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नीतीश-बीजेपी एक दूसरे के लिए जरूरी भी-मजबूरी भी, आंकड़े रहे गवाह

बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के चेहरे को 2020 के लिए अभी से जेडीयू ने प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है. ऐसे में जेडीयू के सहयोगी बीजेपी से नीतीश के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं तो आरजेडी उन्हें दोबारा से महागठबंधन में वापसी का न्यौता देने लगी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 3:22 PM IST

  • बिहार में जेडीयू और बीजेपी एक साथ ताकतवर
  • बीजेपी बिहार में देख रही है खुद के दम पर सत्ता
  • महागठबंधन में नीतीश कुमार की वापसी का न्यौता

बिहार विधानसभा चुनाव होने में अभी एक साल का समय है, लेकिन सियासी बिसात अभी से बिछाई जाने लगी हैं. सूबे की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के चेहरे को 2020 के लिए अभी से जेडीयू ने प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है. ऐसे में सहयोगी बीजेपी से नीतीश के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं तो आरजेडी उन्हें दोबारा से महागठबंधन में वापसी का न्यौता देने लगी है. एनडीए की तीसरी सहयोगी एलजेपी खुलकर नीतीश कुमार के साथ खड़ी नजर आ रही है.

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बिहार में नीतीश कुमार की ब्रांडिंग के खिलाफ बीजेपी के नेता संजय पासवान खड़े हुए और उन्होंने कहा कि बीजेपी ने जदयू को और नीतीश कुमार को 15 साल सत्ता में रहने का मौका दिया है. इसलिए अब वह बीजेपी को भी यह मौका दें. इतना ही नहीं संजय पासवान ने कहा कि अब बिहार को नीतीश मॉडल की नहीं बल्कि मोदी मॉडल की जरूरत है.

पासवान के बयान के बाद जेडीयू से बिगड़ते रिश्ते को देखते हुए बीजेपी नेता और बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी को आगे आना पड़ा. उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के कप्तान हैं और उन्हीं की कप्तानी में अगले साल विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. एनडीए में नेतृत्व को लेकर कोई संकट नहीं है.

भले ही सुशील मोदी डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हों पर यह सच है कि बीजेपी के एक बड़े वर्ग का यह मानना है कि बिहार में पार्टी के उदय का सही वक्त आ चुका है. बीजेपी नेताओं को लगता है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 23 फीसदी वोट मिले थे और सबसे ज्यादा सीटें भी. ऐसे में पार्टी के लिए सत्ता में काबिज होने की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं. बीजेपी नेताओं के उत्साह का एक और बड़ा कारण लालू की स्थिति का कमजोर होना भी है और यादव मतदाताओं को साधने में बीजेपी लगातार जुटी हुई है. लगता है इसी बात को समझते हुए सुशील मोदी ने नीतीश के पक्ष में लिखे गए अपने ट्वीट को 15 मिनट के अंदर ही डिलीट कर दिया.

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बिहार में अपने सियासी तह नापने के लिए नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी एक दूसरे के खिलाफ खड़े होने की जोर आजमाइश लगातार कर रहे हैं. इसीलिए लगातार दोनों तरफ से कोशिशों की जा रही हैं. हालांकि 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में अलग-अलग लड़कर बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों एक दूसरे के राजनीतिक ताकत से वाकिफ हो चुके हैं. ऐसे में बीजेपी और जेडीयू इस बात को बखूबी समझते हैं कि बिहार में दोनों एक दूसरे की मजबूरी भी हैं और जरूरी भी.

आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने माना कि बीजेपी को हराने के लिए महगठबंधन में नीतीश कुमार वापस आएं तो उनका स्वागत है. इससे पहले आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने नीतीश कुमार को न्योता दिया था और कहा था कि नीतीश कुमार महागठबंधन में आएं और वह प्रधानमंत्री मटेरियल हैं. ऐसे में निश्चित रूप से नीतीश कुमार के लिए सुशील मोदी और रामविलास पासवान से ज्यादा रघुवंश प्रसाद सिंह का बयान मायने रखता हैं.

दरअसल नीतीश कुमार पहले जब महागठबंधन के नेता थे तो रघुवंश प्रसाद तब हर बात पर आलोचना करने से परहेज नहीं करते थे. माना जाता था स्वर भले ही उनके होते थे और सोच उसके पीछे आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की होती थी. ऐसे में अब शिवानंद और रघुवंश के बोलने का एक ही अर्थ है कि यह लालू यादव के बिना सहमति के नहीं बोल रहे हैं.

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वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु मिश्रा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद से लालू यादव को अपने बेटे तेजस्वी यादव के मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में क्षमता और काबिलियत पर भरोसा नहीं रह गया है. हालांकि आरजेडी का 80 फीसदी वोटबैंक एंटी बीजेपी है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद यादव वोट को बीजेपी अपने पाले में लाने की कवायद कर रही है. जबकि मुस्लिम वोटों पर नीतीश कुमार की नजर है. लेकिन इस बावजूद नीतीश कुमार और बीजेपी का साथ फिलहाल नहीं छोड़ने वाले हैं, क्योंकि इनके दोनों के अलग होते ही आरजेडी बड़ी ताकत बनकर उभर सकती है.

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