
बिहार में सियासी बदलाव के बाद विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी इस बार आरजेडी के खाते में गई है. स्पीकर पद से विजय कुमार सिन्हा के इस्तीफा दिए जाने के दूसरे दिन आरजेडी नेता अवध बिहारी चौधरी ने गुरुवार को विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया है. इस दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव सहित महागठबंधन के वरिष्ठ नेता उपस्थिति थे. अब चर्चा शुरू हो गई है कि कौन हैं अवध बिहारी चौधरी, जिन्हें स्पीकर जैसे अहम पद पर नीतीश-तेजस्वी बैठा रहे हैं?
लालू के करीबी हैं अवध बिहार चौधरी
सिवान से विधायक अवध बिहार चौधरी के पास चार दशक का सियासी अनुभव है. जमीन से जुड़े हुए नेता हैं और सियासी संघर्ष से अपनी राजनीतिक जगह बनाई है. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के अवध बिहार करीबी माने जाते हैं. इसके अलावा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से भी उनका अच्छा संबंध है. हालांकि, अवध बिहार चौधरी को सियासी बुलंदी के पीछे सिवान से सांसद रहे शहाबुद्दीन की भी भूमिका अहम रही है.
अवध बिहारी चौधरी का जन्म 17 अगस्त 1954 को सिवान के पटवा में एक किसान परिवार में हुई है. उनका बचपन गरीबी में गुजरा है, लेकिन अपने मेहनत और संघर्ष के दम पर अपनी पहचान बनाई है. यादव समुदाय से आने वाले अवध बिहारी को लालू प्रसाद यादव सियासत में लेकर आए थे. लालू की उंगली पकड़कर राजनीति में आगे बढ़े, लेकिन सियासी सफर कभी उतार चढ़ाव वाला रहा.
छह बार के विधायक अवध बिहारी
अवध बिहार चौधरी जनता दल के टिकट पर पहली बार 1985 में सिवान सीट से विधायक बने, लेकिन लालू प्रसाद यादव ने जब आरजेडी का गठन किया तो उनके साथ हो गए. इसके बाद लगातार साल 2005 तक सिवान से विधायक रहे. इस दौरान वो लालू यादव से लेकर राबड़ी देवी तक की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री रहे है और अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी को संभाला.
शहाबुद्दीन की पत्नी के खिलाफ रहे
बिहार में सत्ता बदली तो अवध बिहारी चौधरी के लिए सिवान के सियासी समीकरण भी बदल गए. इसके चलते लगातार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. अवध बिहारी साल 2014 में सिवान से लोकसभा सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट देने के बजाय शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को प्रत्याशी बनाया था. ऐसे में अवध बिहार चौधरी ने सिवान सीट पर बीजेपी के कैंडिडेट ओम प्रकाश यादव को समर्थन किया था, जो उनके करीबी रिश्तेदार भी हैं. ऐसे में आरजेडी का हार का मुंह देखना पड़ा था. हालांकि, अवध बिहार चौधरी की सियासत में शहाबुद्दनी ने सवारी थी.
जेडीयू में गए, फिर घर वापसी कर गए
अवध बिहारी चौधरी ने 2014 लोकसभा चुनाव के बाद आरजेडी को छोड़कर जेडीयू का दामन थाम लिया था. ऐसे में जेडीयू ने विधानसभा उपचुनाव के दौरान सिवान सीट से अवध बिहारी चौधरी का टिकट देने के बजाय बबलू चौहान को दिया गया तो उन्होंने निर्दलीय ही चुनाव लड़ गए. इसके बाद 2017 में जेडीयू छोड़कर फिर से आरजेडी का दामन थाम लिया. ऐसे में आरजेडी ने साल 2020 में सिवान सीट से प्रत्याशी बनाया तो जीत दर्ज कर एक बार विधायक बनने में कामयाब रहे.
अब स्पीकर बनने का सपना साकार
साल 2000 में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई तो आरजेडी विपक्ष थी. उस समय विधानसभा अध्यक्ष के लिए एनडीए ने विजय कुमार सिन्हा को प्रत्याशी बनाया तो महागठबंधन की ओर से अवध बिहार चौधरी ही कैंडिडेट बने थे. हालांकि, स्पीकर पद के लिए विजय कुमार सिन्हा से मुकाबले में पिछड़ गए थे, लेकिन ढाई साल के बाद जब वक्त ने ऐसी सियासी करवट ली कि नीतीश ने बीजेपी से नाता तोड़कर महागठबंधन में शामिल हो गए. ऐसे में स्पीकर का पद आरजेडी के खाते में आया तो उसके लिए अवध बिहारी चौधरी कैंडिडेट बने हैं. विधानसभा में नंबर गेम होने के चलते उनका इस बार स्पीकर बनना तय माना जा रहा है.