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सरकार गई, नीतीश का छूटा साथ... अब बिहार में कैसे आगे बढ़ेगा BJP का रथ?

बिहार में आखिरकार एक बार फिर बीजेपी और जेडीयू की दोस्ती टूट गई है. नीतीश कुमार फिर से महागठबंधन के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए हैं. बिहार में 2024 के चुनाव से पहले बीजेपी अकेली पड़ गई है, लेकिन नीतीश की छत्रछाया से बाहर निकलने और अपना सियासी आधार बढ़ाने का उसे मौका भी मिल गया है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी किस तरह बिहार में अपने सियासी कदम आगे बढ़ाती है?

अमित शाह और जेपी नड्डा अमित शाह और जेपी नड्डा
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 10 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 2:21 PM IST

बिहार में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर फिर आरजेडी-कांग्रेस सहित कई छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली है. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए हैं वहीं तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम. इसके चलते बिहार के समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं और अब बीजेपी अकेले पड़ गई है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी के लिए इसे सियासी झटके के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में बीजेपी अपने दम पर बिहार में कैसे खड़ी हो पाएगी? 

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बता दें कि बिहार की सियासत में बीजेपी अभी तक नीतीश कुमार के सहारे अपनी सियासत करती रही है. इसके चलते पूरे बिहार में अपना सियासी आधार नहीं खड़ा कर सकी. वहीं, अब जेडीयू से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी को बैसाखी के बजाय अपने दम पर मजबूत होने की कवायद करनी होगी. बीजेपी ने इसकी तैयारी तो 2020 के चुनाव के बाद से ही शुरू कर दी थी जब उसे जेडीयू से ज्यादा सीटें मिली थी. 

बीजेपी को कद्दावर चेहरे की तलाश

बिहार में जेडीयू के एनडीए गठबंधन से अलग होने के बाद बीजेपी ने न सिर्फ एक राज्य में सत्ता खोई है, बल्कि उसका एक बड़ा सहयोगी भी उससे दूर हुआ है. बीजेपी और जेडीयू में खटास तो लंबे समय से चली आ रही थी, लेकिन हाल की कुछ घटनाओं ने दोनों दलों की दोस्ती में खलल डाल दिया. हालांकि, ऐसी स्थिति के लिए बीजेपी ने पहले से ही तैयार थी, इसलिए उसने पटना में अपने सभी मोर्चों की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की संयुक्त बैठक में न केवल तभी 243 विधानसभा सीटों पर अपने नेताओं को भेजा था, बल्कि 2024 और 2025 की तैयारी करने का आह्वान भी किया था. 

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दरअसल, बिहार में बीजेपी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये रही कि नीतीश कुमार के साथ लंबे समय से दोस्ती होने के चलते अपनी लीडरशिप नहीं खड़ी कर सकी. बीजेपी के पास कोई बड़ा नेता नहीं है जो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के कद का मुकाबला कर सके. राज्य के लगभग हर गांव में कैडर होने के बावजूद, बीजेपी के पास स्ट्रीट-फाइटर का दमखम रखने वाले नेता के अभाव से गुजर रही है. जेडीयू से गठबंधन टूटने के बाद अब बीजेपी अपने नेता को उभारने के लिए स्वतंत्र हो गई है.

बिहार की सड़क पर बीजेपी 
नीतीश कुमार से अलग होने के बाद बीजेपी अब संघर्ष के जरिए अपनी सियासी आधार को मजबूत करने की कवायद कर सकती है. ऐसे में बिहार बीजेपी ने जिला मुख्यालय पर बैठक के बाद ऐलान किया है कि वो 11 अगस्त को जेडीयू के पार्टी कार्यालय के बाहर प्रदर्शन करेगी. इसके बाद प्रदर्शन का दायरा बढ़ाया जाएगा और 12 अगस्त को जेडीयू के सभी जिला मुख्यालयों के बाहर बीजेपी प्रदर्शन करेगी और उसके बाद 13 अगस्त को सभी प्रखंड मुख्यालयों पर प्रदर्शन होगा. इस तरह बीजेपी सड़क के जरिए अपनी मौजूदगी दर्ज कराएगी. 

क्या बीजेपी अकेले लड़ेगी चुनाव
बिहार में जेडीयू के साथ गठबंधन टूटने के बाद एक बात तो साफ हो गई है कि बीजेपी अब अकेले ही चुनावी रण में किस्मत आजमाने उतरेगी. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पटना की बैठक में दावा किया था कि बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी से अधिक सीटें जीतेगी. इससे ही जाहिर हो गया था कि बीजेपी ने अब बिहार अपने कदम बढ़ दिए हैं. वहीं, अमित शाह ने जिस तरह से कहा कि 2024 का लोकसभा और 2025 का विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, उससे ही बात साफ हो गई थी कि बीजेपी अब जेडीयू के साथ अगला चुनाव नहीं लड़ेगी.  

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नीतीश कुमार के साथ गठबंधन टूटने से फिलहाल झटका जरूर है, लेकिन जेडीयू के छत्रछाया से निकलकर उसे अपने पैर जमाने का मौका जरूर हाथ लग गया है. बीजेपी नेता महसूस कर रहे थे कि जेडीयू के गठबंधन में रहने से राज्य में उनके बड़े राजनीतिक उद्देश्यों पर असर पड़ा है. अगले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए एक और बड़ी चिंता सत्ता विरोधी लहर होगी, लेकिन नीतीश सरकार की असफलता का दोष से मुक्त रहेगी.

हिंदुत्व के पिच पर खेलगी बीजेपी
बिहार में बीजेपी अब हिंदुत्व के पिच पर खुलकर खेलेगी, क्योंकि नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में रहते वो यह नहीं कर पा रही थी. बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडा पर बिहार में अपने सियासी कदम बढ़ाएगी है और साथ ही सामाजिक समीकरण साधने के लिए अपना दायरा भी बढ़ाएगी. इसके संकेत नीतीश कुमार से गठबंधन टूटने से पहले ही दिखने लगे थे. बीजेपी नेताओं ने दो दिन पहले पटना में हिंदुत्व के एंजेडे पर अपने कदम बढ़ाने के संकेत दिए थे, जिसमें यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक भी शामिल थे और उन्होंने योगी मॉडल की जमकर तारीफ की थी. 

बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग

बिहार की सियासत जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ऐसे में बीजेपी ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए रणनीति तैयार की है. बिहार में अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से संबंधित लोगों के वोटों का एक बड़ा हिस्सा, जो सूबे की कुल आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है, लेकिन बंटा हुआ है. बिहार में अतिपिछड़ा और दलित वोटों को भी साधने की होड़ सभी लगाए हैं. ऐसे में बीजेपी बिहार में अपने सातों मोर्चा की संयुक्त बैठक पहली बार कराकर सियासी संदेश देने की कवायद कर चुकी है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी किस तरह से अब अपने सियासी कदम आगे बढ़ाती है, क्योंकि 2015 में इसका खामियाजा भुगत चुकी है?  

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