
कहते हैं धुआं वहीं से उठता है, जहां आग लगी होती है, और बिहार में जिस तरह से राजनीति का धुआं उठ रहा है, हर कोई यही चर्चा कर रहा है, कि कहीं ना कहीं जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन के बीच बगावत की चिंगारी सुलगी हुई है. मंगलवार सुबह तक ये महज चर्चा थी, लेकिन अब ये कंफर्म हो गया है कि नीतीश कुमार बीजेपी को झटका देकर आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं.
गठबंधन के पतन की कहानी
लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी नौबत आई क्यों? जो नीतीश कुमार महागठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ आए थे, एक बार फिर क्यों वे बगावती तेवर दिखा रहे हैं? आखिर इस टूटते गठबंधन की पटकथा कब और कैसे लिखी गई? बिहार में जब से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने जेडीयू से इस्तीफा दिया है, तभी से सियासी सरगर्मी काफी तेज हो गई है. तो क्या सिर्फ आरसीपी सिंह ही एक वजह हैं जिससे नीतीश एनडीए का साथ तोड़ने पर आमादा है?
नीतीश कुमार की नाराजगी की मुख्य वजह फ्री हैंड न मिलना है. इसी वजह से वे दिल्ली में सरकार के कार्यक्रमों में भी शामिल नहीं हो रहे हैं. उन्होंने राज्य में बीजेपी नेताओं से भी दूरी बनाए रखी है. अब ये फ्री हैंड भी इसलिए नहीं मिल रहा क्योंकि RCP सिंह जैसे नेताओं ने जेडीयू से ज्यादा बीजेपी के प्रति अपनी वफादारी दिखाई है. उनका बीजेपी के ज्यादा करीब जाना ही नीतीश कुमार को अखर रहा था.
RCP सिंह वाला चैप्टर क्या है?
अब बता दें कि जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष RCP सिंह केंद्र सरकार में मंत्री थे. उन्हें जेडीयू में बीजेपी के आदमी के तौर पर देखा जा रहा था...क्योंकि नीतीश की मर्जी के बिना वो केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए थे. लिहाजा पहले नीतीश कुमार ने उन्हें दोबारा राज्यसभा भी नहीं भेजा जिससे उन्हें मंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी और अब वो पार्टी भी छोड़ चुके हैं. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह कह रहे हैं बीजेपी तय नहीं करेगी कि मंत्री कौन बनेगा ?
वैसे सच तो ये भी है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच की खाई पिछले कई दिनों से दिख रही थी. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि रविवार को नीतीश कुमार नीति आयोग की बैठक में नहीं पहुंचे थे. नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के स्वागत पीएम मोदी की तरफ से आयोजित डिनर में भी शामिल नहीं हुए थे. यहां ये जानना जरूरी हो जाता है कि 2020 में जब जेडीयू और बीजेपी ने साथ मिलकर सरकार बनाई थी, तभी से ये कयास लगने शुरू हो गए थे कि सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी. इसका एक बड़ा कारण ये था कि जेडीयू के मुकाबले बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थीं. इसके बावजूद बीजेपी हाईकमान ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया. इससे बीजेपी के एक बड़े खेमे में काफी नाराजगी थी. जो समय-समय पर जाहिर भी होते रही.
कहा ये भी जा रहा है कि नीतीश कुमार केंद्र के फैसलों के खिलाफ़ नहीं बोल पाते थे, कृषि बिल, जातीय जनगणना, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग हो या अग्निवीर का मसला. हर बार नीतीश कुमार केंद्र सरकार के फैसलों के खिलाफ़ खड़े होना चाहते थे, लेकिन बीजेपी के साथ की मजबूरी ने उन्हें रोक दिया.
नीतीश का पाला बदलने वाला खेल पुराना
अब नीतीश कुमार के सियासी सफर को देखें तो कई बार यू-टर्न लिया.कई बार पलटी मारी है. अगर नीतीश कुमार एनडीए से हटते हैं तो ऐसा पहली बार नहीं होगा.2005 में नीतीश की अगुवाई में एनडीए को प्रचंड जीत मिली....लेकिन 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ नीतीश NDA से अलग हो गए थे. बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. साल 2015 में पुराने सहयोगी लालू यादव के साथ गठबंधन किया, विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन गठबंधन की गाड़ी 20 महीने चली. आरजेडी से
रिश्ता तोड़ने के बाद एक बार फिर एनडीए का हिस्सा बन गए, अब एक बार फिर ऐसी खबरें है कि नीतीश एनडीए छोड़ सकते हैं.
तेजस्वी मुख्यमंत्री, तभी जेडीयू से गठबंधन?
वैसे नीतीश शायद एनडीए छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर आरजेडी किन शर्तों पर नीतीश का साथ दे सकती है. क्या एक बार फिर उन्हें गठबंधन का मुख्यमंत्री स्वीकार किया जा सकता है. क्या 45 सीट जीतने वाली जेडीयू का मुख्यमंत्री बनना सबसे बड़ी पार्टी को रास आ जाएगा? 2020 में बिहार चुनाव में आरजेडी 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि जेडीयू को 45 सीटें मिलीं. जैसे ही आरजेडी और जेडीयू में गठबंधन की बात शुरु हुई है, तो आरजेडी अपना रुख साफ कर रही है और ये भी खुलकर बोल रही है कि जनता ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चुना है. अब सवाल ये है कि क्या आरजेडी इसी शर्त पर जेडीयू से गठबंधन करेगी कि सीएम तेजस्वी यादव होंगे?
आंकड़ों में बात करें तो जेडीयू के पास 45 विधायक हैं. अगर वो एनडीए से अलग होती है तो उसे सरकार बनाने के लिए 77 विधायकों की जरूरत है. ऐसे में जेडीयू और आरजेडी साथ आते हैं. आरजेडी- 79, कांग्रेस- 19, लेफ्ट-16. कुल आंकड़ा पहुंचता है 114. अब इस 114 में जैसे ही जेडीयू के 45 विधायक जुड़ जाते हैं, ये गठबंधन 122 के बहुमत वाले आंकड़े से काफी आगे निकल जाता है. उसके खाते में कुल संख्या 159 पर पहुंच जाती है.
आजतक ब्यूरो