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शराबबंदी वाले बिहार में, शराब से ही जुड़े हैं फर्जी चीफ जस्टिस बनकर DGP को की गई कॉल के तार

बिहार में जहां कानून में ये प्रवधान है कि अगर किसी थाना क्षेत्र में शराब मिलती है तो उस इलाके के थानेदार को 10 वर्षों तक थानेदारी नहीं मिल सकती और शराब माफियाओं से साथ गांठ पर उसे बर्खास्त भी किया जा सकता है. वहां उस थानेदार को तत्कालीन एसएसपी अवसर प्रदान कर रहे हैं.

फरार आईपीएस आदित्य ने अपने ठग दोस्त के साथ मिलकर ये पूरी साजिश रची थी फरार आईपीएस आदित्य ने अपने ठग दोस्त के साथ मिलकर ये पूरी साजिश रची थी
सुजीत झा
  • पटना,
  • 20 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 3:42 PM IST

बिहार में शराब इतनी जालिम हो गई है कि यहां हर वाद विवाद का रास्ता इसी से होकर गुजरता है. अब देखिये बिहार के डीजीपी जिस फर्जी चीफ जस्टिस के फ्रॉड का शिकार हुए. उसके पीछे भी शराब की ही कहानी है. आपको पता ही है कि आईपीएस आदित्य कुमार की मिली भगत से जालसाज अभिषेक अग्रवाल ने पटना हाई कोर्ट का फर्जी चीफ जस्टिस बनकर बिहार के डीजीपी एस के सिंगल को कॉल किया और आदित्य कुमार का केस खत्म करवा दिया. इस मामले में आईपीएस आदित्य कुमार निलबिंत और फरार है और जालसाज अभिषेक अग्रवाल समेत 4 आरोपी गिरफ्तार है. लेकिन जिस केस को खत्म करवाने के लिये अभिषेक फर्जी चीफ जस्टिस बना था वो केस भी शराब से ही जुड़ा हुआ है.

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कहानी की शुरुआत 2021 के मार्च महीने से होती है उस महीने की 8 और 26 तारीख को 2 बार शराब की बड़ी खेप गया के फतेहपुर थाने में पकड़ी जाती है. लेकिन फतेहपुर के उस समय के तत्कालीन थाना प्रभारी संजय कुमार ने न इस पर कोई केस दर्ज किया ना ही जब्ती की कोई सूची बनाई. जब स्थानीय लोगों से गया के तत्कालीन आई जी अमित लोढ़ा को इस बात का पता चला तब उन्होंने तत्कालीन गया कि एसएसपी आदित्य कुमार से जांच के लिये कहा. आदित्य कुमार उस थाना प्रभारी पर कार्रवाई नहीं चाहते थे.

 बार- बार रिमाइंडर भेजने पर एसएसपी ने एसपी से इसकी जांच कार्रवाई. जिसमे थानेदार दोषी पाया गया. तभी तत्कालीन  एसएसपी ने उस थानेदार को बचाने का भरपूर प्रयास किया और लिखा थानाप्रभारी का स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं प्रतीत होता है एवं त्रुटि , लापरवाही स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है. केवल त्रुटि मानकर वर्तमान परिस्थितियों में इन्हें गंभीर चेतावनी देते हुये अपने कार्य कलाप में सुधार लाने का अवसर दिया जा रहा है. वरीय पदाधिकारियों को इनके कार्यकलाप की निगरानी रखने हेतु निर्देशित किया गया है.

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सोचिये उस बिहार में जहां के कानून में ये प्रवधान है कि अगर किसी थाना क्षेत्र में शराब मिलती है तो उस इलाके के थानेदार को 10 वर्षों तक थानेदारी नहीं मिल सकती और शराब माफियाओं से साथ गांठ पर उसे बर्खास्त भी किया जा सकता है. वहां उस थानेदार को तत्कालीन एसएसपी अवसर प्रदान कर रहे है. अंततः गया कि तत्कालीन आई जी ने ही उस थानेदार को निलंबित किया.

इस घटना के बाद गोल्डेन कुमार नाम के एक नए किरदार की एंट्री होती है जो अपने आप को सामाजिक कार्यकर्ता कहता है. गोल्डन कुमार उसके बाद आई जी अमित लोढा के खिलाफ पीछे पड़ जाता है. उनके खिलाफ लगातार पुलिस मुख्यालय में पेटिशन भेजने लगता है और तमाम तरह के आरोप लगता है. उसकी नजर में आदित्य कुमार से बेहतर कोई आईपीएस अधिकारी नहीं था. पुलिस मुख्यालय उसके पेटिशन को काफी गंभीरता से संज्ञान में लेती है. बाद में पता चला कि गोल्डन कुमार पर 16 केस थे. उसकी गिरफ्तारी भी फतेहपुर थाने के तत्कालीन थानेदार संजय कुमार के घर से हुई. अब सोचिये इस घटना के तार कहाँ से जुड़े हुये हैं. जब अभिषेक अग्रवाल फर्जी चीफ जस्टिस बनकर डीजीपी से व्हाट्सएप चैट कर रहा था तब उसने लिखा कि अमित लोढा पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?

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