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बिहार: अब क्या होगा मुकेश सहनी का, कैसे बचेगी मंत्री की कुर्सी? नीतीश के पाले में डाली गेंद

बिहार की राजनीति में बुधवार को बड़ा उल्टफेर हो गया है. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए का हिस्‍सा बनकर चुनाव लड़ने वाले और नीतीश सरकार में मंत्री मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के तीन विधायकों को बीजेपी ने अपने साथ मिला लिया है.

वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 24 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 12:45 PM IST
  • सहनी की पार्टी से जीते विधायक बीजेपी में शामिल
  • मुकेश सहनी के मंत्री पद की कुर्सी पर संकट गहराया
  • क्या सहनी के लिए नीतीश बीजेपी से रिश्ते बिगाड़ेंगे

बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए सरकार में शामिल बीजेपी और वीआईपी के बीच शह-मात का खेल जारी है. नीतीश सरकार में मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) पार्टी के तीनों विधायक बुधवार शाम को बीजेपी में शामिल हो गए. वहीं, विधानसभा अध्यक्ष ने बीजेपी विधायक दल में वीआईपी विधायकों के विलय की मान्यता दे दी. ऐसे में सवाल उठता है कि मुकेश सहनी का क्या होगा और कैसे उनके मंत्री पद की कुर्सी बचेगी? 

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वीआईपी के तीन विधायक बीजेपी के हुए

बता दें कि 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के साथ गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ हाथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी से चार विधायक जीते थे, जिनमें एक विधायक का निधन हो गया है. ऐसे में वीआईपी के टिकट पर जीते तीन विधायक राजू सिंह, मिश्रीलाल यादव और स्वर्णा सिंह ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल, उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के साथ बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा से मुलाकात कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. 

बीजेपी में क्यों गए वीआईपी विधायक

मुकेश सहनी बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए का हिस्‍सा बनकर जरूर मैदान में उतरे थे, लेकिन इसमें एक बड़ा तथ्‍य यह था कि उनकी पार्टी के लिए सीटों का इंतजाम बीजेपी ने अपने कोटे से किया था. ठीक इसी तरह जीतन राम मांझी के लिए सीटों का इंतजाम जेडीयू ने किया था. लेकिन, इसमें एक और बड़ा पेंच है कि मांझी की पार्टी हम से जीतने वाले चार विधायक उनके अपने हैं, लेकिन सहनी की पार्टी से जीतने वाले करीब-करीब सभी विधायक बीजेपी के करीबी रहे. एक तरह से भाजपा ने अपने उम्‍मीदवारों को सहनी की पार्टी के सिंबल पर मैदान में उतारा और वे जीते. ऐसे में भाजपा से रार ठानने के बाद उनके विधायक छोड़कर चले गए और सहनी पर संकट गहरा गया है. 

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मुकेश सहनी की कुर्सी पर खतरा

तीनों विधायकों की बगावत के बाद अब मुकेश सहनी के सामने सियासी संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में सहनी के सामने मंत्री पद बचाने की चुनौती खड़ी हो गई. सहनी के लिए अगला झटका जुलाई में इंतजार कर रहा है. उन्हें एमएलसी के पद से भी हाथ धोना पड़ सकता है, क्योंकि वो जिस उपचुनाव में एमएलसी बनाए गए थे, उसका कार्यकाल जुलाई 2022 तक है. ऐसे में अब उनके सदन पहुंचने की राह में भी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. 

वीआईपी प्रमुख और सह पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री मुकेश सहनी ने साफ कह दिया है कि मंत्री पद से वो इस्तीफा नहीं देंगे बल्कि मुख्यमंत्री के ऊपर छोड़ता हूं. उन्होंने कहा कि वे राज्य सरकार में मंत्री रहेंगे या नहीं, इसका फैसला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को करना है. मंत्रिमंडल से मुझे रखने या हटाने का विशेषाधिकारी मुख्यमंत्री के पास है. सहनी ने कहा कि मेरा काम संघर्ष करना है और वह करता रहूंगा. निषाद आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे हैं और आखिरी सांस तक लड़ेंगे. तीन विधायकों के जाने के बाद और मजबूती के साथ अपनी मुहिम को आगे बढ़ाएंगे. 

नीतीश के पाले में सहनी ने डाली गेंद

मुकेश सहनी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाले में गेंद डालकर बड़ा सियासी दांव चला है. उनके बयान से साफ है कि वो मंत्री पद नहीं छोड़ेंगे बल्कि अगर उन्हें कैबिनेट से हटाया जाता है तो हटा दिया जाए. सीएम नीतीश अगर उन्हें को कैबिनेट से हटाने का कदम उठाते हैं तो इस बहाने मुकेश सहनी को अपने पक्ष में सहानुभूति लेने का मौका मिल जाएगा. इसीलिए वो कह रहे हैं कि अगर मुख्यमंत्री को मंत्री पद से हटाना है तो हटा सकते हैं. ऐसे में देखना है कि सीएम नीतीश क्या सियासी कदम उठाते हैं. 

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दरअसल, यूपी विधानसभा चुनाव के समय से ही मुकेश सहनी और बीजेपी के बीच रिश्ते बिगड़ गए थे. सहनी ने भाजपा को हराने के लिए अपनी जी जान लगा दिया था. यूपी में सफलता नहीं मिलने के बाद बिहार लौटने पर उन्‍होंने विधान परिषद उपचुनाव में जदयू को छोड़ उन जगहों पर अपने उम्‍मीदवार दिए जहां भाजपा के प्रत्‍याशी मैदान में थे. इसके बाद भी उनके तेवर कम नहीं हुए तो बीजेपी ने उनके नेताओं को साथ मिलाकर मुकेश सहनी को खाली हाथ कर दिया है. 

नीतीश क्या कुशवाहा मॉडल अपनाएंगे

वहीं, अब मुकेश सहनी के लिए सियासी संकट खड़ा हो गया कि कैसे अपने मंत्री पद की कुर्सी बचाएं. ऐसे में उनके सियासी भविष्य का फैसला नीतीश कुमार के हाथों में है. नीतीश कुमार अगर उपेंद्र कुशवाहा की तरह मुकेश सहनी को अपने साथ मिला लेंते हैं और जुलाई 2022 में उन्हें अपने कोटे से एमएलसी बनाकर मंत्री बनाए रखने का कदम उठाते हैं तभी उनकी कुर्सी बच सकती है. 

पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी एक समय एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन बाद में उन्होंने नाता तोड़कर बीजेपी के खिलाफ आक्रमक रुख अपना लिया था. 2019 के लोकसभा और 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी भी उतारे थे, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. हालांकि, चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने अपने साथ मिलाकर एमएलसी उन्हें बना दिया है. ऐसे ही दांव मुकेश सहनी पर भी चल सकते हैं.

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हालांकि, बीजेपी जिस तरह से मुकेश सहनी के खिलाफ आक्रमक मोर्च खोले हुए हैं और उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने की जिद पर कायम है. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल में बनाए रखना आसान नहीं होगा. इसकी वजह है कि नीतीश सरकार बीजेपी के सहयोग से चल रही है. 2020 में जेडीयू से बड़ी पार्टी होने के बाद भी बीजेपी ने नीतीश को सीएम बनाया था. ऐसे में अब देखना है कि सहनी को लेकर नीतीश क्या कदम उठाते हैं?

 

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