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नहीं रहे रघुनाथ झा, जिनकी वजह से लालू बने थे बिहार के मुख्यमंत्री

लालू प्रसाद यादव को विधायक दल का नेता चुनवाने के लिए तय हुआ कि रघुनाथ झा को इस दंगल में खड़ा किया जाये. रघुनाथ झा खड़े हुए उन्हें 27 विधायकों का समर्थन मिला. लेकिन जीत लालू प्रसाद यादव की हुई क्योंकि रघुनाथ झा रामसुन्दर दास का वोट काटने में सफल रहे.

रघुनाथ झा (फाइल फोटो) रघुनाथ झा (फाइल फोटो)
सुजीत झा
  • पटना,
  • 15 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 8:46 PM IST

पूर्व केन्द्रीय मंत्री और बिहार के कद्दावर नेता रघुनाथ झा का पार्थिव शरीर पटना पहुंच गया है. मंगलवार को शिवहर के उनके पैतृक गांव अम्बा कला में उनका अंतिम संस्कार होगा. रविवार देर रात दिल्ली के एक अस्पताल में रघुनाथ झा का निधन हो गया था. वो 78 साल के थे.

रघुनाथ झा बिहार की राजनीति के एक प्रमुख हस्ती थे. लगातार छह वार शिवहर से विधायक और दो बार क्रमशः गोपालगंज और बेतिया से सांसद भी रहे. बिहार सरकार के डेढ़ दर्जन से अधिक विभागों का जिम्मा भी संभाला. इसके अलावा रघुनाथ झा पूर्व की मनमोहन सरकार में भारी उद्योग राज्य मंत्री भी रहे.

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रघुनाथ झा जनता दल के गठन के बाद उसके प्रथम प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ समता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे थे. साथ ही जनता विधानमंडल दल के नेता और जनता दल और समता पार्टी दल के मुख्य सचेतक भी रहे. उन्होंने साल 1990 में मुख्यमंत्री पद का चुनाव लड़ा और लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

अगर रघुनाथ झा नहीं रहते तो लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बनते. 1990 में जब बिहार में तख्ता पलट हुआ था कांग्रेस को हराकर जनता दल सत्ता में आई थी उस समय लालू प्रसाद यादव के दूर-दूर तक मुख्यमंत्री बनने की चर्चा नहीं थी. लालू 1989 में छपरा से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद थे. लेकिन बिहार में जब नई सत्ता आई तो मुख्यमंत्री की खोज शुरू हुई.

देवीलाल ने किया था आदे

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उस समय केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार थी. प्रधानमंत्री वीपी सिंह चाहते थे कि रामसुन्दर दास बिहार के मुख्यमंत्री बने, उनके पास अनुभव भी था और वो पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके थे लेकिन तत्कालीन उपप्रधानमंत्री देवीलाल नहीं चाहते थे कि रामसुन्दर दास मुख्यमंत्री बने. रामसुन्दर दास को काटने के लिए देवीलाल ने लालू प्रसाद यादव को आगे किया. चूंकि लालू प्रसाद यादव बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके थे इसलिए उनका दावा भी बनता था. ऐसे में विधायक दल के नेता के लिए चुनाव कराना पड़ा.

विधायक दल के नेता के लिए रामसुन्दर दास और लालू प्रसाद यादव आमने-सामने थे लेकिन दरअसल लड़ाई वीपी सिंह और देवीलाल के बीच थी. लालू यादव को यह पता था कि वो विधायक दल के नेता के इस चुनाव में मात खा सकते हैं. क्योंकि रामसुन्दर दास को पिछड़ों-दलितों के साथ-साथ सवर्ण विधायकों का भी समर्थन प्राप्त था.

लालू के लिए जुटाए वोट

देवीलाल और चन्द्रशेखर के बीच अच्छा तालमेल था और रघुनाथ झा चंद्रशेखर के खासम खास थे ऐसे में लालू प्रसाद यादव को विधायक दल का नेता चुनवाने के लिए तय हुआ कि रघुनाथ झा को इस दंगल में खड़ा किया जाये. रघुनाथ झा खड़े हुए उन्हें 27 विधायकों का समर्थन मिला. लेकिन जीत लालू प्रसाद यादव की हुई क्योंकि रघुनाथ झा रामसुन्दर दास का वोट काटने में सफल रहे.

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1997 में जब लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में जेल जाने की बात आई तो रघुनाथ झा ने ही बयान दिया था कि खून की नदियां बह जायेगी. हांलाकि 1998 में लालू प्रसाद यादव से मतभेद हो जाने के बाद उन्होंने 1998 में आरजेडी छोड़ कर नीतीश कुमार की पार्टी में चले गए थे.

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