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पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद से एलजेपी की स्थिति लगातार कमजोर ही नहीं हो रही बल्कि पार्टी का तिनका-तिनका बिखरता जा रहा है. एलजेपी की कमान जब से चिराग पासवान ने संभाली है, तब से लगातार पार्टी नेता साथ छोड़ते जा रहे हैं. इस बार पासवान परिवार से बगावत का बिगुल फूंका गया है. एलजेपी के छह में से पांच सांसदों ने चिराग पासवान के खिलाफ बागी रुख अपनाते हुए पासवान के छोटे भाई पशुपति पारस को अपना नेता मान लिया है. माना जा रहा है कि ये सभी नेता जेडीयू का दामन थाम सकते हैं?
चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी में बगावत ऐसे समय हुई है, जब केंद्र की मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं तेज हैं. रामविलास पासवान की जगह चिराग पासवान मंत्री बनने के लिए हाथ-पैर मार रहे थे. ऐसे में एलजेपी के 5 सांसदों ने चिराग को अपना नेता मानने से इनकार कर दिया है और अपना नेता पशुपति पारस को चुन लिया है. यह चिराग पासवान के लिए राजनीतिक तौर पर बड़ा झटका माना जा रहा है. इससे पहले मटिहानी सीट से जीतने वाले पार्टी एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह भी चिराग के फैसले और नीतियों का विरोध करते हुए जेडीयू में शामिल हो गए थे.
वहीं, अब एलजेपी के बागी सांसदों की अगुवाई करने वाले चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस इस मसले को लेकर सोमवार को सार्वजनिक तौर पर बात करेंगे. माना जा रहा है कि एलजेपी में असंतोष की एक बड़ी वजह रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत पर कब्जे को लेकर परिवार का अंदरूनी विवाद भी था. यही वजह है कि चिराग पासवान के खिलाफ उनके चाचा पशुपति कुमार पारस और रामविलास पासवान के बड़े भाई के लड़के प्रिंस राज ने भी बागी रुख अपना लिया है.
रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग द्वारा एकतरफा फैसले से ही कई सांसद उनसे नाराज थे. पशुपति कुमार पारस भी चिराग के रवैए से नाराज चल रहे थे. इस बात के संकेत तभी मिल गए थे जब पार्टी के सांसदों में टूट की बात सामने आई थी, लेकिन तब मामला दब गया था. रामविलास पासवान के निधन के बाद पिछले साल ही एलजेपी में बगवात की चर्चाएं होने लगी थीं कि पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में चार सांसद अलग हो रहे हैं.
पशुपति के हस्ताक्षर से एक लेटर भी जारी किया गया था. इस पत्र के लीक हो जाने के बाद पशुपति पारस ने खंडन कर दिया था कि ऐसा कुछ नहीं है और इस समय वे अपने भाई रामविलास पासवान के शोक में हैं. उस समय जो कुछ भी हुआ, भले ही उसे सियासी धुंआ बताकर मामले का पटाक्षेप कर दिया गया, लेकिन अब जिस तरह से टूट हुई है उससे जाहिर है कि कहीं-न-कहीं आग तो लगी थी.
चिराग पासवान के नेतृत्व संभालने के बाद पार्टी में बगावत के सुर भी गाहे-बगाहे उठ रहे थे, पर यह बहुत खुले रूप में सामने नहीं आई थी. मौजूदा परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी थी, पर वक्त का इंतजार था. माना जाता है कि बागी सांसद एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान और उनके सलाहकार से लंबे समय से नाखुश थे. विरोध और असंतोष के स्वर के साथ कई नेताओं ने एलजेपी छोड़कर जेडीयू में शामिल हो गए थे. इस असंतोष के बाद भी चिराग पासवान की ओर से कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए जाने के बाद असंतुष्टों ने अलग होने का फैसला किया.
पशुपति कुमार पारस पिछले कुछ दिनों से लगातार जेडीयू सांसद ललन सिंह के संपर्क में थे. हाल ही में पटना में दोनों के बीच मुलाकात भी हुई थी. इसमें सेतु का काम राम विलास पासवान के रिश्तेदार और जेडीयू के वरिष्ठ नेता महेश्वर हजारी ने किया. इसी के बाद एलजेपी सांसदों के बागी रुख अपना की पटकथा लिखी गई, क्योंकि पशुपति पारस का अपने सांसदों से संपर्क बना हुआ था. पशुपति रामविलास पासवान के छोटे भाई हैं और बिहार के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
बता दें कि रविवार की सुबह पशुपति कुमार पारस और एलजेपी के पूर्व सांसद सूरज भान सिंह दिल्ली गए. शाम में सूरजभान सिंह के भाई और नवादा से एलजेपी सांसद चंदन सिंह को भी दिल्ली बुलाया गया. वैशाली सांसद वीणा सिंह, खगडिया से सांसद महबूब अली कैसर, प्रिंस राज पहले से ही दिल्ली में मौजूद थे. इस दौरान सभी नेताओं की बैठक बुलाई गई, जिसमें पार्टी के पांचों सांसदों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया है. साथ ही चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ संसदीय दल के नेता का जिम्मा भी सौंपा गया है.
वहीं, केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा तेज है. ऐसे में पशुपति पारस केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बन सकते हैं. 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने दोबारा कमान संभाली तब एक फॉर्मूला बना कि सहयोगी दलों को मंत्रिपरिषद में एक-एक सीट दी जाएगी. तब 16 सांसदों वाली जदयू मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हुई. उसकी कम से कम दो सीटों की मांग थी जबकि 6 सांसदों वाली एलजेपी से रामविलास पासवान मंत्री बने थे, लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रामविलास पासवान का निधन हो गया. इसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में एलजेपी का खाली हुआ कोटा भरा नहीं गया.
हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सीट शेयरिंग को लेकर एलजेपी ने जेडीयू के खिलाफ सभी सीटों पर चुनाव में उतरने का फैसला किया था, जिसके चलते जेडीयू को काफी नुकसान हुआ था. इसके बाद से सवाल उठने लगे थे कि एनडीए में एललेजपी किस भूमिका में रहेगी. वहीं, अब केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चाएं तेज हैं तो एलजेपी में बगावत से चिराग पासवान फंस गए हैं, क्योंकि 6 में से पांच सासंद उनके चाचा के साथ खड़े हैं.