
बिहार में सत्ता से बेदखल होने के बाद लालू यादव को एक और बड़ा झटका लगा है. 27 अगस्त को पटना के गांधी मैदान में होने वाली जिस महारैली के पीछे वह अपनी पूरी ताकत लगा रहे थे उसकी हवा निकल गई है.
लालू यादव का दावा था कि "देश बचाओ भाजपा भगाओ" के नाम से की जाने वाली रैली विपक्ष के महागठबंधन की नीव रखेगी और 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी से मुकाबला करने के लिए विपक्षी नेताओं को एकजुट करेगी. लेकिन एक के बाद एक कई पार्टियां अब इस रैली से किनारा कर रही हैं. मायावती यह तो पहले ही कह चुकी थी कि वह खुद इस रैली में नहीं जाएंगी लेकिन लालू यादव का दावा था कि वह पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश मिश्रा को अपनी जगह इस रैली में भेजेंगी. लेकिन गुरुवार को मायावती ने यह साफ कर दिया कि ना तो वह खुद इस रैली में जाएंगी और ना ही उनकी पार्टी से कोई नेता इसमें शरीफ होगा. लालू यादव के अरमानों पर पानी फेरते हुए मायावती ने कह दिया कि जब तक टिकट के बंटवारे को लेकर बात साफ नहीं हो जाती तब तक सिर्फ रैली में शामिल होने का कोई मतलब नहीं है.
सोनिया और राहुल गांधी ने पहले ही दे दिया था झटका
इससे पहले लालू यादव को झटका तब लगा था जब कांग्रेस ने यह साफ कर दिया था कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी में से कोई भी इस रैली में नहीं जाएगा. कांग्रेस की तरफ से सिर्फ गुलाम नबी आजाद और सीपी जोशी इस रैली में जा रहे हैं.
लेफ्ट पार्टियों ने भी इस रैली से किनारा कर लिया है और इसमें शरीक नहीं होंगे. अभी तक कि खबरों के हिसाब से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस रैली में जा रहे हैं. लेकिन जिस तरह से एक के बाद एक पार्टियां और नेता इस रैली से किनारा कर रहे हैं उससे लालू यादव की बेचैनी जरूर बढ़ गई होगी. लालू यादव की 27 अगस्त की रैली की सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात को लेकर थी कि इस रैली में अब तक एक दूसरे के कट्टर राजनीतिक दुश्मन रहे अखिलेश यादव और मायावती एक मंच पर दिखेंगे. 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश में इसे बहुत बड़े राजनीतिक फेरबदल के तौर पर देखा जा रहा था और यह कहा जा रहा था कि अगर इस रैली से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच में दरार मिट जाती है तो बीजेपी के लिए यूपी में चुनौती बहुत गहरी हो जाएगी. लेकिन मायावती के इस रुख से BJP ने जरूर राहत की सांस ली होगी.
बाढ़ के समय में कर रहे हैं रैली
लालू यादव की रैली ऐसे समय पर कर रहे हैं जब खुद उनके अलावा उनके बेटे और बेटी भ्रष्टाचार के मामलों में इनकम टैक्स और ईडी की जांच के लपेटे में हैं. जांच का फंदा धीरे धीरे लालू परिवार के ऊपर कसता जा रहा है. लालू यादव की मुसीबत इसलिए बढ़ गई क्योंकि उनकी रैली ऐसे समय पर हो रही है जब बिहार भयंकर बाढ़ के चपेट में फंसा हुआ है और सैकड़ों लोगों की बाढ़ की वजह से जान जा चुकी है. बीजेपी के नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने लालू यादव से अपील की थी कि बाढ़ को देखते हुए वह अपनी रैली स्थगित कर दें. लेकिन सुशील यादव की सलाह को दरकिनार करते हुए लालू यादव ने कहा था कि सुशील मोदी उन्हें सीख देने की कोशिश ना करें.
माना जा रहा है कि लेफ्ट पार्टियां समेत कई और नेता रैली में जाने के बारे में इसलिए असमंजस में है क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसे बाढ़ के वक्त रैली करने से लोगों में गलत संदेश जाएगा की त्रासदी के बीच पार्टियां अपना वोट बैंक मजबूत करने में जुटी हैं.
अब रैली में ले देकर बड़े नेता के नाम पर सिर्फ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही बचती हैं. इसके अलावा नीतीश कुमार से अलग होकर अपना रास्ता चुनने वाले जेडीयू के नेता शरद यादव इस रैली में होंगे. लेकिन रैली से पहले ही इतना साफ हो गया कि लालू यादव इस रैली के दम पर विपक्ष के मजबूत धुरी के तौर पर अपनी जो पहचान बनाना चाहते थे उनका वह सपना चकनाचूर हो चुका है.