
बिहार में एक और मामले में नीतीश सरकार घिरती नजर आ रही है. प्रदेश में 102 आपात सेवा के तहत चलने वाली 2125 एंबुलेंस को चलाने का ठेका जिस कंपनी को दिया गया, वह जदयू सांसद के रिश्तेदारों की है. 1600 करोड़ रुपये के इस ठेके के आवंटन में नियमों की अनदेखी के साथ ही, निविदा के नियम भी बदले जाने के आरोप हैं. खास बात यह है कि जब बिहार में जदयू-बीजेपी गठबंधन की सरकार थी, तब इस मामले को राजद के ही विधायकों ने उठाया था, लेकिन जैसे ही सरकार से बीजेपी बाहर और राजद अंदर हुई, तो मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया.
क्यों उठ रहे हैं सवाल, क्या है घोटाला
बीजेपी के साथ जदयू के गठबंधन वाली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे हुआ करते थे, लेकिन अब डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के ही हाथ में स्वास्थ्य मंत्रालय की कमान भी है. बता दें कि, एंबुलेंस का ठेका पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिडेट को दिया गया है. सरकार की इस योजना के तहत एंबुलेंस गंभीर बीमार लोगों, गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों को अस्पताल पहुंचाती है और इसके बदले में मरीजों से कोई फीस नहीं ली जाती है. अब इस मामले में सवाल क्यों उठ रहे हैं और क्या आरोप हैं, तफसील से जानिए
आरोप एकः कंपनी के निदेशक सांसद के बेटे, बहुएं और बहनोई
इस खबर को लेकर जो मीडिया रिपोर्ट्स सामने आई हैं, उनके मुताबिक, पीडीपीएल जदयू सांसद चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी के रिश्तेदारों की कंपनी है. चंद्रेश्वर मौजूदा दौर में जहानाबाद से सांसद हैं. इस कंपनी में सांसद के कई रिश्तेदार निदेशक पद पर है. इनमें सांसद के बेटे सुनील कुमार, सुनील कुमार की पत्नी नेहा रानी, सांसद के बेटे जितेंद्र कुमार की पत्नी मोनालिसा और सांसद के बहनोई योगेंद्र प्रसाद निराला. इस तरह ये कंपनी एक तरह से घर की ही है, क्योंकि में इसमें सांसद पुत्र और उनकी दो बहुएं सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं.
यह भी सामने आया है कि इस कंपनी को बिहार में एंबुलेंस चलाने के लिए दूसरी बार ठेका मिला है. इस बार ठेके लिए पीडीपीएल ने अकेले ही दावेदारी की थी. कंपनी के खिलाफ अनियमितता के आरोप लगे और पटना हाई कोर्ट की ओर से भी टिप्पणी की गई थी.
आरोप दोः ठेका देने के लिए नियमों में बदलाव
आरोप है कि ठेका देने के लिए नियमों में बदलाव किया गया. नियम के अनुसार अगर कोई कंपनी अकेले ही बोली लगा रही है, तो उसके पास पिछले तीन सालों के दौरान कम से कम 750 एंबुलेंस को चलाने का अनुभव है. इसके अलावा 50 एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस और कम से कम 75 सीटों वाला कॉल सेंटर होना चाहिए, लेकिन पीडीपीएल ने बिहार में अकेले कभी एंबुलेंस नहीं चलाई थी, उसके पास सिर्फ 50 सीटों का कॉल सेंटर था.
इन्होंने भी की थी ठेके के लिए दावेदारी
पहली बार, जब पीडीपीएल को ये ठेका मिला था, तब उसके साथ सम्मान फाउंडेशन सहयोगी थी. दोनों कंपनियों को एक कॉन्सॉर्टियम (सह-व्यवस्था) के तहत 625 एंबुलेंस चलाने का साझा ठेका मिला था, लेकिन दूसरी बार में सम्मान फाउंडेशन ने मुंबई की कंपनी बीवीजी इंडिया लिमिटेड के साथ मिलकर ठेके के लिए दावेदारी पेश की थी. इसके अलावा जीवीके इमरजेंसी मैनेजमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट सिकंदराबाद और जीक्वित्जा हेल्थ केयर लिमिटेड , मुंबई ने भी ठेके के लिए दावेदारी की थी.
दो बार बदले गए आरएफपी
पीडीपीएल को ठेका देने के लिए ऐम्बुलेंस सेवा का प्रबंधन करने वाली स्वास्थ्य विभाग की एजेंसी स्टेट हेल्थ सोसायटी ऑफ बिहार (एसएचएसबी) ने एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस की संख्या 40 कर दी और कॉल सेंटर में सीटों की संख्या को 50 कर दिया. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मई 2022 में आरएफपी में एक और बदलाव किया गया. पहले की आरएफपी में दर्ज था कि अंतिम चयन गुणवत्ता और कीमत के आधार पर होगा, लेकिन बदलाव के बाद इस पैमाने को बदलकर कहा गया कि ‘न्यूनतम खर्च के आधार पर अंतिम चयन होगा.’ इस बदलाव के साथ सबसे कम बोली लगाने वाले ठेकेदार के लिए सहज स्थिति बनाई गई. यानी कुल मिलाकर उन्हें सुविधा देने की हर संभव कोशिश की गई, जो कि सफल रही.
आरोप तीनः दस्तावेज लीक करने के आरोप
ठेके की इस प्रक्रिया में दस्तावेज लीक करने के आरोप भी सामने आए हैं. आरजेडी के तीन विधायकों ने जुलाई 2022 में इस बारे में बिहार के तबके स्वास्थ्य मंत्री रहे और बीजेपी नेता मंगल पांडे को पत्र भी लिखा था. फिर जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ सरकार बना ली तब तेजस्वी यादव बिहार के स्वास्थ्य मंत्री बन गए, लिहाज शिकायत ठंडे बस्ते में चली गई.
आरोप चारः कोर्ट में गया मामला, लेकिन नहीं मानी गई बात
इस टेंडर प्रक्रिया से अयोग्य घोषित होने के बाद बीवीजी और सम्मान फाउंडेशन ने दिसंबर 2022 में पटना हाई कोर्ट में टेंडर को चुनौती दी थी. पटना हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि चूंकि टेंडर प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, उसे चालू रखा जाय लेकिन समिति (स्टेट हेल्थ सोसायटी ऑफ़ बिहार) अदालत की अनुमति के बिना कोई अंतिम निर्णय ना ले.
यह पूछे जाने पर कि याचिका के निस्तारित होने तक प्रतीक्षा करने के कोर्ट के निर्देश के बावजूद एसएचबीएस के कार्यकारी निदेशक संजय कुमार सिंह ने ऐसा क्यों किया, उन्होंने कहा,
देरी के कारण राज्य को प्रति माह 2.5 करोड़ रुपये से अधिक का अनुमानित नुकसान हो रहा था. इसलिए सबसे कम बोली लगाने वाले पीडीपीएल के साथ हम आगे बढ़े.
जहां तक सुप्रीम कोर्ट के पटना हाई कोर्ट से मामले के निस्तारण के लिए कहने के आदेश की बात है तो आदेश स्पष्ट नहीं दिखता. सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाई, बल्कि अन्य पहलुओं पर विचार करने को कहा था.
क्या बोले सांसद चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवर्शी
सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी ने कहा, यह मेरे रिश्तेदारों की कंपनी है और इसमें मेरी कोई व्यक्तिगत हिस्सेदारी नहीं है. उन्होंने कहा, हम सभी नीतीश कुमार को जानते हैं, वह किसी का पक्ष नहीं लेते हैं. पीडीपीएल एक स्थापित कंपनी है जो पेट्रोलियम, शराब व्यापार और परिवहन व्यवसाय में थी और डायल 102 अनुबंध विशुद्ध रूप से योग्यता के आधार पर मिला था.अब हम एम्बुलेंस सेवाओं में स्थापित हैं.
राजद ने कही ये बात
जेडीयू सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी के परिवार वालों को एंबुलेंस टेंडर मिलने पर आरजेडी की प्रतिक्रिया सामने आई है. आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी बोले, जेडीयू सांसद होने के कारण उनके बेटे के फर्म को टेंडर नहीं मिला. व्यापार करने का सबको अधिकार है. बीजेपी नेताओं के परिवार वाले भी कारोबार करते हैं. बीजेपी का आरोप निराधार है. जब बीजेपी सत्ता में थी तब ये बात क्यों नहीं दिखी.
बीजेपी ने की जांच की मांग
वहीं, इस मामले को लेकर बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि जिस कंपनी को ठेका दिया गया है, उसके बारे में कई विसंगतियां पाई गई हैं. जिस तरीके से फैसला लिया गया है, वह गर्भवती महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है. बीजेपी को उम्मीद है इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी.