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नीतीश ने कभी मांझी को अपनी जगह बैठा दिया था सीएम की कुर्सी पर, अब क्यों बता रहे भेदिया?

बिहार में विपक्षी दलों की बैठक से पहले नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी के रास्ते अलग हो गए हैं. मांझी के बेटे संतोष सुमन ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है. अब नीतीश कुमार ने मांझी पर बड़ा हमला बोला और कहा, वे बीजेपी वालों से मिलते जा रहे थे. इससे पहले मांझी को नीतीश का भरोसेमंद और बेहद करीबी माना जाता था.

नीतीश कुमार ने एक समय अपने भरोसेमंद जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था. (फाइल फोटो) नीतीश कुमार ने एक समय अपने भरोसेमंद जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था. (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2023,
  • अपडेटेड 1:53 PM IST

बिहार में विपक्षी एकता की कवायद के बीच नीतीश कुमार ने अपने पुराने और सबसे वफादार साथी जीतनराम मांझी को महागठबंधन से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. दो दिन पहले ही मांझी के बेटे संतोष सुमन ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. सुमन का कहना था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार HAM का विलय जदयू में करना चाहते थे. उन्होंने कहा, विपक्षी एकजुटता के अगुआ नीतीश पहले ही मैदान छोड़कर भाग गए हैं. उन्होंने पीएम मोदी की तारीफ की है.

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इस बीच, दो दिन में महागठबंधन की तस्वीर एकदम साफ हो गई है. नीतीश ने सबसे पहले संतोष सुमन का इस्तीफा स्वीकार किया. उसके बाद जदयू कोर्ट से रत्नेश सादा को नया मंत्री भी बना दिया और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी को भेदिया बताकर बड़ा हमला भी बोला है.

पहले जान लीजिए आज नीतीश ने क्या कहा...

नीतीश कुमार ने कहा, मैंने बोला था कि वो या तो जदयू में अपनी पार्टी का विलय करें या फिर यहां से जाएं. नीतीश ने मांझी का बिना नाम लिए भेदिया होने की तरफ इशारा किया और कहा, वो बीजेपी वालों से मिलते जा रहे थे. ठीक हुआ, हमसे अलग हो गए. अभी विपक्षी दलों की बैठक होनी है. अगर वो इस मीटिंग में बैठते तो अंदर की बात बीजेपी को पास कर देते. अच्छा हुआ कि वे हमारे पास से चले गए.

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नीतीश के बयान पर पलटवार

बीजेपी से मिलने के बयान पर जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार पर पलटवार किया है. मांझी ने पूछा- कोई प्रमाण है क्या नीतीश कुमार के पास कि हम बीजेपी से मिलते थे? क्या नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार नहीं बनाई है? उन्होंने कहा, वो तेजस्वी यादव को लॉलीपॉप दिखा रहे हैं. खुद एनडीए (बीजेपी गठबंधन) से मिल जाएंगे लेकिन तेजस्वी यादव को सीएम नही बनाएंगे.

दो दिन पहले क्या हुआ था...

नीतीश कुमार ने पिछले साल बीजेपी से नाता तोड़कर राजद-कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई थी. इस सरकार में वाम दलों ने बाहर से समर्थन दिया है. मांझी की पार्टी HAM ने 2020 विधानसभा का चुनाव नीतीश के साथ मिलकर लड़ा था. ऐसे में वो भी नीतीश के साथ महागठबंधन में शामिल हो गए थे. मांझी की पार्टी के चार विधायक हैं. उनके बेटे संतोष मांझी को महागठबंधन सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का मंत्री बनाया गया था. दो दिन पहले संतोष सुमन ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. 

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'हम पर मर्ज करने का दबाव था, अब संघर्ष करेंगे'

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संतोष सुमन ने आरोप लगाया था कि वो (नीतीश) मेरी पार्टी का जदयू में विलय करने का दबाव डाल रहे थे. जदयू चाहती थी कि हम अपनी पार्टी को उनके साथ मर्ज कर दें. लेकिन हमें वो मंजूर नहीं था. हम अकेले संघर्ष करेंगे. शुक्रवार संतोष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, विपक्षी एकजुटता के अगुआ नीतीश ही मैदान छोड़कर भाग गए हैं. वो पीएम उम्मीदवार नहीं बनना चाहते हैं. 

'मोदी के सामने अच्छा चेहरा खोजा जा रहा'

संतोष ने पीएम नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की. कहा, नरेंद्र मोदी 2024 में सशक्त उम्मीदवार हैं. लोग उन पर विश्वास करते हैं. उनके सामने नेता खोजने की बात चल रही है, उसमें लॉटरी होना है. हम उनको शुभकामना देते हैं कि चेहरा मिले और लड़ाई लड़े.

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18 जून को HAM की बैठक

1980 से सियासत शुरू करने वाले जीतनराम मांझी अपने 43 साल के राजनीतिक सफर में 8 बार राजनीतिक तौर पर पाला बदल चुके हैं. अब नौवीं बार पाला बदलने और एनडीए के साथ जाने की चर्चा है. हालांकि, इसी साल 27 फरवरी को जीतनराम मांझी ने कहा था कि कसम खाकर कहता हूं- नीतीश का साथ छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा. लेकिन, सिर्फ 107 दिन बाद ही नीतीश और मांझी के रास्ते अलग हो गए हैं. फिलहाल, मांझी ने पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा की 18 जून राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है.

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एक समय नीतीश के वफादार थे मांझी

बताते चलें कि जीतन राम मांझी 20 मई 2014 को बिहार में सीएम की कुर्सी पर बैठे थे. वे राज्य के 23वें मुख्यमंत्री बने थे. मांझी को ये कुर्सी नीतीश ने खुद ही सौंपी थी. तब उन्हें नीतीश का सबसे भरोसेमंद माना जाता था. दरअसल, 2014 आम चुनाव में जेडीयू की हार के बाद नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद जेडीयू में नए नेता की तलाश शुरू हुई. नीतीश कुमार अपने महादलित जनाधार को मजबूत करना चाहते थे, इसलिए महादलित समुदाय से एक नेता की तलाश की गई. उनकी तलाश जीतन राम मांझी पर आकर खत्म हुई. 

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सीएम बनने की नहीं थी संभावना

बताते चलें कि मांझी जहानाबाद के मखदमपुर से विधायक थे. इसके साथ ही अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण विभाग के मंत्री भी थे. मांझी की पहचान एक शांत, विनम्र स्वभाव वाले नेता के रूप में थी. सीएम की रेस में उनके नाम की दूर-दूर तक संभावना नहीं थी. 

'आप मेरी कुर्सी पर बैठिए'

जीतन राम मांझी की राजनीतिक प्रभाव गया इलाके में देखने को मिलता है. उस समय वो गया में एक शादी में जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उनके पास नीतीश कुमार का फोन आया और उनको सीएम आवास पर बुलाया. जब मांझी वहां पहुंचे तो शरद यादव पहले से मौजूद थे. मांझी एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गए. तभी नीतीश कुमार ने कहा- अरे यहां मेरी कुर्सी पर बैठिए. यह घर अब आपका है. यह सुनकर मांझी चौंक गए. उनको समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है? इसके बाद जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

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'लोकसभा चुनाव में हार के बाद दिया था इस्तीफा'

जानकार कहते हैं कि खुद को बिहार के चाणक्य के तौर पर प्रचारित करने वाले नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन में तब ऐसा दौर आया था, जब वो खुद को मझधार में फंसा हुआ महसूस कर रहे थे. तब उन्हें एक 'मांझी' की जरूरत थी जिसे पतवार थमाकर वो तब तक ब्रेक ले सकें, जब तक लोग लोकसभा चुनावों में उनकी करारी हार की बात भुला दें. तभी उन्हें जीतन राम मांझी का नाम सूझा. नीतीश ने सोचा तो यही होगा कि 'मांझी', उनके खड़ाऊं के सहारे शासन चलाएंगे, लेकिन, मांझी दो कदम आगे निकल गए.

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'मांझी ने चुपचाप काम की बारीकियां सीखीं और...'

नीतीश कुमार ने 19 मई, 2014 को इस्तीफा दिया था और मांझी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था. तब कहा गया था कि अब वो रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाएंगे. इस बीच, नीतीश नियमित तौर पर विधायकों से मिलते रहे. लोगों से जुड़े रहने के लिए जब तब कहीं ना कहीं दौरा भी करते रहे. उधर, मांझी चुपचाप कामकाज की बारीकियों को समझते रहे. राजनीति का पुराना अनुभव तो उनके पास था ही, बस इस तरह काम करने की आजादी पहली बार मिली थी. जब तक नीतीश को ये बात समझ में आती, तब तक काफी देर हो चुकी थी. 

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खुद की पार्टी बनाई और महादलित में पैठ बढ़ाई

जीतनराम मांझी मई 2014 से फरवरी 2015 तक यानी 9 महीने बिहार के सीएम रहे. उन्होंने 20 फरवरी 2015 को बिहार के सीएम से इस्तीफा दे दिया था. इस दौरान मांझी को बिहार में जातिगत राजनीति की अहमियत समझ में आ गई थी. मांझी समझते थे कि जिस महादलित एजेंडे के भरोसे नीतीश ने बिहार में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत की है, उस समुदाय से तो वे खुद ही आते हैं. उसी समय उन्होंने फैसला किया था- बंदूक चलाने के लिए कंधा देने से तो अच्छा है कि खुद ही बंदूक थाम लो. उनके पास अनुभव था, शिक्षा थी और महादलितों का कैडर तो था ही. मांझी ने इसी मौके पर अपनी राजनीतिक पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा बनाने का ऐलान कर दिया.

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'2015 में एनडीए, 2019 में फिर महागठबंधन में आए'

जीतनराम मांझी 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन के साथ चले गए. NDA के घटक दल के तौर पर उन्हें 21 सीटें लड़ने को मिलीं, लेकिन मांझी सिर्फ अपनी ही सीट जीत पाए. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मांझी NDA गठबंधन छोड़कर एक बार फिर से नीतीश-लालू के साथ महागठबंधन में आ गए. इस लोकसभा चुनाव में HAM तीन सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन मांझी समेत तीनों ही कैंडिडेट चुनाव हार गए. 

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2020 के चुनाव में HAM ने जीती थीं 4 सीटें

इस बीच, 2017 में नीतीश कुमार और बीजेपी एक साथ आ गए. 2020 विधानसभा चुनाव का वक्त आया तो जीतनराम मांझी एक बार फिर से नीतीश कुमार के साथ हो गए. यानी एनडीए का हिस्सा बन गए. 2020 विधानसभा चुनाव में HAM को 7 सीटें मिलीं. इसमें से 4 पर पार्टी ने जीत हासिल की. नीतीश सरकार में जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन को मंत्री बनाया गया. 

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