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जातिगत जनगणना पर असमंजस में BJP, क्रेडिट भी लेना है और विरोध भी... दो नाव पर क्यों सवार हैं नेता?

बिहार में जातिगत जनगणना शुरू हो गई है और साथ ही राजनीति भी गरमा गई है. महागठबंधन पूरी तरह से इसका श्रेय लेना चाहती है तो बीजेपी असमंजस की स्थिति में फंसी हुई है. बीजेपी जातिगत जनगणना पर सवाल खड़ाकर विरोध भी करना चाहती है और उसकी क्रेडिट भी लेने की जुगत में है. सवाल उठता है कि बीजेपी क्यों दो नाव पर सवार है?

सुशील मोदी और नीतीश कुमार (फाइल फोटो) सुशील मोदी और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 09 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 4:04 PM IST

बिहार में जातिगत जनगणना शुरू होते ही सियासत भी तेज हो गई है. महागठबंधन के दल इसका श्रेय लेने के लिए फ्रंटफुट पर नजर आ रहे हैं तो बीजेपी असमंजस में फंसी हुई नजर आ रही है. अगस्त 2022 में नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना को कैबिनेट से मंजूरी दी थी तो बीजेपी इसके समर्थन में खड़ी रही थी, लेकिन अब उसके नेता दो नावों पर सवार हैं. बीजेपी के कुछ नेता आर्थिक तो कुछ जातिगत जनगणना के पक्ष में है. ऐसे में बीजेपी से न तो खुलकर विरोध करते बन रहा है और न ही समर्थन करते बन रहा है? 

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों 'समाधान यात्रा' के जरिए बिहार का दौरा कर रहे हैं. उन्होंने यात्रा के दौरान कहा कि इस सर्वेक्षण में जाति और समुदाय का विस्तृत रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा. इस जनगणना से सिर्फ जातियों की गणना नहीं, बल्कि राज्य के हर परिवार के बारे में आर्थिक सहित और पूरी जानकारी जुटाई जाएगी, जिससे उनके विकास में मदद मिलेगी और देश व समाज के उत्थान में भी बहुत फायदा होगा. साथ ही आरजेडी नेता व डिप्टीसीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि इस सर्वेक्षण से सरकार को गरीब लोगों की मदद के लिए वैज्ञानिक तरीके से विकास करने में मदद मिलेगी. तेजस्वी ने कहा कि बीजेपी नहीं चाहती कि जनगणना की जाए.

असमंजस में बीजेपी

बीजेपी जातिगत जनगणना पर असमंजस में फंसी हुई है.बीजेपी सांसद सुशील मोदी कहते हैं कि जब कैबिनेट की बैठक से जातिगत जनगणना का निर्णय पारित हुआ था तब तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री नहीं थे. ऐसे में तेजस्वी को इसका श्रेय लेने का कोई हक नहीं. सुशील मोदी यह भी कहते हैं कि कर्नाटक व तेलंगाना के बाद बिहार तीसरा राज्य है, जहां बीजेपी के समर्थन से जातिगत जनगणना हो रही है. हालांकि, वह यह भी कहते हैं कि क्या गारंटी है कि जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी? 

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उपजातियों की भी हो गणना

बिहार में एनडीए सरकार के दौरान डिप्टी सीएम रहे तारकेश्वर प्रसाद कहते हैं महागठबंधन सरकार की ओर से कराई जा रही जातीय गणना से समाज के विकास की जगह जातीय तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जातीय जनगणना के विरोध में सीधे तो कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि सिर्फ जाति की गणना हो रही है, उप जातियों की गणना क्यों नहीं हो रही है? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुशवाहा समाज में दांगी समाज को उपजाति नहीं मानेंगे तो क्या उसे एक अलग ही जाति मानेंगे और बनिया समाज में 65 उपजातियां हैं तो क्या उसे एक वैश्य समाज ही मानेंगे या 65 उप जातियों में मानेंगे. 

गरीबों को क्या लाभ मिलेगा?

वहीं, बिहार में बीजेपी के दिग्गज नेता विजय सिन्हा जातिगत जनगणना पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उन्होंने ट्विटर पर वीडियो जारी कर कहा कि जातीय के बजाए केवल आर्थिक जनगणना करवाकर समाज को तोड़ने से बचाया जा सकता है. समरस समाज की परिकल्पना कभी भी जाति में बांट कर पूरी नहीं की जा सकती है. क्षेत्रीय पार्टियां केवल अपनी राजनीतिक रोटी सेकना और अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैं. जातिगत जनगणना कराना चाहते हैं तो कराएं, पर 500 करोड़ का गरीबों को क्या लाभ मिलेगा? साथ ही उन्होंने कहा कि पिछले 75 सालों में किसी दल ने जातीय गणना क्यों कराई गई? उन्होंने तो इसे जातीय नरसंहार तक से जोड़ दिया और कहा कि जो जातीय नरसंहार कराते थे उन्हीं के पथ पर (नीतीश कुमार) क्यों बढ़ गए? 

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बीजेपी नेताओं की असमंजस को इस बात से समझा जा सकता है कि उसके नेता एक तरफ आर्थिक आधार पर जनगणना की पैरवी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जातिगत जनगणना का श्रेय भी लेना चाहते हैं और साथ ही इसे जातिवाद की राजनीति भी बता रहे है और तुष्टीकरण के बढ़ने की संभावना भी जता रहा हैं. बीजेपी जातिगत जनगणना की न तो खुलकर विरोध कर पा रही है और न ही समर्थन में उतर रही है. इस तरह से बीजेपी कशमकश में फंस हुई है. 

दरअसल, मंडल की सियासत के निकले लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी सहित तमाम क्षेत्रीय राजनीतिक दल जातिगत जनगनणना की मांग करते रहे हैं, लेकिन बीजेपी हमेंशा से इसके विरोध में रही है. मोदी सरकार ने संसद में भी जातीय जनगणना कराने से मना कर दिया था. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि जाति आधारित विभिन्न तरह के ब्योरे जुटाने के लिए जनसंख्या जनगणना उपयुक्त साधन नहीं है. बीजेपी तकनीकी कारणों का हवाला देकर भले ही मना कर रही हो, लेकिन उसके पीछे सियासी मकसद है. 

52 फीसदी भागीदारी का खेल

जातिगत जनगणना के विरोध और समर्थन के पीछे सारा खेल सियासत से जुड़ा है. जातिगत जनगणना के समर्थन के पीछे पिछड़ी जातियों के वोट बैंक का है, जिनकी आबादी 52 फीसदी से ज्यादा बताई जाती है. विरोध के पीछे उच्च जातियों का दबाव है. मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर पिछड़े समुदाय की आबादी 52 फीसदी है, लेकिन उन्हें 27 फीसदी आरक्षण मिलता है. ओबीसी का कहना कि उनकी आबादी बढ़ी है. इसीलिए नतीीश कुमार और तेजस्वी यादव पुरे जोर शोर से जनगणना का श्रेय ले रहे हैं. 

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बिहार की सियासत लंबे समय से ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. बीजेपी से लेकर आरजेडी और जेडीयू बिहार में ओबीसी को केंद्र में रखकर अपनी सियासत कर रही हैं. ऐसे में जातिगत जनगणना की डिमांड ओबीसी समुदाय के बीच से उठ रही है. अन्य पिछड़ी जातियों को लग रहा है कि उनकी आबादी का दायरा बड़ा है. अभी जो राजनीति होती है, उसका ठोस आधार नहीं है, उसे चुनौती दी जा सकती है, लेकिन एक बार जनगणना में वो दर्ज हो जाएगा, तो सब कुछ ठोस रूप ले लेगा. कहा जाता है, 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'. 

बीजेपी के सामने ओबीसी में लोकप्रियता बचाने की चुनौती

बिहार में ओबीसी समुदाय की राजनीति क्षेत्रीय दल करते रहे हैं, लेकिन 2014 के बाद से बीजेपी की लोकप्रियता भी ओबीसी में बढ़ी है. यूपी में ओबीसी का बड़ा तबका बीजेपी के साथ 2020 के चुनाव में दिखा. हालांकि, बीजेपी का कोर वोटबैंक आज भी सवर्ण जातियां है, जो जातिगत जनगणना के विरोध में हैं. जातिगत गणना होगी तो केंद्र की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी कोटे में बदलाव के लिए सरकार पर दबाव बनाने का मुद्दा पिछड़े समुदाय के बीच आधार रखने वाले दलों को मिल जाएगा. ऐसे में बीजेपी के सियासत को गहरा झटका भी लग सकता है. बीजेपी इसीलिए असमंजस में फंसी है कि वो समर्थन करे कि विरोध में उतरे? 

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