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अंबेडकर के बनाए संविधान को BJP-RSS से खतरा: वाम दल

मार्च को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज यह पूरी तरह जाहिर हो गया है कि बीजेपी-आरएसएस न केवल मुस्लिमों के खिलाफ है, बल्कि दलित समुदाय के लोग उसके खास निशाने पर हैं. सांप्रदायिक हिंसा, दलितों का उत्पीड़न, बलात्कार की घटनाएं इस सरकार की पहचान बन गई हैं. एससी-एसटी कानून में किए गए संशोधन के खिलाफ जब भारत बंद हुआ, तब इसके खिलाफ बीजेपी-आरएसएस प्रायोजित 10 अप्रैल को भारत बंद किया गया.

दीपांकर भट्टाचार्य दीपांकर भट्टाचार्य
अजीत तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 12:31 AM IST

डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर वाम दलों के संयुक्त आह्वान पर भाकपा-माले ने पूरे राज्य में संविधान बचाओ-देश बचाओ दिवस का आयोजन किया. इसके तहत राजधानी पटना सहित राज्य के विभिन्न इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा व दलितों पर बढ़ते उत्पीड़न के विरोध में मार्च का आयोजन किया गया. बेतिया में आज ही के दिन भूमि अधिकार मार्च व सभा का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के बतौर पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य और राज्य सचिव कुणाल शामिल हुए.

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मार्च को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज यह पूरी तरह जाहिर हो गया है कि बीजेपी-आरएसएस न केवल मुस्लिमों के खिलाफ है, बल्कि दलित समुदाय के लोग उसके खास निशाने पर हैं. सांप्रदायिक हिंसा, दलितों का उत्पीड़न, बलात्कार की घटनाएं इस सरकार की पहचान बन गई हैं. एससी-एसटी कानून में किए गए संशोधन के खिलाफ जब भारत बंद हुआ, तब इसके खिलाफ बीजेपी-आरएसएस प्रायोजित 10 अप्रैल को भारत बंद किया गया.

जनदबाव में वह अब इस संशोधन का विरोध कर रही है, लेकिन इसे रोकने के लिए अध्यादेश नहीं ला रही है. इससे साबित होता है कि भाजपा अंबेडकर के बनाए गए संविधान को ही बदल देने पर आमादा है. बाबा साहेब ने ऐसी ताकतों से देश की जनता को सावधान रहने का आह्वान किया था. दरअसल भाजपा इस देश में मनुस्मृति को संविधान के बदले थोपना चाहती है.

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माले के नेताओं ने कहा कि बीजेपी-आरएसएस निर्लज्ज तरीके से बलात्कारियों की संरक्षक बनी हुई है. बीजेपी के नेता खुलकर बलात्कारियों का पक्ष ले रहे हैं. यह बेहद शर्मनाक है. हाथ में तिरंगा लेकर बलात्कारियों के पक्ष में जुलूस निकाला जा रहा है. यह तिरंगा का भी अपमान है.

इन मसलों पर प्रधानमंत्री या तो चुप्पी साध लेते हैं अथवा बहुत देर से नपी-तुली बात बोलते हैं. जो सरकार कमजोर वर्ग, महिलाओं, दलितों, गरीबों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकती, उसे अंबेडकर का नाम लेने का कोई हक नहीं है. बीजेपी-आरएसएस के लोग दिखावे के लिए बाबा साहेब का जितना नाम ले लें, सच्चाई यह है कि ये सांप्रदायिक फांसीवाद की ताकतें अंबेडकर के विचारों को ही निशाना बना रही है.

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