
कम्युनिस्ट नेता कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बिहार में पार्टी के सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने अपने प्रवक्ता, सभी नेता के लिए फरमान जारी कर दिया है. आरजेडी ने अपने प्रवक्ताओं को कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया है. जब तक आरजेडी का फरमान अपने नेताओं तक पहुंचता, तब तक बयान का तीर निकल चुका था.
आरजेडी के वरिष्ठ नेता और विधायक भाई वीरेंद्र से जब कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कौन है कन्हैया कुमार? मैं इन्हें नहीं जानता. महागठबंधन में अपने सहयोगी दल कांग्रेस में एक अच्छे वक्ता के तौर पर पहचान रखने वाले कन्हैया कुमार के शामिल होने से आरजेडी को खुश होना चाहिए था लेकिन ऐसा नजर नहीं आ रहा. कन्हैया कुमार जिस सीपीआई से कांग्रेस में आए हैं वो भी बिहार में महागठबंधन का ही हिस्सा है. आरजेडी कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने से खुश नहीं है.
आरजेडी और कांग्रेस का रिश्ता दो दशक से ज्यादा का है. फिर भी आरजेडी खुश होने की बजाय नाराज क्यों है? आखिर इसकी क्या वजह है. इसकी वजह जानने के लिये आरजेडी और कांग्रेस के रिश्ते की बुनियाद में जाना होगा. कांग्रेस ने बिहार में 40 साल तक राज किया लेकिन 90 का दशक आते-आते उसकी हालत पतली हो गई. पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी नेतृत्व विहीन हो गई. बिहार में कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं बचा जिसके बल पर पार्टी इज्जत बचा सके. उस समय लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस को सहारा दिया. हालांकि, कांग्रेस को हरा कर ही लालू ने बिहार की सत्ता हासिल की थी.
कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है. कांग्रेस जब तक कमजोर है तब तक क्षेत्रीय दलों की दुकान चलती रहेगी. आरजेडी कभी नहीं चाहेगी कि कांग्रेस मजबूत हो. कांग्रेस के मजबूत होने से नुकसान आरजेडी को होगा. अब कन्हैया कुमार के कांग्रेस में आ जाने से माना जा रहा है कि कांग्रेस में मजबूती आएगी. हालांकि, ये अभी भविष्य की बात है कि कन्हैया इसके लिए कितनी मेहनत करते हैं और कांग्रेस उन्हें कितना महत्व देती है. ये भी अहम है. जिस तरीके से पंजाब क्राइसिस के बावजूद राहुल गांधी ने उन्हें पार्टी में शामिल कराया और अपने बगल की सीट पर बैठाया उससे तो यही लगता है कि कन्हैया को महत्व मिलेगा. पार्टी में महत्व मिलने के बाद भी कन्हैया कुमार को जमीन पर काफी मेहनत करनी पड़ेगी.
कन्हैया को रोकने के लिए आरजेडी ने लगाया था जोर
बिहार में इस समय महा गठबंधन का चेहरा तेजस्वी यादव हैं. कन्हैया के कांग्रेस में आ जाने से वो भी चेहरे की होड़ में शामिल हो सकते हैं. कन्हैया कुमार के बोलने का तरीका और भाषण की शैली काफी अच्छी है. लोगों से वो अच्छा कनेक्ट करते हैं लेकिन राजनीति में जाति की बात आएगी ही. उसमें कन्हैया कुमार कितने स्वीकार्य होंगे ये भी देखने वाली बात होगी.
कन्हैया कुमार कांग्रेस में नहीं जाएं, इसके लिए आरजेडी ने भी कम कोशिश नहीं की थी. कन्हैया कुमार से आरजेडी साल 2019 में भी खुश नहीं थी जब सीपीआई ने उन्हें बेगूसराय से उम्मीदवार बनाया था.
गठबंधन के बावजूद आरजेडी ने कन्हैया के सामने अपना उम्मीदवार भी खड़ा कर दिया. कांग्रेस और आरजेडी में तकरार की शुरुआत 30 अक्टूबर को बिहार विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उप चुनाव से हो गई है. आरजेड़ी ने तारापुर और कुशेश्वर स्थान दोनों सीट पर अपना दावा ठोक दिया है जबकि कायदे से कुशेश्वरस्थान सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चुनाव लड़ी थी और हार गई थी. कांग्रेस किसी भी कीमत पर ये सीट छोड़ना नहीं चाहती है.