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यूट्यूब देखकर बनी रग्बी स्टार, लेकिन बिहार की यूनिवर्सिटी 4 साल में नहीं करा सकी ग्रेजुएशन

श्वेता का कहना है कि मैंने मगध विश्वविद्यालय में तीन साल के स्नातक कोर्स में दाखिला लिया था. चार साल बीत चुके हैं लेकिन विश्वविद्यालय तीन साल का कोर्स पूरा नहीं करा सका. मैं अपनी डिग्री के बाद पोस्ट ग्रेजुएट प्रोफेशनल कोर्स करना चाहती हूं, लेकिन वह तब तक संभव नहीं है जब तक हमारा डिग्री कोर्स पूरा न हो जाए.

यूट्यूब देखकर रग्बी की स्टार खिलाड़ी बनी बिहार की श्वेता यूट्यूब देखकर रग्बी की स्टार खिलाड़ी बनी बिहार की श्वेता
राहुल श्रीवास्तव
  • नालंदा,
  • 04 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 6:24 PM IST
  • 'मगध विवि से 4 साल बाद भी डिग्री नहीं मिली'
  • राज्य चुनाव आयोग ने श्वेता को ब्रांड एंबेसडर बनाया
  • लॉकडाउन में मुफ्त ऑनलाइन रग्बी सिखा रहीं श्वेता

कुछ लोग ऑनलाइन वीडियो देखकर खाना बनाना सीखते हैं. कुछ लोग वर्चुअल क्लासेस के जरिये संगीत सीख लेते हैं. लेकिन ये काफी ​मुश्किल है कि कोई यूट्यूब वीडियो देखकर रग्बी खेलना सीखे और भारतीय महिला रग्बी टीम में जगह बना ले. ये कारनामा तब और भी सराहनीय हो जाता है, जब ऐसा करने वाली लड़की बिहार के नालंदा जिले के एक छोटे से गांव की हो. देश के 250 सबसे पिछड़े जिलों में शामिल नालंदा जिले का एक गांव है भदारी, जो रग्बी स्टार बन चुकीं श्वेता शाही का गांव है.

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इंडिया टुडे ने श्वेता शाही के गांव के पोलिंग बूथ पर उनसे मुलाकात की. इस विधानसभा चुनाव में श्वेता ने पहली बार वोट दिया है. इस दौरान उनके साथ उनके पिता भी थे. जब हमने उनसे पूछा कि उनके अनुसार अगली सरकार को सबसे महत्वपूर्ण काम कौन सा करना चाहिए तो उन्होंने कहा, “शिक्षा प्रणाली को बदलें और इसमें सुधार करें. बिहार में लोगों को नौकरियों की जरूरत है. लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बिना कोई अच्छी नौकरी नहीं पा सकता.”

इसके बाद उन्होंने जो बताया वह चौंकाने वाला था. श्वेता ने कहा, “मैंने मगध विश्वविद्यालय में तीन साल के स्नातक कोर्स में दाखिला लिया था. चार साल बीत चुके हैं लेकिन विश्वविद्यालय तीन साल का कोर्स पूरा नहीं करा सका. मैं अपनी डिग्री के बाद पोस्ट ग्रेजुएट प्रोफेशनल कोर्स करना चाहती हूं, लेकिन वह तब तक संभव नहीं है जब तक हमारा डिग्री कोर्स पूरा न हो जाए.”

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बनीं चुनाव ब्रांड एंबेसडर 
बिहार के एक पिछड़े इलाके के एक छोटे गांव से शुरू हुआ श्वेता का संघर्ष रग्बी की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता तक जाता है, जो कि तमाम प्रेरक कहानियों से भरा है. उनकी उपलब्धियों को बिहार राज्य चुनाव आयोग ने भी पहचाना और उन्हें ब्रांड एंबेसडर बनाया. लेकिन इससे आगे राज्य की ओर से कोई मदद नहीं मिली.

मतदान के बाद श्वेता शाही (फोटो-राहुल)

मतदान केंद्र के बाहर तमाम गांव वालों से घिरीं श्वेता ने इंडिया टुडे को अपनी कहानी सुनाई. भदारी गांव में जन्मी श्वेता को बचपन से ही दौड़ने में मजा आता था. इसलिए उन्होंने गांव की सड़क पर और घर की छत पर ही प्रैक्टिस करनी शुरू कर दी. श्वेता दौड़ती थीं और उनके पिता साथ-साथ साइकिल से चलते थे. कोई लड़की एथलेटिक्स में जाना चाहती है, ये बात गांव में ठीक नहीं मानी जाती थी. पहले तो सलाह आई कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए, लेकिन बाद में गांव वालों ने अस्वीकृति देना और दबाव बनाना शुरू कर दिया.

लेकिन ये बातें श्वेता की रफ्तार को नहीं रोक पाईं. एक दशक पहले एथलेटिक्स में वह हर रेस जीतती थी. वह छोटी थी, लेकिन शारीरिक रूप से मजबूत थी. एक बार एक स्पोर्ट इवेंट मैनेजर ने श्वेता को रग्बी के बारे में बताया.

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यूट्यूब वीडियो से प्रैक्टिस
श्वेता कहती हैं, “मैंने रग्बी नाम के किसी खेल के बारे में सुना भी नहीं था. लेकिन मैं जिज्ञासु थी, इसलिए मैंने यूट्यूब वीडियो देखना शुरू कर दिया. जल्दी ही मैं वीडियो देख-देख कर प्रैक्टिस करने लगी. जब बिहार की महिला रग्बी टीम चुने जाने की बारी आई तो मैंने आवेदन किया और चुन ली गई.”

किसी बड़े घरेलू रग्बी इवेंट में उनकी पहली भागीदारी 8 साल पहले ऑल इंडिया वीमेंस रग्बी सेवेंस चैंपियनशिप में हुई. तब श्वेता 14 साल की थीं.

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तब से श्वेता जकार्ता में एशियन वीमेन रग्बी सेवेंस ट्रॉफी, मनीला में एशियन वीमेंस रग्बी XV चैम्पियनशिप, दुबई में अंडर-18 एशियन गर्ल्स रग्बी सेंवेस चैम्पियनशिप, श्रीलंका में एशियन वीमेंस रग्बी सेवेंस चैंपियनशिप और चेन्नई में एशियन वीमेंस रग्बी चैम्पियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.

मुफ्त ऑनलाइन रग्बी सिखा रही श्वेता
गांव में श्वेता के घर में उनके पदक और ट्राफियों को रखने के लिए पर्याप्त अलमारियां तक नहीं हैं. लेकिन आज श्वेता रग्बी ग्लोबल का जाना पहचाना नाम हैं.

तारीफ और शोहरत के चलते श्वेता का गांव भी अब वही गांव नहीं है जहां कभी उन्हें संघर्ष करना पड़ा. पहले जो लोग श्वेता को सड़क पर दौड़ने से रोकना चाहते थे, अब वही अंतरराष्ट्रीय इवेंट से लौटने पर रोडशो निकाल कर श्वेता का स्वागत करते हैं.

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लॉकडाउन के दौरान घर से निकलने पर पाबंदी लग गई तो श्वेता ने भी यूट्यूब का इस्तेमाल किया और करीब 80 लड़के-लड़कियों को बिना किसी फीस के ऑनलाइन रग्बी सिखा रही हैं. लेकिन श्वेता के सामने अपने जुनून को बनाए रखने में अब भी बाधाएं कम नहीं हैं. बिहार में स्पोर्ट स्कूल या कॉलेज नहीं हैं जहां रग्बी खिलाड़ियों के लिए व्यवस्था हो. इसलिए राज्य की जो लड़कियां रग्बी खेलती हैं वे अपने स्तर पर प्रैक्टिस करती हैं और आपस में ऑनलाइन संपर्क में रखती हैं.

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