
बिहार में स्वास्थ्य सुविधा खुद 'बीमार' है. दस करोड़ की आबादी वाले बड़े राज्य बिहार में महज 6,830 डॉक्टर हैं. इस हिसाब से बिहार में अनुपात देखा जाए तो हर 17,685 लोगों के हिस्से में एक डॉक्टर आता है. अगर राष्ट्र के स्तर पर देखा जाए तो ये अनुपात 11,097 लोगों पर एक डॉक्टर का है. ऐसी स्थिति में नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 में बिहार में दूसरे ऑल इंडिया इस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) की स्थापना का एलान किया तो बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार आने की उम्मीद बनी. लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद बिहार में दूसरे AIIMS का प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है.
इंडिया टुडे ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत बिहार में एक और AIIMS की स्थापना और इसके लिए जगह के चुनाव को लेकर भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और बिहार सरकार के बीच हुए पत्राचार की जानकारी जुटाई. इस पत्राचार की अहम जानकारी इस प्रकार हैं-
1 जून 2015 को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लिखी चिट्ठी में राज्य में दूसरे AIIMS की स्थापना के लिए उपयुक्त जगहों की पहचान का आग्रह किया. नड्डा ने ये भी चिट्ठी में इंगित किया कि संबंधित जमीन 200 एकड़ के करीब होनी चाहिए. साथ ही वहां सड़क से संपर्क की सुविधा और पानी की उपलब्धता होनी चाहिए. इस चिट्ठी के साथ एक संलग्नक (अटैचमेंट) भी था जिसमें साफ किया गया था कि जमीन का चुनाव करते हुए किन-किन मानकों को पूरा किए जाने की आवश्यकता है.
बिहार सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से दो रिमाइंडर भेजे गए. पहला 10 दिसंबर 2015 को और दूसरा 6 मई 2016 को. बिहार सरकार की ओर से आखिरकार 3 अगस्त 2016 को जवाब भेजा गया. इसमें उपयुक्त जगह की पहचान करने की जगह बिहार सरकार ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से खुद ही AIIMS की जगह पर निर्णय लेने के लिए कहा. बिहार सरकार की ओर से जवाब में कहा गया कि वो केंद्र की ओर से उपयुक्त जगह चुन लिए जाने के बाद ही अपनी ओर से इस दिशा में कदम बढ़ाएगी.
बिहार सरकार के जवाब पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 8 दिसंबर 2016 को फिर चिट्ठी भेजी. इस चिट्ठी में साफ तौर पर लिखा गया कि 'नए AIIMS की स्थापना के लिए जमीन की पहचान करना राज्य सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है. राज्य सरकार की ओर से उपयुक्त जमीन के लिए 3-4 विकल्प सुझाना भी जरूरी है.' 29 मार्च 2017 को बिहार सरकार ने फिर चिट्ठी भेज कर अपने रुख को दोहराया और केंद्र से ही जगह की पहचान करने के लिए कहा.
12 अप्रैल 2017 और 2 फरवरी 2018 को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बिहार सरकार को चिट्ठी भेजकर फिर राज्य सरकार की ओर से जगह की पहचान किए जाने की जरूरत को दोहराया. अभी हाल में ही 1 जुलाई 2018 को भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक और चिट्ठी लिखकर कहा कि मूल चिट्ठी के फॉलो-अप में उनका मंत्रालय पांच रिमाइंडर भेज चुका है.
दिलचस्प ये है कि इस ताजा चिट्ठी के एक हफ्ता बीतने के बाद ही 9 जुलाई 2018 को नड्डा ने बिहार में बीते एक दशक में स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए बिहार सरकार की जमकर तारीफ की.
नड्डा ने कहा, 'बिहार ने बीते 10 साल में स्वास्थ्य के मोर्चे पर प्रशंसनीय प्रगति की है.' ये बात दूसरी है कि नड्डा ये उल्लेख करना भूल गए कि राज्य में एक और AIIMS की स्थापना को संभव बनाने में बिहार सरकार नाकाम रही.
डबल इंजन सरकार यानि अगर राज्य और केंद्र में सहयोगी दलों की ही सरकार हो तो तेज गति से विकास के लिए वो आदर्श स्थिति होती है. ये विचार 2015 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले दिया गया था. उस वक्त नीतीश और बीजेपी अलग अलग रास्ते पर थे. लेकिन दो साल बाद नीतीश NDA में फिर वापस आ गए तब बिहार में बीजेपी के दिग्गज नेता माने जाने वाले नंद किशोर यादव ने कहा था, 'अब हमारे पास डबल इंजन है, राज्य और केंद्र में सहयोगियों की सरकारें होने से बिहार में तेज गति से विकास होगा.'
लेकिन बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की जहां तक बात है तो ये डबल इंजन विपरीत दिशाओं में जोर लगा रहे प्रतीत होते हैं. स्वास्थ्य सुविधाएं पटरी से उतरी होने के साथ ही बिहार में दूसरे AIIMS का सपना भी कागज से आगे नहीं बढ़ पा रहा है.