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बिहार में NDA में बंटी सीटें, फायदे में रहे नीतीश-पासवान

भारतीय जनता पार्टी ने बिहार की सियासी जंग फतह करने और महागठबंधन को मात देने के लिए जेडीयू और रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी के साथ गठबंधन किया है. ऐसे में एनडीए के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हुआ है. इस लिहाज से बीजेपी अपनी जीती हुई सीटों में से कम पर चुनाव लड़ेगी.

चिराग पासवान, रामविलास पासवान, अमित शाह, नीतीश कुमार (फोटो-twitter) चिराग पासवान, रामविलास पासवान, अमित शाह, नीतीश कुमार (फोटो-twitter)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 24 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:40 PM IST

लोकसभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने बिहार की सियासी जंग फतह करने और महागठबंधन को मात देने के लिए जेडीयू और रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी के साथ गठबंधन किया है. काफी मशक्कत के बाद तीन दलों के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया है. जेडीयू के साथ आने के चलते बीजेपी को अपनी जीती हुई सीटों से कम पर चुनावी मैदान में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

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बता दें कि एनडीए में सहयोगी दलों के बीच बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हुआ है. इसके तहत बीजेपी 17, जेडीयू 17 और एलजेपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. हालांकि, किस पार्टी को कौन सी सीट दी जाएगी, इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है. इसके अलावा रामविलास पासवान बीजेपी के कोटे से राज्यसभा जाएंगे.

जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. पिछले दिनों कुशवाह ने एनडीए से अलग हो गए हैं. बता दें कि बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की की 30 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी और 22 सीटें जीतने में सफल रही थी. वहीं, जेडीयू ने सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ी और महज 2 सीटें ही जीत सकी थी. जबकि एलजेपी 7 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी थी और 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.

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2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के बीच बने सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहते बीजेपी ने अपनी जीती हुई 22 सीटों में से भी पांच कम पर यानी 17 पर चुनाव लड़ेगी.  ऐसे में जरूरी नहीं है कि वह 17 की 17 सीटें दोबारा से जीतकर आ सके. इस तरह से बीजेपी चुनाव से पहले ही पांच सीटों का नुकसान उसे उठाना पड़ा रहा है.

वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि पिछले चुनाव में उसे 2 सीटें मिली थी. जबकि जेडीयू को बीजेपी के साथ गठबंधन करने चुनावी मैदान में उतरने से हमेशा सियासी फायदा मिला है. जेडीयू एक बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी रण में उतरी है. ऐसे में उसे 2014 की तुलना में सियासी फायदा मिलना तय है.

रामविलास पासवान के खाते में 6 सीटें आई है और एक राज्यसभा सीट. 2009 में लोकसभा चुनाव में एलजेपी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी और 2014 के चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा. उसके 6 सांसद जीतने में सफल रहे थे. अब एक बार फिर वो बीजेपी और जेडीयू के सहारे मैदान में उतरेगी. जबकि पासवान राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचने तय है. लेकिन एक बड़ा सवाल है कि बीजेपी अगर बहुत बड़ी सफलता हासिल करने में कामयाब नहीं रह पाती है तो ऐसे में चुनाव के बाद रामविलास पासवान बीजेपी के साथ रहेंगे ये कहना मुश्किल है.

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दिलचस्प बात ये है रामविलास पासवान 1995 के बाद से जितनी भी सरकारें बनी है, वह सभी में मंत्री रहे हैं. देवगौड़ा से लेकर नरेंद्र मोदी तक वो देश के 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं.

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