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NDA को मंझधार में छोड़ लालू की नैया पार लगाएंगे मांझी, मिलेगा इनाम

आरजेडी भी ओबीसी के साथ-साथ दलित मतों को साधने की कवायद में जुटी है. इस कवायद में पार्टी ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती को राज्यसभा भेजने का ऑफर भी दिया था, हालांकि माया ने ये ऑफर स्वीकार नहीं किया. अब मांझी अगर आरजेडी के साथ जाते हैं तो ये दोनों पक्षों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.

जीतनराम मांझी और तेजस्वी यादव जीतनराम मांझी और तेजस्वी यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 28 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 4:18 PM IST

बिहार की सियासत में 2019 के चुनाव की पठकथा लिखी जाने लगी है. हिंदुस्तान आवाम पार्टी (हम) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी एनडीए से अलग हो गए हैं. माना जा रहा है कि वो लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ जाने के इच्छुक हैं. वैसे आरजेडी भी ओबीसी के साथ-साथ दलित मतों को साधने की कवायद में जुटी है. इस कवायद में पार्टी ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती को राज्यसभा भेजने का ऑफर भी दिया था, हालांकि माया ने ये ऑफर स्वीकार नहीं किया. अब मांझी अगर आरजेडी के साथ जाते हैं तो ये दोनों पक्षों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.

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आरजेडी 2019 के चुनाव में यादव, मुस्लिम और ओबीसी के साथ-साथ दलित मतों को भी अपने पाले में लाने की कवायद कर रही है. इसके लिए जीतनराम मांझी उसके लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं. मांझी महादलित समाज से आते हैं. बिहार में करीब 15.72 फ़ीसदी दलित मतदाता हैं. ये वोट आरजेडी की सियासी ताकत बढ़ाने के लिए बेहद काम के हैं.

बिहार में दलितों में दुसाध और मुसहर दो प्रमुख जातियां हैं. इनमें मुसहर सबसे पिछड़े हैं, इसी समाज से जीतनराम मांझी आते हैं. लालू भले ही जेल में हैं लेकिन उनके बेटे तेजस्वी इन दिनों बिहार के दौरे पर हैं औैर महादलितों के घर जाकर वो भोजन कर रहे हैं. तेजस्वी अपने पिता के दौर की सामाजिक न्याय की कहानी भी सुना रहे हैं.

लालू की गैरमौजूदगी में पार्टी का काम उनके बेटे तेजस्वी यादव और पत्नी राबड़ी देवी देख रही हैं.  राज्य की राजनीति में उलटफेर करने के लिए आज राबड़ी देवी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की बैठक हुई. इसके बाद मांझी ने पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया.

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गौरतलब है कि पिछले साल पीएम नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को महागठबंधन से अलग कर अपने साथ मिलाकर लालू यादव को बड़ी राजनीतिक मात दी थी. ऐसे में आरजेडी भी मोदी से हिसाब बराबर करने की तैयारी में है. आरजेडी के निशाने पर बिहार में बीजेपी के सहयोगी दल हैं.

मांझी जहां आरजेडी के लिए फायदे का सौदा हैं तो खुद उन्हें भी लालू के साथ रहने में ही सियासी फायदा नजर आ रहा है. फिलहाल वे एनडीए में हाशिए पर हैं. वे एनडीए के कोटे से राज्यसभा जाना चाहते थे लेकिन उन्हें बीजेपी आलाकमान की हरी झंडी नहीं मिली. अब वे आरजेडी के जरिए अपना ये सपना पूरा करने की जुगत में हैं. हालांकि तेजस्वी उन्हें राज्यसभा की सीट ऑफर करेंगे या नहीं, ये अगले कुछ दिन में ही साफ होगा. वैसे 2009 में जब राम विलास पासवान लोकसभा चुनाव हार गए थे, तो उन्हें आरजेडी ने राज्यसभा भेजा था लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में पासवान लालू का साथ छोड़कर एनडीए का हिस्सा बन गए.

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