंद मोहन की तरह ही पप्पू यादव सीमांचल और कोसी समेत पूरे बिहार में सियासी पैर जमाने में लगे थे. 1991 में बिहार के मधेपुरा उपचुनाव के दौरान इन दोनों नेताओं की दुश्मनी खुलकर सामने आई थी. इस सीट पर उस समय जनता दल के नेता शरद यादव चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन आनंद मोहन उनके खिलाफ थे तो पप्पू यादव समर्थन में खड़े थे.

कोसी क्षेत्र में वर्चस्व को लेकर दोनों के बीच कई बार मुठभेड़ भी हुई और कई लोगों की जानें गईं. दोनों ने एक दूसरे की जान लेने की भी कई बार कोशिश की और जेल भी गए. 1991 में आनंद मोहन पर एक चुनावी सभा से लौटते हुए हमला हुआ था. इसमें आनंद मोहन के कुछ समर्थक घायल हुए थे, जिसका आरोप पप्पू यादव पर लगा था. पप्पू यादव भी आरोप लगा चुके हैं कि उनपर चुनावों के दौरान विरोधियों ने आठ घंटे तक गोली चलाई थी. डीएम और एसपी ने पहुंचकर उनकी जान बचाई थी.

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लालू से आनंद दूर, पप्पू नजदीक
बिहार में लालू प्रसाद यादव जब बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. उस दौर में बिहार में पिछड़ों के लिए भी राजनीति का नया अध्याय शुरू हो गया था. मंडल कमीशन लागू होने के बाद राजनीति के इस नए दौर मे आनंद मोहन राजपूत और सवर्णों की सियासत करने के चलते लालू यादव के दूर होते चले गए तो पप्पू यादव पिछड़ों की राजनीति कर लालू यादव के करीब आ गए. बिहार की राजनीति में लालू के हाथों में सत्ता की कमान होने से पप्पू यादव का वर्चस्व भी बढ़ने लगा था और कोसी ही नहीं बल्कि सीमांचल के इलाके में प्रभाव बढ़ा. पप्पू यादव सीमांचल की अलग-अलग सीटों से कई बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. वो 1991, 1996, 1999 पूर्णिया, फिर 2004 और 2014 में मधेपुरा से सांसद चुने गए. 


आनंद मोहन के लिए घातक रहा 1994
1994 में आनंद मोहन बिहार पीपुल्स पार्टी के प्रमुख हुआ करते थे और यही साल था जब उनकी सियासत की उल्टी गिनती शुरू हुई. आनंद मोहन पर भीड़ के साथ मिलकर 1994 को गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या की हत्या का आरोप लगा. इस मामले में 2007 में कोर्ट ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई, जिस पर न तो आनंद मोहन को हाई कोर्ट से राहत मिली और न ही सुप्रीम कोर्ट से. आनंद मोहन बाद में समता पार्टी में शामिल हो गए. साल 1996 में जेल से ही समता पार्टी के टिकट पर आनंद मोहन लोकसभा चुनाव लड़कर सांसद बने. आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भी विधायक और सांसद रहीं. मौजूदा समय में आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद आरजेडी से विधायक हैं. जेल जाने के चलते आनंद मोहन का ग्राफ कमजोर पड़ा. 

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पप्पू यादव ने काफी लंबा समय जेल में गुजारा
आरजेडी से लेकर अपनी जनाधिकार पार्टी बनाने वाले पप्पू यादव ने काफी भी लंबा समय जेल में बिताया है. उन पर 1998 में माकपा विधायक अजीत सरकार की हत्या का आरोप था, जिसके लिए वो कई साल तक जेल में रहे. हाई कोर्ट से राहत मिली और बरी हो गए. पप्पू यादव पर इसके अलावा भी कई अपराधों का आरोप लग चुका है, लेकिन एक-एक कर तमाम मालमों में बरी हो गए. आनंद मोहन की तरह पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन भी सुपौल से कांग्रेस के टिकट पर सांसद रही चुकी हैं और फिलहाल वो कांग्रेस की ही राज्यसभा सांसद हैं. हालांकि, पप्पू यादव अपनी बाहुबली की छवि को अब बदलने में जुटे हैं तो आनंद मोहन के साथ सियासी दुश्मनी भी भुलाकर साथ खड़े नजर आ रहे हैं. 

आनंद मोहन-पप्पू यादव के बीच दोस्ती की केमिस्ट्री
तीन दशक के बाद आनंद मोहन और पप्पू यादव के बीच दुश्मनी की दीवार टूटती हुई नजर आ रही है. आनंद मोहन जेल से बेटी की शादी के लिए पैरोल पर बाहर आए हैं तो पप्पू यादव जैसे सियासी दुश्मन को भी गले लगा रहे हैं. आनंद मोहन की बेटी सुरभि आनंद की सगाई में पप्पू यादव पहुंचे थे तो बुधवार को शादी के मौके पर भी शिरकत करते नजर आए. एक समय दोनों की दुश्मनी पूरे बिहार में मशहूर रही है, लेकिन अब दोनों बाहुबली गले मिलते दिखे. ऐसा लगा जैसे पिछली सारी लड़ाइयों को भुलाकर वो करीबी दोस्त बन चुके हों. आनंद मोहन को मिली सजा के मुद्दे पर पप्पू यादव मीडिया से कह चुके हैं कि आनंद मोहन का इरादा हत्या का नहीं रहा होगा. इसीलिए उनकी रिहाई होनी चाहिए तो आनंद मोहन भी पप्पू यादव के साथ पुरानी दुश्मनी पर मिट्टी डाल चुके हैं.

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कोसी का बदल सकता है सियासी समीकरण
आनंद मोहन और पप्पू यादव के बीच अदावत खत्म होने से बिहार के कोसी और सीमांचल की सियासत बदल सकती है, क्योंकि आज भी इस इलाक में दोनों ही नेताओं का अपना-अपना सियासी आधार है. कोसी के जातीय समीकरण को भी देखें तो यादव, मुस्लिम और राजपूत वोटर काफी निर्णायक भूमिका में हैं. इसीलिए आनंद मोहन की बेटी की शादी में पप्पू यादव ही नहीं, बल्कि तेजस्वी यादव से लेकर नीतीश कुमार तक पहुंचे. इससे आनंद मोहन की सियासी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

 

 

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