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बिहार में 75% आरक्षण को पटना हाई कोर्ट में चुनौती, याचिकाकर्ता ने इसकी संवैधानिक वैधता पर उठाए सवाल

याचिका में बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता ने इन अधिनियमों पर रोक लगाने की भी मांग की है.

बिहार में आरक्षण के दायरे को बढ़ाकर 65 फीसदी करने के फैसले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. बिहार में आरक्षण के दायरे को बढ़ाकर 65 फीसदी करने के फैसले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई.
आदित्य वैभव
  • पटना,
  • 27 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:03 PM IST

बिहार सरकार के आरक्षण के दायरे में वृद्धि करने के फैसले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. बता दें कि बिहार विधानमंडल ने हाल ही में एक संशोधन के जरिए पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को मौजूदा 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया था. पटना उच्च न्यायालय में इस फैसले को लेकर एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है. मामले से जुड़े उच्च न्यायालय के एक सूत्र के अनुसार, याचिका की प्रति सूचीबद्ध करने से पहले महाधिवक्ता के कार्यालय को भेज दी गई है.

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याचिका में बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता ने इन अधिनियमों पर रोक लगाने की भी मांग की है. राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया है. वहीं ईडब्ल्यूएस कोटा को यथावत 10 फीसदी रखा गया है. इस तरह बिहार में आरक्षण का दायरा 50 से बढ़कर 75 फीसदी पहुंच गया है.

बिहार सरकार ने आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65% किया

बिहार राज्य विधानमंडल ने 10 नवंबर को इस संशोधन को पारित किया, और 18 नवंबर को इसे राज्यपाल की मंजूरी मिल गई. इसके बाद बिहार सरकार ने 21 नवंबर को राज्य में आरक्षण का दायरा 50 से बढ़ाकर 65 फीसदी करने के संबंध में एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया. याचिका में यह तर्क दिया गया है कि यह संशोधन राज्य द्वारा आयोजित जाति सर्वेक्षण से प्राप्त आनुपातिक आरक्षण पर आधारित है. इस सर्वेक्षण के अनुसार बिहार राज्य में पिछड़े वर्गों (एससी, एसटी, ओबीसी और ईबीसी) की जनसंख्या 63.13% थी.

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'बिहार में आरक्षण में वृद्धि संविधान का उल्लंघन है'

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार आरक्षण इन वर्गों (एससी, एसटी, ओबीसी) के आनुपातिक प्रतिनिधित्व के बजाय सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व पर आधारित होना चाहिए. याचिका में कहा गया है, 'इसलिए, बिहार सरकार का यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (1) और अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन है. अनुच्छेद 16 (1) राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए समानता का अवसर प्रदान करता है. अनुच्छेद 15(1) किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है'.

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