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तेजस्वी जैसा ही कद चाहते हैं तेजप्रताप... जानिए आरजेडी के 'अंतर्कलह' की 'अंतर्कथा'

तेज प्रताप खुद को कृष्ण और तेजस्वी यादव को अर्जुन बताते रहे हैं. मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी तेजस्वी को ही मानते हैं. इसके बावजूद उन्हें लगता है कि पार्टी में उनकी जितनी पूछ होनी चाहिए नहीं हो रही और न ही तेजस्वी की तरह तरजीह मिलती है. यही वजह है कि तेज प्रताप के निशाने पर आरजेडी के वो तमाम नेता हैं, जिन्हें तेजस्वी का करीबी समझा जाता है. 

तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 19 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST
  • लालू यादव की विरासत पर छिड़ा सियासी संग्राम
  • तेज प्रताप के निशान पर तेजस्वी के करीबी नेता
  • लालू का सियासी वारिस तेजस्वी को माना जा रहा

लालू प्रसाद यादव की सियासी विरासत को लेकर सियासी संग्राम छिड़ गया है. लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की चाहत तेजस्वी यादव की तरह आरजेडी में सम्मान और कद हासिल करने की है. हालांकि, तेज प्रताप खुद को कृष्ण और तेजस्वी यादव को अर्जुन बताते रहे हैं. मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी तेजस्वी को ही मानते हैं. इसके बावजूद उन्हें लगता है कि पार्टी में उनकी जितनी पूछ होनी चाहिए नहीं हो रही और न ही तेजस्वी की तरह तरजीह मिलती है. यही वजह है कि तेज प्रताप के निशाने पर आरजेडी के वो तमाम नेता हैं, जिन्हें तेजस्वी का करीबी समझा जाता है. 

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दरअसल, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के सियासी वारिस तेज प्रताप यादव को नहीं बल्कि तेजस्वी यादव को माना जा रहा है. लालू ने तेजस्वी को छह साल पहले विधायक दल का नेता बनाकर साफ कर दिया था कि भविष्य में उनका सियासी उत्तराधिकारी कौन होगा और आरजेडी की कमान भी किसके हाथ में होगी. 2020 के बिहार चुनाव में आरजेडी के बेहतर प्रदर्शन के लिए तेजस्वी से लालू यादव गदगद हैं, जिसके चलते आरजेडी में सियासी विरासत के हस्तांतरण अब निर्णायक मोड़ पर है. 

आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव इसी साल नंबवर में होना है. लालू यादव अपनी खराब सेहत और ढलती उम्र की वजह से आरजेडी के अध्यक्ष  के बजाय खुद को संरक्षक की भूमिका में रखना चाहते हैं. ऐसे में तेजस्वी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले तेज प्रताप यादव ने अपने सियासी कद के लिए मोर्चा खोल दिया है. ऐसे में उनके निशाने पर वो तमाम आरजेडी नेता आ गए हैं, जो तेजस्वी के लिए सियासी पिच तैयार करने में लगे हैं. 

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आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने पार्टी के छात्र प्रदेश अध्यक्ष आकाश यादव को हटाकर गगन कुमार को अध्यक्ष बना दिया. गगन कुमार को जगदानंद का करीबी माना जाता है जबकि आकाश यादव को तेज प्रताप के नजदीकी हैं. पिछले दिनों पार्टी के छात्र इकाई के कार्यक्रम के लिए लगे पोस्टर में सिर्फ तेज प्रताप यादव का फोटो लगाया गया था और तेजस्वी का नहीं. ऐसे में माना जा रहा है कि आकाश यादव की छुट्टी इसी के चलते हुई है.

आकाश यादव को छात्र आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए जाने के बाद तेज प्रताप यादव का गुस्सा तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पर  फूटा है. तेजप्रताप ने तेजस्वी के रणनीतिकार संजय यादव को निशाने पर लिया और कहा कि हरियाणा का आदमी नहीं चाहता कि तेजस्वी मुख्यमंत्री बनें. वो तेजस्वी को बार-बार दिल्ली ले जाता है. 

संजय यादव के साथ तेज प्रताप यादव ने प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को भी निशाने पर लिया. तेज प्रताप ने ट्वीट कर लिखा, 'प्रवासी सलाहकार से सलाह लेने में अध्यक्ष जी ये भूल गए कि पार्टी संविधान से चलती है और आरजेडी का संविधान कहता है कि बिना नोटिस दिए आप पार्टी के किसी पदाधिकारी को पदमुक्त नहीं कर सकते. आज जो हुआ वो आरजेडी के संविधान के खिलाफ हुआ.' साथ ही तेज प्रताप ने कहा कि जगदानंद सिंह मानने को तैयार नहीं कि तेज प्रताप यादव, लालू यादव के बेटे हैं. 

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तेज प्रताप यादव के खासमखास आकाश यादव को पद से हटाकर पार्टी ने बता दिया है कि आरजेडी को अब तेजस्वी यादव ही चलाएंगे. जगदानंद सिंह जैसे नेताओं का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को पार्टी ने बर्दाश्त नहीं किया तो आकाश यादव क्या चीज हैं. जगदानंद का समर्थन करते हुए तेजस्वी ने कहा कि यह प्रदेश अध्यक्ष का अधिकार होता है कि किस प्रकोष्ठ में किसे क्या जिम्मेदारी देनी है और जगदानंद सिंह को ऐसा कोई भी फैसला लेने का पूरा अधिकार है. 

जगदानंद सिंह को आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला लालू यादव ने किया था. कहा जाता है कि लालू चाहते थे कि जगदानंद सिंह के सहारे उनके बेटों के बीच की दूरी कम हो,  लेकिन, पार्टी रजत जयंती कार्यक्रम में तेज प्रताप ने जगदानंद सिंह को निशाना पर लेते हुए जमकर खरी खोटी सुनाई थी. वहीं, आरजेडी के छात्र कार्यक्रम में तेज प्रताप ने जगदानंद सिंह को हिटलर बता दिया. तेज प्रताप इतने पर ही नहीं रुके और कहा कि कुर्सी किसी की बपौती नहीं है. 

साल 2017 में आरजेडी और जेडीयू के बीच गठबंधन टूटने के बाद लालू यादव ने तेजस्वी को पार्टी की विरासत सौंपने का ऐलान किया था. लालू ने तेजस्वी को प्रतिपक्ष का नेता बना दिया था, जिसके बाद से तेज प्रताप यादव ने मोर्चा खोल रखा है. तेजस्वी के प्रतिपक्ष नेता बनने के कुछ ही दिनों बाद तेज प्रताप का दर्द ट्वीट के जरिए बाहर आ गया था. उन्होंने लिखा था कि उन्हें दुख होता है कि आरजेडी में उनकी अनदेखी की जा रही है. तेज प्रताप ने उस ट्वीट में अपने खिलाफ साजिश की आशंका भी जताई थी.

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जगदानंद से पहले आरजेडी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे को लेकर भी तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच तनातनी हो चुकी है. तेज प्रताप ने लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले नाराजगी जताते हुए आरजेडी के खिलाफ. ही मोर्चा खोल दिया था. उन्होंने नई पार्टी बना ली थी और इसका नाम लालू-राबड़ी मोर्चा रखा था. तेज़ प्रताप ने कहा था कि पार्टी पर कुछ लोगों ने क़ब्जा जमा लिया है. 

तेज प्रताप ने कहा था कि उन्होंने आरजेडी से बिहार की शिवहर और जहानाबाद सीट देने की मांग की है और इसे नहीं सुना जा रहा है, हालांकि बाद में तेज प्रताप को मना लिया गया था. तेज प्रताप वर्तमान में विधायक हैं और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री भी रहे हैं, लेकिन आरजेडी में जिस तरह का कद तेजस्वी यादव का है उसे वो हासिल नहीं कर सके. 

वहीं, लालू प्रसाद यादव भी जेल से रिहा होने के बाद सियासी सक्रियता बढ़ा रहे हैं और बीते दिनों में शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव सहित तमाम नेताओं से मुलाकात कर चुके है. आरजेडी के तमाम बड़े नेता तेजस्वी को ही लालू के उत्ताराधिकारी के तौर पर देख रहे हैं, जिसकी कसक तेज प्रताप के मन में रहती है. ऐसे में लालू के सियासी विरासत पर काबिज होने के लिए तेजस्वी-तेज प्रताप में शाह-मात का खेल जारी है. 

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