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जातीय जनगणना पर नीतीश सरकार को फिर मिला झटका, HC ने जल्द सुनवाई की याचिका खारिज की

बिहार में जातीय जनगणना को लेकर नीतीश सरकार को आज पटना हाई कोर्ट से दूसरा झटका मिला है. हाई कोर्ट ने 4 मई को जातीय जनगणना पर रोक लगाते हुए इस मामले में अगली सुनवाई 3 जुलाई को तय की थी. राज्य सरकार इन मामले में जल्द सुनवाई की अपील लेकर हाई कोर्ट गई थी. इस अपील को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया.

पटना हाई कोर्ट ने जातिगत जनगणना पर लगा दी है रोक (फाइल फोटो) पटना हाई कोर्ट ने जातिगत जनगणना पर लगा दी है रोक (फाइल फोटो)
शशि भूषण कुमार
  • पटना,
  • 09 मई 2023,
  • अपडेटेड 12:08 PM IST

बिहार में जातीय जनगणना को लेकर नीतीश सरकार को मंगलवार को पटना हाई कोर्ट से दूसरा झटका मिला है. हाई कोर्ट ने 4 मई को जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी. उसने इस मामले में अगली सुनवाई 3 जुलाई को तय की थी लेकिन राज्य सरकार चाहती थी कि जातीय जनगणना पर लगे अंतरिम आदेश पर जल्द सुनवाई हो. इसको लेकर सरकार ने हाई कोर्ट से अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने खाचिका ही खारिज कर दी. इस मामले में अगली सुनवाई पहले से तय तारीख 3 जुलाई को ही होगी.

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पटना हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि जातिगत जनगणना राज्य सरकार नहीं बल्कि केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है यानी संघ सूची का हिस्सा है. राज्य तभी यह जनगणना करवा सकता है, जब विधानसभा में इस संबंध में कानून पारित किया गया हो. इसके बाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस वी चन्द्रन की बेंचके सामने बिहार सरकार ने कहना था कि जातिगत जनगणना का काम 80 फीसदी पूरा हो चुका है, ऑफलाइन काम करीब करीब पूरा हो चुका है. इसी साल सात जनवरी से शुरू हुई जनगणना का काम 15 मई को पूरा होना तय था. इसके बाद कोर्ट ने जनगणना पर रोक लगा दी थी. साथ कहा था कि सरकार डेटा को नष्ट न करे बल्कि अपने पास सुरक्षित रख ले.

बिहार सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया था. इसका काम जनवरी 2023 से शुरू हुआ था. अभी दूसरे चरण की जनगणना चल रही थी. ऐसा माना जा रहा था कि 15 मई को यह काम पूरा हो जाता, लेकिन अब हाईकोर्ट ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी है. सरकार ने इस अभियान के लिए बिना कोई कानून बनाए पांच सौ करोड़ रुपये खर्च कर काम शुरू भी कर दिया हैं. 

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जातिगत जनगणना कराने के पीछे सरकार का तर्क

जातीय गणना को लेकर नीतीश सरकार ने हाई कोर्ट में बताया कि सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए सभी अपनी जाति बताने को आतुर रहते हैं. सरकार ने नगर निकायों एवं पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को कोई आरक्षण न देने का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 फीसदी और एसटी को एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है. राज्य सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है. सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि इसलिए भी जातीय गणना जरूरी है.

जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं केंद्र

नीतीश सरकार लंबे समय से जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में रही है. हालांकि, केंद्र इसके खिलाफ है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया था कि जातिगत जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी. केंद्र का कहना था कि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है.

पिछली साल फरवरी में लोकसभा में जातिगत जनगणना को लेकर सवाल किया गया था. इसके जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि संविधान के मुताबिक, सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की ही जनगणना हो सकती है. इसके अलावा दूसरी वजह ये भी मानी जाती है कि जातिगत जनगणना से देश में 1990 जैसे हालात बन सकते हैं. फिर से मंडल आयोग जैसे किसी आयोग को गठन करने की मांग हो सकती है. इसके अलावा आरक्षण की व्यवस्था में भी फेरबदल होने की संभावना है.

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