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चिराग बनाम पशुपति, कैसे यूपी से अलग है बिहार के चाचा भतीजे की जंग?

यूपी में साढ़े चार साल पहले भतीजे अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को बीच रास्ते में 'साइकिल' से उतारकर पैदल कर दिया था. वहीं, बिहार में चाचा पशुपति नाथ पारस ने भतीजे चिराग पासवान की कुर्सी छीनकर खुद पार्टी पर कब्जा जमा लिया है. ऐसे में यूपी से बिहार के चाचा-भतीजे की सियासी लड़ाई कैसे अलग है?

पशुपति पारस और चिराग पासवान पशुपति पारस और चिराग पासवान
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 17 जून 2021,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST
  • रामविलास पासवान के परिवार में मचा घमासान
  • यूपी में मुलायम कुनबे में चाचा-भतीजे की जंग
  • चाचा पशुपति ने भतीजे चिराग का किया तख्तापलट

उत्तर प्रदेश के 'मुलायम परिवार' की तरह इन दिनों बिहार के 'पासवान कुनबे' में सियासी वर्चस्व को लेकर चाचा-भतीजे के बीच सियासी संग्राम छिडी हुई है. यूपी में साढ़े चार साल पहले भतीजे अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को बीच रास्ते में 'साइकिल' से उतारकर पैदल कर दिया था. वहीं, बिहार में चाचा पशुपति नाथ पारस ने भतीजे चिराग पासवान की कुर्सी छीनकर खुद पार्टी पर कब्जा जमा लिया है. ऐसे में दोनों परिवार की कहानी में एक बड़ा फर्क है. यूपी में भतीजा अपने चाचा पर भारी पड़ा तो बिहार में चाचा ने भतीजे का तख्तापलट कर दिया है. 

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मुलायम कुनबे में चाचा-भतीजे की जंग

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की सियासी विरासत पर काबिज होने के लिए चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच 2016 के आखिर में जंग छिड़ गई थी. सपा की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथ में रही तो पार्टी के सर्वेसर्वा शिवपाल यादव हुआ करते थे और संगठन के तमाम फैसले भी वही किया करते थे. ऐसे में शिवपाल खुद को मुलायम का उत्तराधिकारी समझ रहे थे, लेकिन मुलायम सिंह ने अपना सियासी विरासत भाई को देने के बजाय बेटे को अखिलेश यादव को 2012 में सौंप दिया था. 

ये भी पढ़ें: LJP में चाचा बनाम भतीजा, पासवान की सियासी विरासत पर पशुपति का कब्जा, चिराग तले छाया 'अंधेरा' 

शिवपाल ने 2017 के चुनाव से ठीक पहले भतीजे अखिलेश यादव के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. चाचा-भतीजे की लड़ाई घर से सड़क तक आ गई. 30 दिसंबर 2016 को ऐसी भी परिस्थित उत्पन्न हुई कि तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश यादव और चचेरे भाई रामगोपाल यादव को पार्टी से निकाला दिया. वहीं, अखिलेश अगले 2 दिन बाद यानी एक जनवरी 2017 को विशेष अधिवेशन बुला लिया, जहां मुलायम की जगह अखिलेश यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया.

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यूपी में भतीजा ने चाचा को दिया था मात

चाचा-भतीजे के बीच सपा के दो फाड़ हो गए. सपा की कमान अखिलेश यादव ने अपने हाथ में ले लिया तो शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों के साथ खुद की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. ऐसे में मुलायम सिंह यादव कभी भाई तो कभी बेटे के साथ खड़े नजर आए. मुलायम सिंह तमाम करीबी नेता और परिवार भी अखिलेश के साथ खड़ा रहा जबकि शिवपाल के साथ कुछ पार्टी के नेता जरूर जुड़ गई. ऐसे में सपा को अपनी सत्ता गवांनी पड़ी, लेकिन पार्टी का परंपरागत वोटबैंक यादव समुदाय अखिलेश का अपना नेता मान लिया. इसके चलते शिवपाल अपने भतीजे के खिलाफ कोई बड़ी चुनौती नहीं खड़ी कर सके और अब फिर से चाचा-भतीजे गठबंधन कर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. 

बिहार में चाचा-भतीजे के बीच वर्चस्व की जंग
बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन का साल भी पूरा नहीं हो पाया कि उनकी सियासी विरासत पर काबिज होने की जंग चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच छिड़ गई है. शिवपाल की तरह पशुपति पारस भी अपने भाई रामविलास पासवान की छाया में रहकर राजनीति करते रहे हैं. रामविलास केंद्र की सियासत किया करते थे तो बिहार की राजनीतिक फैसले पशुपति पारस लिया करते थे. 

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बिहार में भतीजे को चाचा ने किया तख्तापलट

हालांकि, रामविलास पासवान की जिंदगी में पार्टी की कमान चिराग पासवान ने अपने हाथ में लेते ही चाचा पशुपति पारस के हाथ से बिहार की बागडोर छीन ली, जिसके बाद से पार्टी में बगावत की चिंगारी सुलगने लगी थी. रामविलास पासवान की मौजूदगी के कारण ये कभी खुलकर सामने नहीं आ सकी, लेकिन उनके निधन होने के साथ ही सियासी वर्चस्व की जंग तेज हो गई और चाचा-भतीजे के बीच दूरी बढ़ती गई. बिहार चुनाव में चिराग ने अकेले लड़ने का फैसला किया तो पशुपति ने इसका विरोध किया.

वहीं, अब पशुपति पारस ने पार्टी के छह में पांच सांसदों को अपने साथ मिलाकर चिराग पासवान से संसदीय दल के पद और पार्टी की कमान दोनों ही छीन ली है. ऐसे में अब चिराग पासवान अपने पिता की सियासी विरासत को दोबारा के पाने के लिए जद्दोजहद शुरू कर दिए हैं. ऐसे में देखना है कि चिराग क्या अखिलेश यादव की तरह अपने चाचा को सियासी मात दे पाएंगे या फिर नहीं? 

 

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