
बिहार में सियासी परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के साथ हाथ मिलकर महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं. वहीं, बीजेपी मुख्य विपक्षी दल के तौर पर है. ऐसे में नीतीश-तेजस्वी की पहली राजनीतिक परीक्षा अगले ही महीने सितंबर-अक्टूबर में होने वाले निकाय चुनाव में हो जाएगी. यह चुनाव महागठबंधन के लिए तो अहम होगा ही, लेकिन साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि बीजेपी बिहार में कितने पानी में है.
बिहार में नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना सितंबर में जारी हो सकती है और अक्टूबर के महीने में मतदान कराए जाने के आसार है. राज्य निर्वाचन आयोग ने सभी जिलाधिकारियों को चुनाव की तैयारी तेजी से पूरी करने का निर्देश दिया है. इसमें सभी जिलों को चुनाव सीटों के गठन करने, मतदाता सूची का सुधार कर जल्द अनुमोदन हासिल करने के लिए भी कहा गया है.
बिहार में कुल 248 नगर निकायों में चुनाव होने हैं, जिनमें 19 नगर निगम, 83 नगर परिषद और 146 नगर पंचायत है. इसमें मेयर और अध्यक्ष पद के चुनाव के साथ-साथ वार्ड पार्षद के लिए भी चुनाव होने हैं. सूबे के नगर निगम के मेयर/उप मेयर, नगर परिषद एवं नगर पंचायत के मुख्य पार्षद एवं उप मुख्य पार्षद के आरक्षण का निर्धारण निर्वाचन आयोग को करना है तो वार्डवार पार्षदों का आरक्षण का निर्धारण जिला स्तर से किया जाएगा. इसके लिए 25 से 31 अगस्त तक का समय निर्धारित किया गया है.
महागठबंधन को लेकर संशय बरकरार
प्रदेश के बदले हुए सियासी समीकरण के तहत निकाय चुनाव होने हैं. बीजेपी के पास अब सभी 248 नगर निकाय की सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका है तो दूसरी तरफ महागठबंधन में कई पार्टियां शामिल हैं. हालांकि, अभी तक ये तस्वीर साफ नहीं हो सकी है कि निकाय चुनाव में महागठबंधन के चारो दल आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और HAM एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा या फिर अलग-अलग किस्मत आजमाएंगे.
शहरी निकाय इलाके में बीजेपी की जबरदस्त पकड़ रही है और कांग्रेस का भी ठीक-ठाक जनाधार रहा है. तेजस्वी यादव के अगुवाई में आरजेडी ने भी शहरी क्षेत्रों में अपना सियासी आधार बढ़ाया है, जिसका लाभ 2020 के चुनाव में भी मिला था. ऐसे में निश्चित तौर पर आरजेडी भी निकाय चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरेगी तो जेडीयू भी पीछे नहीं रहने वाली है.
जेडीयू निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर यह दिखाने की कोशिश करेगी कि बिहार में उसका दबदबा बरकरार है.
वहीं, बिहार में सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल बीजेपी के लिए खड़ी हो गई है, क्योंकि जेडीयू के साथ उसका गठबंधन टूट गया है और अब अकेले ही खड़ी नजर आ रही है. हालांकि, शहरी क्षेत्रों में उसकी मजबूत पकड़ होने के चलते उसे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. ऐसे में निकाय चुनाव में जीत का परचम फहराकर यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि बिहार में किसी बैसाखी के सहारे नहीं बल्कि अपने दम पर वो आगे बढ़ेगी.