
किताब के बारे में जानने से पहले एक बार जानते हैं कि आखिर मनु कौन थे. मनु को आदिपुरुष माना जाता है, जिसने समाज को चलाने के लिए अलग-अलग तरह की व्यवस्थाओं की बात की. इसमें धर्म भी था, राजनीति भी और घर-गृहस्थी भी. हालांकि मनुस्मृति के असल क्रिएटर के बारे में विद्वानों की राय बंटी हुई है. कोई इसे ईसा से कुछ सौ साल पहले का बताता है तो कोई लगभग 2 हजार साल पुराना.
अध्यायों में बंटी हुई किताब है मनुस्मृति
इसमें 12 अध्याय हैं, जिनमें 2684 श्लोक हैं. अलग-अलग भाषाओं और अलग विद्वानों की टीकाओं समेत इसमें श्लोकों की संख्या कम-ज्यादा भी हो जाती है. कुछ ही दशकों के भीतर मनुस्मृति पर कई किताबें कई मॉडिफिकेशन्स के साथ मिलीं. इससे ये भी अंदाजा लगाना मुश्किल है ये किताब एक ही लेखक की है, या समय के साथ इसमें कई लोगों के विचार जुड़ते चले गए.
किस चैप्टर में किन बातों का जिक्र
इसमें मूलतः हिंदुओं को संबोधित किया गया है कि वे किस तरह से रहें, जिससे समाज आराम से चलता रहे सके. इसमें अलग-अलग आश्रमों पर बात है, विवाह के नियम हैं, महिलाओं के लिए सीख है और गृहस्थ धर्म के कर्तव्य भी हैं. 12 अध्यायों का ऊपरी स्ट्रक्चर देखा जाए तो कुछ ऐसा है:
1. इसमें प्रकृति के बनने, चार युग, अलग-अलग वर्ण और उनके कामों का जिक्र है.
2. दूसरा चैप्टर सोलह संस्कारों की बात करता है. हरेक में कई सब-चैप्टर भी हैं.
3. इसके बाद गृहस्थ आश्रम, अलग-अलग तरह के विवाहों की बात है. श्राद्ध का भी यहां जिक्र है.
4. चौथा अध्याय एक बार गृहस्थी की बात करता है, साथ ही दान-पुण्य की भी बात है.
5. इसमें खानपान के दोष, शुद्धिकारक जैसी बातों की चर्चा है.
6. इस अध्याय में वानप्रस्थ आश्रम की जरूरत और नियमों की बात है.
7. ये अध्याय राजधर्म की बात करता है. लोगों को नियम पर बनाए रखने के लिए दंड और मंत्रियों की सलाह का उल्लेख है.
8. ये न्याय, राजनीति के बारे में सबक देता है कि कैसे विवाद का निपटारा हो.
9. इसमें माता-पिता के कर्तव्य और अधिकारों का जिक्र है.
10. ये अध्याय चार वर्णों के अलग-अलग कामों की बात करता है.
11. इसमें पापकर्मों के बारे में बताया गया है, जैसे गोवध, मांस-मदिरा का सेवन.
12. आखिरी चैप्टर में स्वर्ग-नर्क की बात है.
कई दूसरी किताबें भी थीं
मनुस्मृति, जैसा कि नाम से जाहिर है, ये कोई वेद-पुराण नहीं, बल्कि किसी एक इंसान या इंसानों के समूह की स्मृति यानी याद पर लिखी-बोली किताब है. व्यक्ति या समूह ने जो भोगा, जो जिया, उसे ही अध्यायों के रूप में संजो दिया. कई दूसरी स्मृतियां भी किताब की तरह चलन मे थीं, जैसे अत्रि स्मृति, गौतम स्मृति, विष्णु स्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति. ये सब समानांतर रूप से चल रहा था, फर्क इतना था कि ये ऋषियों की किताबें थीं, जबकि मनुस्मृति हिंदुओं के किसी पूर्वज की. तब सवाल आता है कि अगर सब की सब किसी न किसी मनुष्य की स्मृतियों का जखीरा थीं तो मनुस्मृति का नाम ही विवादों में क्यों आया. तो इसकी भी वजह है.
ब्रिटिश जज ने किया अनुवाद
भारत आए भाषाविद सर विलियन जोन्स ने संस्कृत से इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया. ये सबसे पहली ऐसी किताब थी, जिसका न केवल ट्रांसलेशन हुआ, बल्कि उसका प्रचार-प्रसार भी जमकर किया गया. इसके पीछे भी ईस्ट इंडिया कंपनी की डिवाइड एंड रूल नीति को देखा जाता है. कई विद्वानों का मत है कि सुप्रीम कोर्ट ऑफ कोलकाता के जज की तरह काम करता ये अंग्रेज अधिकारी जानता था कि किस तरह से लोगों को एक-दूसरे से अलग किया जा सकता है.
सबकुछ देख-समझकर उसने कई शानदार किताबों में एक विवादित चीज ली और उसे बढ़ावा देना शुरू कर दिया. सर विलियन जोन्स एंड मनुस्मृति- ए ब्रिटिश इनिशिएटिव फॉर हार्मोनियस स्टेट नाम के रिसर्च पेपर में इसका जिक्र है. जल्द ही किताब का फ्रांसीसी, जर्मनी, पुर्तगाली और रूसी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ.
हिंदुओं के रीति-रिवाजों को आहत न होने देने का तर्क
साल 1794 में ब्रिटिश राज की बंगाल सरकार ने इसे पब्लिश कराया, जिसके पीछे तर्क था कि किताब की मदद से वे हिंदुओं को उन्हीं के तरीके से रहने देंगे. कुल मिलाकर काफी गोलमाल के साथ अंग्रेजों ने अपना काम भी बना लिया और टूटन की शुरुआत भी कर दी. वे हिंदुस्तान के कानूनी मामलों में भी किताब का उदाहरण देते हुए इंसाफ करने लगे. इससे लोगों में दूरियां तो बढ़ीं, किताब का नाम भी खूब लिया जाने लगा.
बेनिफिट ऑफ डाउट देने के बाद भी ये सच है कि किताब के बहुत से हिस्से विवादित हैं.
मनुस्मृति में बताया गया है कि अलग-अलग वर्ण किस तरह से जन्मे. इसमें ब्रह्माजी के मुख से ब्राह्मण वर्ण निकला. इसका काम पढ़ना-लिखना, यज्ञ-पाठ करवाना था. उनकी भुजाओं से क्षत्रिय निकले, जो रक्षा करते. वैश्य वर्ण की उत्पत्ति ब्रह्मा के पेट से हुई. ये वर्ण व्यापार-व्यावसाय कराकर समाज को चलाए रखने के काम करता. वहीं शूद्रों का जन्म ब्रह्मा के पैरों से हुआ. इनका काम साफ-सफाई और बाकी वर्णों की सेवा था. इस तरह सबके काम बांट दिए गए. अब क्षत्रिय कुल में जन्म व्यक्ति चाहकर भी व्यापार नहीं कर सकता था, और शूद्र अध्ययन नहीं कर-करा सकते थे.
क्या-क्या है महिलाओं के खिलाफ
वर्ण-व्यवस्था की ये बातें वाकई भड़काने वाली थीं, और यही हुआ भी. लोग एक-दूसरे के खिलाफ होने लगे, जो कि अब तक चला आ रहा है. मनुस्मृति में महिलाओं के लिए जो कहा गया है, वो भी खास खुश करने वाला नहीं. उदाहरण के तौर पर 5वें चैप्टर के श्लोक 148 में लिखा है कि जो स्त्री को जन्म के बाद पिता के संरक्षण में, फिर पति की छाया में और पति के जाने के बाद पुत्रों पर आश्रित रहना चाहिए, जो ऐसा नहीं करती, वो दोनों ही कुलों को कलंकित करती है. दूसरे अध्याय के 13वें श्लोक में लिखा था कि महिलाओं का स्वभाव ही पुरुषों को दूषित करना है. इसलिए बुद्धिमान पुरुष को युवा स्त्री की निकटता से हमेशा सतर्क रहना चाहिए.
दलितों को आहत करने वाली बातें
किताब के कई श्लोक विवादित रहे. जैसे 8वें चैप्टर के 129 श्लोक में बताया गया कि शूद्र चाहे कितने ही काबिल हों, उन्हें पैसे अर्जित करने की ताकत नहीं देनी चाहिए. जैसे ही वो रईस होगा, ब्राह्मणों को परेशान करेगा. सवर्णों को लगभग सारी छूट देते हुए शूद्रों को कमतर माना गया. ब्रिटिश राज के दौरान ही किताब का विरोध होने लगा.
डॉ बाबा साहब आंबेडकर ने अपनी किताब 'फिलॉसफी ऑफ हिंदूइज्म' में लिखा- मनु ने चार तरह की वर्ण व्यवस्था की बात की. इन चार वर्णों के आधार पर जाति व्यवस्था शुरू हुई. ये पक्का नहीं कि मनु ने ही जाति व्यवस्था बनाई लेकिन इसके बीज उन्होंने जरूर बोए. जुलाई, 1927 को महाराष्ट्र में मनुस्मृति की कॉपी डॉ आंबेडकर ने सार्वजनिक रूप से जलाई. इसके बाद से देशभर में कई जगह किताब जलाई जाने लगी.
मनुस्मृति को सपोर्ट करने वाले भी हैं
वे मानते हैं कि हजारों साल पहले की पृष्ठभूमि में सोची और लिखी गई इस किताब को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, वरना इसमें कई गूढ़ बातें हैं, जो अब भी समाज के काम आएंगी. लोगों के भीतर बिना पढ़े ही मनुस्मृति को लेकर जो गुस्सा जाग चुका है, उसे झाड़ने-पोंछने के लिए इसी साल उत्तर प्रदेश के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मनुस्मृति पर शोध के लिए फैलोशिप की बात की थी. 'मनुस्मृति की भारतीय समाज पर प्रयोज्यता' नाम से इस प्रोजेक्ट को लेकर यूनिवर्सिटी दो खेमों में बंट गई. एक बिरादरी विरोध कर रही थी, तो दूसरी का कहना था कि वहां के धर्मशास्त्र-मीमांसा विभाग में हमेशा से ही मनुस्मृति समेत कई ग्रंथ पढ़ाए जा रहे हैं.
हजारों सालों से जलाई जाती रहीं किताबें
गुस्सा या एतराज जताने के लिए दुनिया के बहुत से देशों में किताबें जलाई जाती रहीं. इतिहास में इसका सबसे पहला जिक्र चीन से आता है, हालांकि वहां वजह कुछ और थी. 213 ईसा पूर्व वहां के राजा किन शी हुआंग ने चाहा कि चीन का इतिहास उनसे ही शुरू हुआ माना जाए, यानी आने वाली पीढ़ियों को लगे कि वही चीन के पहले राजा थे, जबकि ऐसा था नहीं. तो उन्होंने आदेश दिया कि उनसे जुड़ी किताबों के अलावा बाकी हर पिछले राजा का इतिहास जला दिया जाए. तब कन्फ्यूशियस को मानने वाले भी काफी लोग थे, जो पढ़े-लिखे भी थे. उन्होंने इसका विरोध किया तो राजा ने उन लोगों को भी किताब की होली में झोंक दिया.
बर्निंग बुक्स नाम की किताब में अमेरिकी लेखक हेग ए बॉस्मेजिआन ने प्राचीन से लेकर 20 सदी तक की बुक-बर्निंग से जुड़ी कई घटनाओं का जिक्र किया है.